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क्या इसराइल और ईरान के युद्ध को खत्म कर सकता है भारत?

भारत अब इसराइल और ईरान के युद्ध को खत्म कर सकता है! इजरायल और ईरान की तनातनी पर दुनिया के देशों की नजर है। इस संघर्ष का कितना खौफनाक नतीजा सामने आएगा, दुनिया के अधिकांश देशों के नागरिक इस बात को लेकर चिंतित है। बीते शुक्रवार की सुबह दुनिया को ये खबर मिली कि इजरायल ने ईरान के इस्फ़हान इलाके में मिसाइल हमला कर दिया। वहां ईरान की परमाणु सुविधाएं हैं। हमले में कितना नुकसान हुआ, ये अभी साफ नहीं है। पश्चिम एशिया में 7 अक्टूबर 2023 से हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। हमास के हमले ने इजरायल की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया था। इस हमले में लगभग 1200 इजरायली मारे गए और 200 से ज्यादा बंधक बना लिए गए। इजरायल ने इसे दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यहूदियों के सबसे बड़े नुकसान के रूप में देखा। ये 2008 से चले आ रहे इजरायल-हमास के झगड़ों से कहीं ज्यादा गंभीर था। इजरायल ने अपनी ताकत दिखाने के लिए जवाबी कार्रवाई की, जिससे 6 महीने से ज्यादा चली लड़ाई में 30,000 से ज्यादा लोग मारे गए और गाजा में 10 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनी बेघर हो गए। अमेरिका भले ही पूर्वी भूमध्यसागर में दो युद्धपोतों के समूह तैनात कर चुका है, लेकिन हालात और बिगड़ गए हैं। हूती विद्रोहियों ने लाल सागर के रास्ते जहाजों पर हमला किया और शिपिंग को बाधित किया है. वहीं हिज्बुल्लाह ने रॉकेट और ड्रोन दागे हैं, जिससे उत्तरी इजरायल के करीब 70,000 लोग बेघर हो गए हैं। इजरायल ने भी दक्षिणी लेबनान की सीमा से लगे इलाकों में हिज्बुल्लाह के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है। अमेरिका और ब्रिटेन ने कई अन्य देशों के साथ मिलकर ‘ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन’ चलाया है और हूती ठिकानों पर हमले किए हैं।

इजरायल का मानना है कि ईरान हमास, हिजबुल्लाह और हाउती को मदद कर रहा है। इसी सिलसिले में इजरायल ने सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास परिसर में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के कई कमांडरों पर हमला कर उन्हें मार डाला। ईरान ने इसे अपने ‘संप्रभु क्षेत्र’ पर हमला माना। इससे पहले इजरायल सीरिया और लेबनान के रास्ते हिजबुल्लाह को भेजे जाने वाले सामानों पर हमला करता रहा है, लेकिन यह हमला उससे कहीं ज्यादा गंभीर था। जवाब में ईरान ने 300 ड्रोन, 30 क्रूज मिसाइल और 100 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलों से इजरायल पर हमला किया। 1973 के योम किप्पुर युद्ध के बाद यह किसी देश की ओर से सीधे तौर पर इजरायल पर किया गया पहला हमला था। 1948, 1967 और 1973 में अरब देशों के गठबंधन को इजरायल ने हरा दिया था। इसके बाद 1979 में मिस्र और 1994 में जॉर्डन के साथ शांति समझौते हुए। 2020 में अब्राहम एकॉर्ड के तहत इजरायल के यूएई, बहरीन, कतर और मोरक्को के साथ राजनयिक संबंध स्थापित हुए। जवाब में इजरायल ने ईरान के इस्फहान शहर पर सीमित हवाई हमला किया, जो यह दिखाता है कि वो ईरान की हवाई सुरक्षा को भेद सकता है।

जब तक इजरायल-हमास लड़ाई कम होने की राह पर नहीं चलती, तब तक परेशानी बनी रहेगी, चाहे हालात और बिगड़ें या नहीं। फिलहाल ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है। अमेरिका, मिस्र और कतर के बीच-बचाव की कोशिशों के बावजूद छह हफ्ते के युद्धविराम की बातचीत हफ्तों से रुकी हुई है।

इजरायल का लक्ष्य गाजा से हमास को खत्म करना है। लेकिन छह महीने की कोशिशों के बाद भी हजारों हमास लड़ाके अभी भी सक्रिय बताए जा रहे हैं, खासकर दक्षिण गाजा के रफाह इलाके में, जो अभी इजरायल की पहुंच से बाहर है। इससे बड़े पैमाने पर आम लोगों की मौतों को लेकर अंतरराष्ट्रीय चिंता बढ़ गई है। अफगानिस्तान में तालिबान के साथ अमेरिका के अनुभव और 1982 से 2000 के बीच दक्षिण लेबनान में हिज़्बुल्लाह के साथ इजरायल के खुद के कब्जे के अनुभव को देखते हुए हमास को पूरी तरह खत्म करने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।

गाजा पर शासन करने के लिए हमास के अलावा किसी फिलिस्तीनी संगठन को मजबूत बनाने के इजरायल के विरोध और गाजा पर फिर से कब्जा करने के अंतरराष्ट्रीय विरोध से लड़ाई के बाद के समझौते मुश्किल हो रहे हैं। युद्ध के बाद गाजा के बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण के लिए अरब देशों की मदद के लिए दो-राष्ट्र समाधान की तरफ बढ़ने की जरूरत हो सकती है। लेकिन, इजरायल की मौजूदा सरकार ऐसे किसी भी समाधान के खिलाफ है, और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 1990 के दशक के मध्य से लगातार ऐसी किसी भी संभावना को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। इजरायल की राजनीति धीरे-धीरे दाईं ओर खिसक गई है। उनका ये मानना है कि फिलिस्तीन के कुछ लोग इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते और अतीत में समझौतों का विरोध कर चुके हैं। अक्टूबर में हुए बड़े हमले और उसकी तैयारी को देखते हुए, इजरायल की सुरक्षा को लेकर चिंतित लोगों की दलीलें और मजबूत हो जाएंगी।

दुनिया में अमेरिका की भूमिका कम होने की बातें हो रहीं हैं, वहीं दूसरी तरफ उसके वैश्विक दखल को लेकर बहस भी चल रही है। फिर भी, इस पूरे संकट को सुलझाने की कोशिश में अमेरिका ही एकमात्र बड़ी शक्ति है। वो इजरायल, अरब देशों, और बिचौलियों के जरिए ईरान और हमास से बातचीत कर रहा है। लेकिन, इसका प्रभाव सीमित ही नजर आता है। नेतन्याहू अमेरिका की सलाह नहीं मानते, ईरान सीधे इजरायल पर हमला करने से नहीं हटता और हमास बंधकों को रिहा करने के कई प्रस्तावों को स्वीकार नहीं करता। शायद अब समय आ गया है कि इस मामले को सुलझाने के लिए और बड़े प्रयास किए जाएं। चूंकि चीन, रूस और अमेरिका अब तक संयुक्त राष्ट्र में एक-दूसरे की कोशिशों को नाकामयाब करने में लगे हैं, तो G20 की मौजूदा अध्यक्षता कर रहे ब्राज़ील, भारत और दक्षिण अफ्रीका को यह देखना चाहिए कि क्या वे यूरोप और अरब देशों के कुछ और G20 देशों के साथ मिलकर कोई रास्ता निकाल सकते हैं। यह इस बात की अच्छी परीक्षा हो सकती है कि G20 वाकई में दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण संगठन है जैसा वो अक्सर दावा करता है।

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