ग़ज़ल 360/35 : लोग सुनेंगे हँस कर अपनी--
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लोग सुनेंगे हँस कर अपनी राह लगेंगे
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महफ़िल महफ़िल दर्द सुनाने से क्या होगा !
आज नहीं तो कल सच का सूरज निकलेगा
झूठ अनर्गल बात बनाने से क्या होगा !
जब दामन के दाग़ बज़ाहिर दिखते हो
फिर दुनिया से दाग़ छुपाने से क्या होगा !
सत्ता की साज़िश में थे जब तुम भी शामिल
तुमसे फिर उम्मीद लगाने से क्या होगा !
ऊँची ऊँची आदर्शों की बातें करना-
सिर्फ़ हवा में गाल बजाने से क्या होगा !
ये न जगेंगे और न जगने वाले ही हैं
इन के सम्मुख शंख बजाने से क्या होगा !
प्रश्न तुम्हारा ’आनन’ नाक़िस बेमानी है
तुम क्या जानो दीप जलाने से क्या होगा !
-आनन्द.पाठक-
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