ग़ज़ल ३४०/१५
२१२---२१२---२१२---२१२
क्यों अँधेरों में जीते हो मरते हो तुम
रोशनी की नहीं बात करते हो तुम
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रंग चेहरे का उड़ता क़दम हर क़दम
सच की गलियों से जब भी गुज़रते हो तुम
कौन तुम पर भरोसा करे ? क्यों करे?
जब कि हर बात से ही मुकरते हो तुम
राह सच की अलग, झूठ की है अलग
राह ए हक पर भला कब ठहरते हो तुम ?
वो बड़े लोग हैं, उनकी दुनिया अलग
बेसबब क्यों नकल उनकी करते हो तुम ?
वक़्त आने पे लेना कड़ा फ़ैसला
उनके तेवर से काहे को डरते हो तुम ?
तुमको उड़ना था ’आनन; नहीं उड़ सके
तो परिंदो के पर क्यों कतरते हो तुम ?
-- आनन्द,पाठक--
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