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इमली के फायदे, उपयोग और नुकसान/Benefits, uses and harms of tamarind

   



 

भारत में सभी गांवों में खूब ऊंचे, हरे-भरे फली से लदे झाड़ नजर आते है, जो 70-80 फुट तक ऊंचे रहते हैं। चारों ओर इसकी टहनियां होती है। इसके पत्ते हरे, छोटे और संयुक्त प्रकार के होते हैं। ये पत्ते खाने में खट्टे होते हैं। इसके पत्ते और फूल एक ही समय में आते हैं, इनसे झाड़ों की रौनक और भी बढ़ जाती है। इसकी झाड़ लंबी अवधि का दीर्घायु होती है। इसके सभी भागों का औषधि के रूप में उपयोग होता है। इमली का फल कच्चा हरा, पकने के बाद लाल रंग का हो जाता है। पकी इमली का स्वाद खट्टा-मीठा होता है। इसे खाने के बाद दांत तक खट्टे होने लगते हैं। एक इमली के फल में तीन से लेकर दस बीज निकलते हैं। ये बीज काले, चमकदार व बहुत कड़े होते हैं। पकी इमली का प्रयोग खट्टी सब्जी के लिये करते है। इसकी चटनी भी बनाते हैं। इससे सब्जी स्वादिष्ट बन जाती है। एक साल पुरानी इमली के गुण अधिक होते हैं। कच्ची तथा नयी पकी इमली कम गुणकारी होती है। कच्ची इमली खट्टी, भारी व वायुनाशक होती है। पकी इमली एसीडिटी कम करने वाली, कान्स्टीपेशन दूर करने वाली, गर्म तासीर वाली, कफ तथा वायुनाशक प्रकृति की होती है। सूत्री इमली हृदय के लिए हितकारी तथा हल्की तासीर की मानी जाती है। इससे थकान, भ्रम-ग्लानि दूर हो जाती है। इमली पित्तनाशक है, इमली के पत्ते सूजन दूर करने वाले गुणों से भरपूर होते हैं। इमली की तासीर ठंडी होती है। इसे कम प्रमाण में ही सेवन करने का फायदा होता है।


बहुमूत्र या महिलाओं का सोमरोग :

 इमली का गूदा ५ ग्राम रात को थोड़े जल में भिगो दे, दूसरे दिन प्रातः उसके छिलके निकालकर दूध के साथ पीसकर और छानकर रोगी को पिला दे । इससे स्त्री और पुरुष दोनों को लाभ होता है । मूत्र- धारण की शक्ति क्षीण हो गयी हो या मूत्र अधिक बनता हो या मूत्रविकार के कारण शरीर क्षीण होकर हड्डियाँ निकल आयी हो तो इसके प्रयोग से लाभ होगा ।

अण्डकोशों में जल भरना :

 लगभग ३० ग्राम इमली की ताजा पत्तियाँ को गौमूत्र में औटाये । एकबार मूत्र जल जाने पर पुनः गौमूत्र डालकर पकायें । इसके बाद गरम – गरम पत्तियों को निकालकर किसी अन्डी या बड़े पत्ते पर रखकर सुहाता- सुहाता अंडकोष पर बाँध कपड़े की पट्टी और ऊपर से लगोंट कस दे । सारा पानी निकल जायेगा और अंडकोष पूर्ववत मुलायम हो जायेगें ।

पीलिया या पांडु रोग :

इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म १० ग्राम बकरी के दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करने से पान्डु रोग ठीक हो जाता है।

आग से जल जाने पर :

इमली के वृक्ष की जली हुई छाल की भष्म गाय के घी में मिलाकर लगाने से, जलने से पड़े छाले व् घाव ठीक हो जाते है ।

पित्तज ज्वर :

इमली २० ग्राम १०० ग्राम पाने में रात भर के लिए भिगो दे। उसके निथरे हुए जल को छानकर उसमे थोड़ा बूरा मिला दे। ४-५ ग्राम इसबगोल की फंकी लेकर ऊपर से इस जल को पीने से लाभ होता है।


सर्प , बिच्छू आदि का विष :

इमली के बीजों को पत्थर पर थोड़े जल के साथ घिसकर रख ले। दंशित स्थान पर चाकू आदि से छत करके १ या २ बीज चिपका दे। वे चिपककर विष चूसने लगेंगे और जब गिर पड़े तो दूसरा बीज चिपका दें। विष रहने तक बीज बदलते रहे ।

खांसी :

 टी.बी. या क्षय की खांसी हो (जब कफ़ थोड़ा रक्त आता हो) तब इमली के बीजों को तवे पर सेंक, ऊपर से छिलके निकाल कर कपड़े से छानकर चूर्ण रख ले। इसे ३ ग्राम तक घृत या मधु के साथ दिन में ३-४ बार चाटने से शीघ्र ही खांसी का वेग कम होने लगता है । कफ़ सरलता से निकालने लगता है और रक्तश्राव व् पीला कफ़ गिरना भी समाप्त हो जाता है 

ह्रदय में जलन :

पकी इमली का रस मिश्री के साथ पिलाने से ह्रदय में जलन कम हो जाती है ।

नेत्रों में गुहेरी होना :

इमली के बीजों की गिरी पत्थर पर घिसें और इसे गुहेरी पर लगाने से तत्काल ठण्डक पहुँचती है ।

