ग़ज़ल 33 [08]
221--2121----1221---212
कुछ लोग बस हँसेंगे, तुझे पाएमाल कर
मिलना कभी जो उनसे तो बच कर सँभाल कर
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कितना बदल गया है ज़माना ये आजकल
दिल खोलना कभी तो, जरा देखभाल कर
लोगों ने कुछ भी कह दिया तू मान भी लिया
अपनी ख़िरद का कुछ तो ज़रा इस्तेमाल कर
वह वक़्त कोई और था, यह वक़्त और है
जो कह रहा निज़ाम, न उस पर सवाल कर
सागर से मोतियों को जो लाना पड़े तुझे
गहराइयॊ का तू न कभी कुछ ख़याल कर
सौदा न कर वतन का, न अपनी ज़मीर का
मिट्टी की खुशबुओं को न तू पाएमाल कर
इन बाजुओं में दम अभी हिम्मत है, हौसला
फिर क्यों करेगा फ़ैसला, सिक्के उछाल कर
’आनन’ सभी की ज़िंदगी तो एक सी नहीं
हासिल है तेरे पास जो, उससे कमाल कर
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
ख़िरद = अक़्ल
पाएमाल =बरबाद
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