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क्षणिकाएँ 07

 क्षणिकाएँ 07


बचपन में जब बाग़ों में

रंग बिरंगी कभी तितलियाँ 

बैठा करती थी फूलों पर 

पीछे पीछे भागा करता 

 जब भी उनको छूना चाहा, 

 उड़ जाती थीं इतरा कर

 मुझे थका कर ।

समय कहाँ रुकता जीवन में

वही तितलियाँ बैठ गईं अब

अपने अपने फूलों पर

पास से गुज़रूँ, पूछे हँस कर

"अब घुटनों का दर्द तुम्हारा, कैसा कविवर" ?

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क्षणिकाएँ 07

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