यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों पर बंदिश लगेगी या नहीं! लोकसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से पहले छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले में मंगलवार सुरक्षाबलों ने मुठभेड़ में 29 नक्सलियों को ढेर कर दिया। इनमें 50 लाख रुपये के दो इनामी टॉप नक्सली कमांडर शंकर राव और ललिता शामिल हैं। नक्सलियों के खिलाफ ऐसी सफलता न केवल पिछले दस वर्षों बल्कि छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली बार है। इस मामले में सुरक्षाबलों को 15 अप्रैल की रात 5 इनपुट मिले थे और इनमें से दो इनपुट एकदम सटीक थे। इस इनपुट के मुताबिक बड़ी संख्या में नक्सलियों और इनके कमांडरों के होने का पता लगा था। नक्सलियों के खिलाफ इसे सुरक्षाबलों की सबसे बड़ी कार्रवाई क्यों माना जा रहा है इसके पीछे कई वजह है। इससे पहले 2 अप्रैल को 23 नक्सली मार गिराए गए थे। नक्सलियों के साथ यह मुठभेड़ बीएसएफ और जिला रिजर्व गार्ड यानी डीआरजी की जॉइंट टीम के साथ हुई। इस घटना के साथ ही इस साल अब तक कांकेर समेत बस्तर इलाके के सात जिलों में सुरक्षा बलों के साथ नक्सलियों की हुई मुठभेड़ में 79 नक्सलियों को मार गिराया गया है। नक्सलियों के खिलाफ किसी एक ऑपरेशन में सुरक्षा बलों की यह सबसे बड़ी सफलताओं में से एक है। सुरक्षा बलों के लिए ये मुठभेड़ कई मायनों में अहम है। यह सफल ऑपरेशन जंगल के बीच अबूझमाड़ के अंदर सुरक्षा बलों के प्रवेश का प्रतीक है। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके को नक्सलियों का कोर इलाका माना जाता है। पिछले तीन दशकों से यह इलाका सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बना हुआ है। जंगलों और पहाड़ों के बीच का यह इलाका नक्सलियों के लिए अभेद्य गढ़ बन गया। इस मुठभेड़ ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि पिछले कई वारदातों में शामिल नक्सलियों का सफाया हो गया है।
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अबूझमाड़ की पहाड़ियां और जंगल दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में लगभग 4,000 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली हुई हैं, गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक नक्सल प्रभावित इलाकों की संख्या 38 है। प्रभावित जिलों की सबसे अधिक संख्या छत्तीसगढ़ में है, इसके बाद ओडिशा झारखंड मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र ,केरल, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश का नंबर आता है। कांकेर में जिस तरीके से सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन में तेजी दिखाई है उससे इस बात के साफ संकेत मिलते हैं कि आने वाले वक्त ऐसे और भी ऑपरेशन हो सकते हैं। मुख्य रूप से कांकेर के ठीक दक्षिण में नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों को कवर करती हैं। पहाड़ी इलाका, जंगल, सड़क, बुनियादी सुविधाओं का न होना और सशस्त्र विद्रोहियों की उपस्थिति से इस इलाके का एक बड़ा हिस्सा अब तक सरकारी सर्वेक्षण के दायरे से बाहर रहा है। यदि इसके भूभाग की बात करें तो इस इलाके का क्षेत्रफल गोवा जैसे राज्य से बड़ा है। इन जंगलों का उपयोग नक्सलियों द्वारा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले से ओडिशा (पूर्व में) आने- जाने के लिए एक गलियारे के रूप में किया जाता है।
साल के आखिरी में पिछले साल राज्य में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से कांकेर और पूर्व में नारायणपुर से अबूझमाड़ के दो मुख्य प्रवेश बिंदुओं पर कुछ नए पुलिस कैंप बनाए गए। अबूझमाड़ में एक बेस कैंप स्थापित किया गया और माना जा रहा है कि इससे मौजूदा ऑपरेशन संभव हो सका। कुछ ही दिन पहले एक चुनावी रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत में अब केवल नक्सलवाद की पूंछ बची है, जो छत्तीसगढ़ में है। मैं वादा करता हूं कि अगर नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो तीन साल में नक्सलवाद खत्म कर दूंगा।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक नक्सल प्रभावित इलाकों की संख्या 38 है। प्रभावित जिलों की सबसे अधिक संख्या छत्तीसगढ़ में है, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ इलाके को नक्सलियों का कोर इलाका माना जाता है। पिछले तीन दशकों से यह इलाका सुरक्षाबलों के लिए चुनौती बना हुआ है। जंगलों और पहाड़ों के बीच का यह इलाका नक्सलियों के लिए अभेद्य गढ़ बन गया। इस मुठभेड़ ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि पिछले कई वारदातों में शामिल नक्सलियों का सफाया हो गया है।इसके बाद ओडिशा झारखंड मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र ,केरल, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश का नंबर आता है। कांकेर में जिस तरीके से सुरक्षाबलों ने ऑपरेशन में तेजी दिखाई है उससे इस बात के साफ संकेत मिलते हैं कि आने वाले वक्त ऐसे और भी ऑपरेशन हो सकते हैं।
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