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अनुभूतियाँ 133/20 : होली पर

अनुभूतियाँ 133/20: होली पर

1
रंग गुलालों का मौसम है
महकी हुई फिज़ाएँ भी हैं
कलियाँ कलियाँ झूम रही हैं
बहकी हुई हवाएँ भी हैं

2
रंगोली में रंग भरे हैं
चाहत के, कुछ प्रीति प्यार के
आ जाते तुम एक बार जो
आ जाते फिर दिन बहार के

"राधा" छुपती छुपती भागे
'कान्हा' ढूँढे भर पिचकारी
ग्वाल बाल की टोली आती
देख गोपियाँ देवै गारी



4
"प्रेम मुहब्बत भाईचारा"
होली का संदेश हमारा
गले मिलें औ' रंग लगाएँ
पर्व अनूठा अनुपम न्यारा

-आनन्द पाठक-

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