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ग़ज़ल 350[25} चुनावों का ये मौसम

ग़ज़ल 350

1222---1222---1222---1222


चुनावों के ये मौसम हैं, हमें सपने दिखाएगा

घिए नारे पिटे वादे, वही फिर से सुनाएगा ।


थमा कर झुनझुना हमको, हमें बहला रहा कब से

सभी घर में है ख़ुशहाली, वो टी0वी0 पर दिखाएगा


सजा कर आँकड़े संकल्प पत्रों में हमे देगा

वो अपनी पीठ अपने आप ख़ुद ही थपथाएगा ।


किनारे पर खड़े होकर नसीहत करना आसाँ है

उतर कर आ समन्दर में , नसीहत भूल जाएगा


इधर टूटे हुए चप्पू , उधर दर्या है तूफानी

ये तेरी नाव जर्जर है, इसे कैसे बचाएगा ?


ज़मी मेरी ,शजर मेरा, मिले क्यों और को छाया

वो खुद ही काट कर दो-चार शाख़ाएं गिराएगा।


सभी अपने घरों में बन्द हो अपना ही सोचेंगे

लगेगी आग बस्ती में ,बुझाने कौन आएगा ।


फक़त जुमलों से कब भरता किसी का पेट है, प्यारे

सुनहरे आँकडो से कब तलक सच को छुपाएगा ?


किसी की अन्ध भक्ति में चलेगा बन्द कर आँखें

गिरेगा तू अगर ;आनन; ग़लत किसको बताएगा 


-आनन्द.पाठक-



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