ग़ज़ल 359/34 : उसे ख़बर ही नहीं है --
1212---1122---1212---112/22
उसे ख़बर ही नहीं है, उसे पता भी नहीं
हमारे दिल में सिवा उसके दूसरा भी नहीं
Related Articles
न जाने कौन सा था रंग जो मिटा ही नहीं
मज़ीद रंग कोई दूसरा चढ़ा भी नहीं ।
जो एक बार तुम्हे यक ब यक कहीं देखा ,
ख़ुमार आजतलक है तो फिर बुरा भी नहीं।
भटक रहा है अभी तक इधर उधर यह दिल
सही तरह से किसी का अभी हुआ भी नहीं ।
किताब-ए-इश्क़ का तमहीद ही पढ़ा उसने
"ये इश्क़ क्या है" कभी ठीक से पढ़ा भी नहीं
ख़ला से, ग़ैब से आती है फिर सदा किसकी
वो कौन हैं? वो कहाँ है? कभी दिखा भी नहीं ।
तमाम लोग थे " आनन" को रोकते ही रहे
सफ़र तमाम हुआ और वह रुका भी नहीं ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
तमहीद = किसी किताब की प्रस्तावना , भूमिका, प्राक्कथन
This post first appeared on गीत ग़ज़ल औ गीतिका, please read the originial post: here