325[90 ई]
212---212---212---212
आजकल आप जाने न रहते किधर
अब तो मिलती नहीं आप कि कुछ ख़बर
इश्क नायाब है सब को हासिल नहीं
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कौन कहता मुहब्बत है इक दर्द-ए-सर
ख़्वाब में जैसा देखा था, सोचे थे तुम
वैसी होती नही है कोई भी सहर
काम ऐसा न कर ज़िंदगी में कभी
ख़ुद चुरानी पड़े हर किसी से नज़र
छोड़ कर जो गया हम सभी को कभी
कौन आया है प्यारे यहाँ लौट कर
वक़्त रुकता नहीं है किसी के लिए
तय अकेले ही करना पड़ेगा सफ़र
दिल जो कहता है तुझसे उसी राह चल
क्यों भटकता है ;आनन’ इधर से उधर
-आनन्द.पाठक-
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