ग़ज़ल 358/33
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चलो होली मनाएँ आ गया फिर प्यार का मौसम
गुलाबी हो रहा है मन, तेरे पायल की सुन छम छम
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लगीं हैं डालियाँ झुकने, महकने लग गईं कलियाँ
हवाएँ भी सुनाने लग गईं अब प्यात का सरगम ।
समय यह बीत ना जाए, हुई मुद्दत तुम्हें रूठे
अरी ! अब मन भी जाओ, चली आओ मेरी जानम।
भरी पिचकारियाँ ले कर चली कान्हा की है टोली
इधर हैं ढूँढते ’कान्हा’,उधर राधा हुई बेदम ।
चुनरिया भींग जाए तो बदन में आग लग जाए
लुटा दे प्यार होली में, रहे ना दिल में रंज-ओ-ग़म ।
ये मौसम है रँगोली का, अबीरों का, गुलालों का
बुला कर रंजिशें सारी, गले लग जा मेरे हमदम ।
इसी दिल में है ’बरसाना’, ’कन्हैया’ भी हैं”राधा’ भी
तू अन्दर देख तो ’आनन’ दिखेगा वह युगल अनुपम ।
-आनन्द.पाठक-
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