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चुनाव आयोग कैसे तय करता है चुनाव का खर्च?

आज हम आपको बताएंगे कि चुनाव आयोग चुनाव का खर्च कैसे तय करता है! आने वाले समय में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, इसी बीच मतदाताओं के मन में कई प्रकार के सवाल उमड़ रहे हैं, सवाल यह कि आखिर चुनाव करते समय कितना खर्चा आता है? चुनाव आयोग इन खर्चों का अनुमान कैसे लगता है? साथ ही साथ प्रत्येक उम्मीदवार का खर्चा कितना होता है? तो आज हम आपको इन्हीं सवालों के जवाब देने वाले हैं,

आपको बता दें कि साल 2024 की लोकसभा चुनाव की तारीख और फेज का ऐलान हो चुका है। किसी भी चुनाव में साम-दाम-दंड-भेद के तरीके की बात की जाती है। लेकिन इनमें दाम की भूमिका सबसे प्रभावी होती है। चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने पारदर्शिता के कई पैमाने तय किए हैं, जिनमें खर्च पर नियंत्रण भी शामिल है। चुनाव में एक प्रत्याशी के खर्चे की लिमिट कितनी है, इसका पूरा हिसाब-किताब बना हुआ है। इसमें चाय-बिस्किट से लेकर गुब्बारे और गाड़ी तक का हर ब्योरा शामिल करना होता है। किसी चुनाव में निर्वाचन आयोग की तरफ से प्रदेश की आबादी और मतदाताओं की संख्या के हिसाब से राज्यवार चुनाव खर्च की सीमा फिक्स की जाती है। 

इसमें प्रत्याशी की सार्वजनिक बैठक, रैली, विज्ञापन, पोस्टर, बैनर, वाहनों सहित अन्य खर्च शामिल होता है। प्रत्याशी चुनाव के दौरान निर्धारित सीमा से अधिक राशि खर्च नहीं कर सकते हैं। लोकसभा चुनाव में होने वाले चुनावी खर्च की लिमिट बीते दो दशक के दौरान करीब-करीब चार गुना तक बढ़ गई है। वहीं विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी पांच से छह गुना तक खर्च कर रहे हैं। अब इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रत्येक प्रत्याशियों को 95 लाख रुपये तक खर्च करने की छूट दी गई है। हालांकि राजनीतिक दलों को इस सीमा से छूट है। वहीं लोकल गायकों के लिए इसे 30 हजार या फिर असली बिल तय है। यानी सीधी सी बात यह है कि एक छोटे से छोटे खर्चे से लेकर बड़े से बड़ा खर्चा चुनाव आयोग के द्वारा पहले से ही तय कर लिया जाता है,जिसके अनुसार उम्मीदवारों को वह खर्च करना होता है,आपको यह जानकारी कैसी लगी, अपना जवाब हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर दीजिएगा!आयोग की ओर से नियम 90 में बदलाव किया गया था, जिसके बाद विधानसभा और लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार के चुनावी खर्चे की सीमा में बढ़ोतरी की गई थी। चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार उम्मीदवार को चुनावी खर्च करने के लिए एक अकाउंट खुलवाना होता है, जिसके माध्यम से ही उम्मीदवारों को खर्चा भी करना होता है। 

वहीं, 20 हजार से ज्यादा के खर्च का भुगतान चेक आदि के माध्यम से करना होगा। बता दें कि सभी उम्मीदवारों को रोजाना के खर्चे के लिए एक डायरी मेनटेन करनी होती है, जिसमें हर एक खर्चे का ब्यौरा होता है। इसमें चुनावी प्रचार के लिए किया गया छोटे से छोटा खर्चा भी शामिल होता है। ग्रामीण और शहरी इलाकों में किराए के कार्यालयों के लिए मासिक किराया 5 हजार और 10 हजार रुपये तय किया गया है। यहां तक कि इसमें गुब्बारों, झाड़ू, सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन कैमरों की कीमत भी तय की जाती है। चाय-समोसे के खर्च को भी इसमें जोड़ा जाता है। अब सोशल मीडिया पर विज्ञापनों पर खर्च को चुनावी खर्च का हिस्सा माना जाता है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक कप चाय की कीमत 8 रुपये और समोसे की कीमत 10 रुपये तक की गई है। बर्फी 200 रुपये प्रति किलो, बिस्कुट 150 रुपये प्रति किलो, एक ब्रेड पकौड़ा 10 रुपये का, एक सैंडविच 15 रुपये और जलेबी 140 रुपये प्रति किलो का रेट तय किया गया है। चुनाव में एक प्रत्याशी के खर्चे की लिमिट कितनी है, इसका पूरा हिसाब-किताब बना हुआ है। इसमें चाय-बिस्किट से लेकर गुब्बारे और गाड़ी तक का हर ब्योरा शामिल करना होता है। किसी चुनाव में निर्वाचन आयोग की तरफ से प्रदेश की आबादी और मतदाताओं की संख्या के हिसाब से राज्यवार चुनाव खर्च की सीमा फिक्स की जाती है। इसके साथ ही कार, बस और ऑटो जैसे वाहनों को किराये पर लेने का रेट प्रति दिन 750 और 3000 रुपये के बीच होनी चाहिए। मशहूर गायकों के लिए फीस 2 लाख रुपये या फिर असली बिल तय किया गया है। वहीं लोकल गायकों के लिए इसे 30 हजार या फिर असली बिल तय है। यानी सीधी सी बात यह है कि एक छोटे से छोटे खर्चे से लेकर बड़े से बड़ा खर्चा चुनाव आयोग के द्वारा पहले से ही तय कर लिया जाता है,जिसके अनुसार उम्मीदवारों को वह खर्च करना होता है,आपको यह जानकारी कैसी लगी, अपना जवाब हमारे कमेंट बॉक्स में जरूर दीजिएगा!

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