दोहे 15
वोट लिए पंछी उड़े अपने अपने गाँव
बूढ़ा बरगद ठूँठ सा खड़ा रहा उसी ठाँव
दल बदली करते करत दूँढ रहे स्थान
कहाँ मेरो औक़ात कहाँ मेरो सम्मान ।
बाँध गठरिया झूठ की चले चुनाव की ओर
नेता जी हर्षन लगे जनता भाव विभोर
जनता सीधी गाय है दूह सके तो दूह
चाहे ठठरी ही खड़ी देगी दूध ज़रूर
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