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अनुभूतियाँ 126/13

 अनुभूतियाँ 126/13

      :1:

क़स्में खाना, वादे करना
वचन निभाना आता है क्या ?
रात घनेरी जब जब होगी
दीप जलाना आता है क्या ?

   :2:
रंज किसी का, गुस्सा मुझ पर
ये तो कोई बात न होती ।
अगर नहीं तुम अपने होते
किसके काँधे रख सर रोती

  :3:
बीत गई जो बातें छोड़ॊ
गुस्सा थूको, अब तो हँस दो
मैं  हारी अब गले लगा लो
भुजपाशों का बंधन कस दो 


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अनुभूतियाँ 126/13

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