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अनुभूतियाँ 134/21

 अनुभूतियाँ 134/21


:1:

मन का क्या है उड़ता रहता

एक जगह पर कब ठहरा है

लाख लगाऊँ बंदिश इस पर

पगला कब मेरी सुनता  है ।

;2:

पूजन अर्चन में जब बैठूँ

इधर उधर मन भागे फिरता

रिचा मंत्र बस है जिह्वा पर

जाने कहाँ कहाँ मन रमता 

:3:

उचटे मन की दवा न कोई

उजडी उजडी दुनिया लगती

खुशियाँ जैसे हुई पराई

आँखों मे बस पीड़ा  बसती

:4:

एक दिखावा सा लगता है

हाल पूछना -"जी कैसे हो?

बिना सुने उत्तर चल देना

अर्थहीन लगता जैसे हो ।

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अनुभूतियाँ 134/21

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