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दोहे 16

 दोहे 16

दोहे 16

बुधना खुश ह्वै नाचता छेड़े लम्बी तान
मिरी ग़रीबी से बने नेता कई महान ।

’नंदी ग्राम’ की आग में रहे रोटियाँ सेंक
जनता की सरकार करे, जनता का आखेट

गमले वाले पौध भी ठोंक रहे है ताल
बरगद वाले भजन करे ले खजड़ी करताल

कल ही जो पैदा हुए आज ’युवा-सम्राट’
कैसी कैसी उपाधियाँ करते बन्दर बाँट

गमले उगे गुलाब भी देते हैं उपदेश
बरगद सारे खड़े रहे शीश झुका दरवेश

राजनैतिक मजबूरियाँ हैं श्रद्धा के रूप
अँधियारा कहना पड़े हो विकास की  धूप

क्या जाने क्या होत है यह परमाणु संधि
हाइ कमान से पूछिए हम तो सेवक अंध

-आनन्द.पाठक-

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