Get Even More Visitors To Your Blog, Upgrade To A Business Listing >>

ग़ज़ल 372 : शहर का उन्वान कुछ बदला हुआ है


ग़ज़ल 372

2122---2122---2122


शहर का उन्वान कुछ बदला हुआ है

क्या कोई फिर रात में घपला हुआ है ?


लोग सहमें है , नज़र ख़ामोश है

आस्थाओं पर कहीं हमला हुआ है ?


लोग क्यों  नज़रें चुरा कर चल रहे अब,

मन का दरपन फिर कहीं धुँधला हुआ है ।


शहर के हालात कुछ अच्छे न दिखते,

मज़हबी सरमस्त से गँदला हुआ है ।


रोशनी के नाम पर आए अँधेरे ,

कौन सा यह रास्ता निकला हुआ है ?


मुफ़्त राशन, मुफ़्त पानी, मुफ़्त बिजली

आदमी बस झूठ से बहला हुआ है ।


आज ’आनन’ बुद्ध गाँधी की ज़रूरत

आदमी जब स्वार्थ का पुतला हुआ है ।


-आनन्द.पाठक-


Share the post

ग़ज़ल 372 : शहर का उन्वान कुछ बदला हुआ है

×

Subscribe to गीत ग़ज़ल औ गीतिका

Get updates delivered right to your inbox!

Thank you for your subscription

×