गीत 80: दीपावली पर एक गीत
ज्योति का पर्व है आज दीपावली
हर्ष-उल्लास से मिल मनाएँ सभी
Related Articles
’स्वागतम’ में खड़ी अल्पनाएँ मेरी
आप आएँ सभी मेरी मनुहार पर
एक दीपक की बस रोशनी है बहुत
लौट जाए अँधेरा स्वयं हार कर
जिस गली से अँधेरा गया ही नहीं
उस गली में दिया मिल जलाएँ सभी
राह भटके न कोई बटोही कहीं
एक दीपक जला कर रखो राह में
ज़िंदगी के सफ़र में सभी हैं यहाँ
खिल उठे रोशनी घर के आँगन में जव
फिर मुँडेरों पे दीए सजाएँ सभी ।
आग नफ़रत की नफ़रत से बुझती नहीं
आज बारूद की ढेर पर हम खड़े
युद्ध कोई समस्या का हल तो नहीं,
व्यर्थ ही सब हैं अपने ’अहम’ पर अड़े
आदमी में बची आदमियत रहे
प्रेम की ज्योति दिल में जगाएँ सभी
स्वर्ग से कम नहीं है हमारा वतन
आँख कोई दिखा दे अभी दम नहीं
साथ देते हैं हम आख़िरी साँस तक
बीच में छोड़ दें हम वो हमदम नहीं
देश अपना हमेशा चहकता रहे
दीपमाला से इसको सजाएँ सभी
-आनन्द.पाठक-
This post first appeared on गीत ग़ज़ल औ गीतिका, please read the originial post: here