क्षणिकाएं 06
सूरज निकले उससे पहले
या डूबे तो बाद में उसके
रोज़ हज़ारों क़दम निकलते
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कुआँ खोदते पानी पीते
तिल तिल कर हैं मरते ,जीते
सबकी अपनी अलग व्यथा है
महानगर की यही कथा है ।
-आनन्द.पाठक-
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