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ग़ज़ल 341/16 : तेरी गलियों से जब से हैं जाने लगे

 ग़ज़ल 341


212---212---212---212


तेरी गलियों में जब से हैं जाने लगे

रूह से जिस्म तक मुस्कराने लगे


दूर से जब नज़र आ गया बुतकदा

आप का घर समझ सर झुकाने लगे


इश्क़ दर्या है जिसका किनारा नही

यह समझने में मुझको ज़माने लगे


देखने वाला ही जब नही रह गया

किसकी आमद में खुद को सजाने लगे


ये ज़रूरी नहीं सब ज़ुबां ही कहे

दर्द आँखों से भी हैं बताने लगे


तुमने मुझको न समझा न जाना कभी

दूसरों के कहे में तुम आने लगे ।


राह-ए-हक़ से तुम ”आनन’ न गुज़र कभी

इसलिए सब हक़ीक़त फ़साने लगे ।


-आनन्द.पाठक-

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