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अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर

 अनुभूतियाँ  133/20 : होली पर

;1:

रंग गुलालों का मौसम है

महकी हुई फ़ज़ाएँ भी है

कलियाँ कलियाँ झूम रही है

बहकी हुई हवाएँ भी हैं ।


;2;

रंगोली के रंग भरे हैं

चाहत के, कुछ प्रीति प्यार के

आ जाते तुम एक बार जो

आ जाते फिर दिन बहार के 





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अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर

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