ग़ज़ल 315 [ 80इ]
212---212---212---212
ये अलग बात है वो मिला तो नहीं
दिल के एहसास से वह जुदा तो नहीं
कौन आवाज़ देता है छुप कर मुझे
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आजतक कोई मुझको दिखा तो नहीं
दिल है तोड़ा सभी ने मेरा बारहा
हादिसा ऐसा कोई नया तो नहीं
ध्यान में और लाऊँ मैं किसको भला
आप जैसा कोई दूसरा तो नहीं
रंग चेहरे का क्यों उड़ गया आप का
सामने दिख गया आइना तो नहीं
आप किस बात पर इतने मगरूर हैं
आप भी आदमी हैं ख़ुदा तो नहीं
लाख ’तीरथ’ किए आ गए तुम वहीं
द्वार मन का था खुलना, खुला तो नहीं
आप जैसा भी चाहें समझ लीजिए
वैसे ’आनन’ है दिल का बुरा तो नहीं
-आनन्द.पाठक-
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