चर्मरोग :

 लगभग ३० ग्राम इमली (गूदे सहित) को १ गिलाश पानी में मथकर पीयें तो इससे घाव, फोड़े-फुंसी में लाभ होगा ।
उल्टी होने पर पकी इमली को पाने में भिगोयें और इस इमली के रस को पिलाने से उल्टी आनी बंद हो जाती है ।

भांग का नशा उतारने में :

नशा उतारने के लिये शीतल जल में इमली को भिगोकर उसका रस निकालकर रोगी को पिलाने से उसका नशा उतर जाएगा ।

खूनी बवासीर :

 इमली के पत्तों का रस निकालकर रोगी को सेवन कराने से रक्तार्श में लाभ होता है ।
अगर किसी को चेचक हो गयी हो तो इमली के पत्ते और हल्दी को पानी में पीस कर शरबत बनाएं और रोगी को चीनी या नमक मिला कर पिला देने से बहुत आराम मिलता है।

शीघ्रपतन :

 लगभग ५०० ग्राम इमली ४ दिन के लिए जल में भिगों दे । उसके बाद इमली के छिलके उतारकर छाया में सुखाकर पीस ले । फिर ५०० ग्राम के लगभग मिश्री मिलाकर एक चौथाई चाय की चम्मच चूर्ण (मिश्री और इमली मिला हुआ) दूध के साथ प्रतिदिन दो बार लगभग ५० दिनों तक लेने से लाभ होगा ।
*लगभग ५० ग्राम इमली, लगभग ५०० ग्राम पानी में दो घन्टे के लिए भिगोकर रख दें उसके बाद उसको मथकर मसल लें । इसे छानकर पी जाने से लू लगना, जी मिचलाना, बेचैनी, दस्त, शरीर में जलन आदि में लाभ होता है तथा शराब व् भांग का नशा उतर जाता है ।
 
वीर्य – पुष्टिकर योग :

इमली के बीज दूध में कुछ देर पकाकर और उसका छिलका उतारकर सफ़ेद गिरी को बारीक पीस ले और घी में भून लें, इसके बाद सामान मात्रा में मिश्री मिलाकर रख लें । इसे प्रातः एवं शाम को ५-५ ग्राम दूध के साथ सेवन करने से वीर्य पुष्ट हो जाता है । बल और स्तम्भन शक्ति बढ़ती है तथा स्व-प्रमेह नष्ट हो जाता है ।

शराब एवं भांग का नशा उतारने में :

 नशा समाप्त करने के लिए पकी इमली का गूदा जल में भिगोकर, मथकर, और छानकर उसमें थोड़ा गुड़ मिलाकर पिलाना चाहिए ।
*इमली के गूदे का पानी पीने से वमन, पीलिया, प्लेग, गर्मी के ज्वर में भी लाभ होता है ।
ह्रदय की दाहकता या जलन को शान्त करने के लिये पकी हुई इमली के रस (गूदे मिले जल) में मिश्री मिलाकर पिलानी चाहियें ।

कान दर्द कर रहा हो तो

 इमली के गूदे का दो चम्म्च रस ४ चम्म्च तिल के तेल में मिला कर पका कर रख लीजिये। अब इस तेल को कान में डालिये।
बदन में कहीं खुजली हो रही हो तो इमली केपत्तों का रस लगा सकते हैं।

लू-लगना :

पकी हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलओं पर मलने से लू का प्रभाव समाप्त हो जाता है । यदि इस गूदे का गाढ़ा धोल बालों से रहित सर पर लगा दें तो लू के प्रभाव से उत्पन्न बेहोसी दूर हो जाती है ।

चोट – मोच लगना :
 
इमली की ताजा पत्तियाँ उबालकर, मोच या टूटे अंग को उसी उबले पानी में सेंके या धीरे – धीरे उस स्थान को उँगलियों से हिलाएं ताकि एक जगह जमा हुआ रक्त फ़ैल जाए ।

हड्डी टूट गयी हो तो 

इमली के गुदे को तिल के तेल के साथ मिला कर पेस्ट बताएं और लेप कर दें ,हर चार घंटे पर लेप बदल दीजिये। ५ दिन यह लेप लगा रहेगा तो हड्डी जुड़ जायेगी।

गले की सूजन :

इमली १० ग्राम को १ किलो जल में अध्औटा कर (आधा जलाकर) छाने और उसमें थोड़ा सा गुलाबजल मिलाकर रोगी को गरारे या कुल्ला करायें तो गले की सूजन में आराम मिलता है ।
सांप या किसी जहरीले जीव ने काट लिटा है तो १६० ग्राम इमली के पत्तों का रस २५ ग्राम सेंधा नमक मिलकर पी लेने से जहर निष्प्रभावी हो जाएगा।
इमली में साइट्रिक एसिड ,टार्टरिक एसिड, पोटैशियम बाई टारटरेट ,फास्फोटिडिक एसिड, इथाइनोलामीन , सेरिन, इनोसिटोल, अल्केलायड, टेमेरिन , केटेचिन, बाल सेमिन, पालीसैकेराइड्स, नॉस्टार्शियम आदि तत्व पाये जाते हैं.यही कारण है कि इमली अधिक खा लेने से तेज़ाब का काम करती है और हमारी त्वचा और गुणसूत्रों को सीधे प्रभावित करती है। 


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