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गज़ल 320(85) : गर्म आने लगी है हवाएँ इधर

गजल 320(85)

212---212---212---212

गर्म आने  लगीं है हवाएँ इधर
कुछ जली बस्तियाँ कल की होगी खबर

'पार्टियाँ' चल पड़ी रोटियाँ सेकने
सब को आने लगी हैं अब कुर्सी नजर

आग की यह लपट कब हैं पहचानतीं
यह है 'जुम्मन' का घर या 'सुदामा' का घर

घर परिंदों के थे छाँव देता रहा
काटने लग गए हम वही अब शजर

दिल का अपना अँधेरा मिटाया नहीं
और तलब है तुम्हे एक बाद ए सहर

प्यार की बात क्यों लोग करते नहीं
जानते हैं सभी जिंदगी मुख्तसर

अपनी गजलों में 'आनन' मुहब्बत तो लिख
तेरी गजलों का होगी कभी तो असर 

- आनन्द पाठक-



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