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ग़ज़ल 358/33 : चलो होली मनाएँ---



ग़ज़ल 358/33


1222---1222---1222---1222


चलो होली मनाएँ आ गया फिर प्यार का मौसम

गुलाबी हो रहा है मन, तेरे पायल की सुन छम छम


लगीं हैं डालियाँ झुकने, महकने लग गईं कलियाँ

हवाएँ भी सुनाने लग गईं अब प्यात का सरगम ।


समय यह बीत ना जाए, हुई मुद्दत तुम्हें रूठे

अरी ! अब मन भी जाओ, चली आओ मेरी जानम।


भरी पिचकारियाँ ले कर चली कान्हा की है टोली

इधर हैं ढूँढते ’कान्हा’,उधर राधा हुई बेदम ।


चुनरिया भींग जाए तो बदन में आग लग जाए

लुटा दे प्यार होली में, रहे ना दिल में रंज-ओ-ग़म । 


ये मौसम है रँगोली का, अबीरों का, गुलालों का

बुला कर रंजिशें सारी, गले लग जा मेरे हमदम ।


इसी दिल में है ’बरसाना’, ’कन्हैया’ भी हैं”राधा’ भी

तू अन्दर देख तो ’आनन’ दिखेगा वह युगल अनुपम ।


-आनन्द.पाठक-



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