जीवन को सुंदर बनाना सीखिए
*जीवन को सुंदर बनाना सीखिए*
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👉 आप कंजूस मत बनिए । *"जोड़ने, जमा करने के चक्कर से बचकर "उदारता" का दरवाजा खुला रखिए ।"* आप खुदगर्ज मत बनिए । *दूसरों की "सेवा सहायता" के लिए भी प्रयत्नशील रहिए ।* आप रूखापन धारण मत कीजिए । *स्वयं "प्रसन्न" रहने और दूसरों को "प्रसन्न" करने का उद्योग किया कीजिए ।* आप शुष्क और नीरस मत बनिए, *अपने हृदय में "कोमलता", "दया", "करुणा", "भ्रातृभाव" के भावों को प्रवाहित किया कीजिए ।* आप उजड्ड और अभिमानी मत बनिए, *दूसरों का स्वागत-सत्कार "मधुर भाषण" से, "विनम्र व्यवहार" से संतुष्ट करते रहिए ।* आप कृतघ्न मत बनिए, *किसी के किए हुए "उपकार" को भूलिए मत और उसे समय-समय पर धन्यवाद पूर्वक प्रकट करते हुए, "प्रत्युपकार" के लिए प्रयत्नशील रहा कीजिए ।* अपने क्षेत्र को दोष मत लगाइए, वरन् पवित्र मानिए । अपने शरीर को, अपने परिवार को, अपने कार्य को, अपने स्वजन संबंधियों को, अपनी मातृभूमि को तुच्छ एवं घृणित मत समझिए, *वरन् उसमें "पवित्रता", "श्रेष्ठता" और "सात्विकता" की तत्वों को ढूँढ-ढूँढ कर विकसित कीजिए ।* कुरूपता गंदगी और अंधकार को हटाकर सौंदर्य, स्वच्छता और प्रकाश का प्रसार करिए।
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👉 हे आत्मन ! प्रेम की वीणा बजाते हुए जीवन को *"संगीतमय"* बनाओ, इसे एक *"सुंदर चित्र"* के रूप में उपस्थित करो । जिंदगी को एक *भावुक कविता* के रूप में रच डालो । *"प्रेम"* का मधु रस पान करो, खय्याम की तरह अपने प्याले को छाती से चिपकाए रहो, हाथ से मत छूटने दो । *"प्रेम" करो ! अपने आप से "प्रेम" करो, दूसरों से "प्रेम" करो, विश्व ब्रह्मांड में बिखरे हुए मूर्तिमान परमेश्वर से "प्रेम" करो । मनुष्यों ! "प्रेम" करो, यदि जीवन का अमृत रस चखना चाहते हो तो "प्रेम" करो । अपने अंतःकरण को "कोमल" बनाओ, "स्नेह" से उसे भर लो ।* इस पाठ पर बार-बार विचार करो और बार-बार अंतःकरण में गहराई तक उतारने की अनवरत साधना करते रहो ।
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