बीमार दिल को ठीक करने के लिए चिकित्सा के क्षेत्र में शोधरत चिकित्सकों ने कुछ उपलब्धियां अवश्य हासिल की हैं, पर अभी तक दिल पूरी तरह काबू में नहीं आ पाया है। दिल की खासियत ही कुछ ऐसी है कि जरा-सा नाम लो और धड़कनें बढ़ जाती हैं। यदि हम अपने रहन-सहन, खान-पान का ध्यान रखें और इस चकाचौंध की जिंदगी में तनावमुक्त रह सकें, तो निश्चय ही दिल को बेकाबू होने से रोका जा सकता है
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हृदय संबंधी बीमारियों के मुख्य लक्षण
*डिसनिया : जरा-सा परिश्रम कर लेने पर सांस लेने में तकलीफ होने लगना, ‘श्वासकृच्छ’ हो जाना हृदय संबंधी रोगों का प्रथम लक्षण है।
*आर्थोपनिया : लेटने पर सांस लेने में कष्ट होना।
*पेरोक्सिसमल नाक्चरनल डिसनिया : रात में सोते समय फेफड़ों में द्रव इकट्ठा होने लगता है, जिस कारण रोगी बेचैनी महसूस करता है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।
*पल्मोनरी ओडिमा : सांस लेने में अत्यधिक तकलीफ होना, सफेद, झागदार एवं खून मिला बलगम खांसने पर निकलता है।
*चाइनी स्पेक्स रेसपीरेशन (चाइनी स्पेक्स श्वसन) : एक विशेष प्रकार का पिरिआडिक श्वसन, मुख्यतया हृदयगति की न्यूनता की स्थिति में
*पेरीफेरल ओडिमा : हृदयगति की न्यूनता अथवा असफलता की स्थिति में शरीर में लवण एवं पानी के जमाव के कारण पैरों पर एवं एंकिल जोड़ पर (पैर को टांग से जोड़ने वाला जोड़) सूजन आ जाती है। रोग की तीक्ष्णता में उदरगुहा एवं फेफड़ों के छिद्रों में भी पानी भर सकता है और सूजन आ सकती है।
*सिनकोप : मूर्छित होना अथवा अचेतन अवस्था। इसमें धड़कनें धीमी एवं कम हो जाती हैं।
चेहरे पर पीलापन, पसीना धीमी नाड़ी गति एवं उल्टी महसूस होना, आंखों से दिखाई न देना एवं कानों में आवाज होने पर भी ‘सिनकोप’ की अवस्था प्रकट हो सकती है।
कार्डियक अरेस्ट – हृदयगति का रुक जाना : यह अचानक होता है और इसमें हृदय की धड़कनें पूरी तरह बंद हो जाती हैं। इसमें हृदय के निचले प्रकोष्ठ में पेशियों में अचानक ऐंठन होने लगती है और तंतु बनने लगते हैं। इसके लिए ‘पुनर्जीवन’ प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें हृदय के ऊपर,छाती पर तेज मालिश करना, हाथ से थपकाना एवं मुंह से मुंह सटाकर सांस देना आवश्यक है। यदि 2-3 मिनट में रक्त का प्रवाह शुरू नहीं हो पाता, तो दिमाग को गंभीर आघात पहंचता है, जिसका कोई उपचार नहीं है। ‘अरेस्ट’ की अवस्था में छाती की स्टरनम हड्डी (बीचोबीच) पर एक हलका मुक्का मारना चाहिए एवं मरीज की टांग 90 के कोण पर कर देनी चाहिए। यदि फिर भी धड़कन शुरू न हो, तो हृदय को दोनों हाथों से (बायां हाथ नीचे, दाहिना हाथ बाएं हाथ के ऊपर रखकर) छाती पर बाई तरफ नीचे की तरफ दबाना चाहिए एवं इसी प्रकार झटके देते रहना चाहिए। बीच-बीच में मुंह से मुंह सटाकर अथवा रोगी के एवं अपने मुंह के बीच किसी नली द्वारा सांस देते रहना चाहिए। इस तरह के लयबद्ध झटकों की संख्या प्रतिमिनट 60 से 100 होनी चाहिए। यदि मुंह से मुंह में सम्भव न हो, तो मुंह से नाक में सांस देनी चाहिए। 5-15 झटकों के बीच में एक बार अवश्य सांस देनी चाहिए।
चेस्टपेन : हृदय में पीड़ा, हृदय दौरे का मुख्य लक्षण है। इसे एंजाइना कहते हैं। ऐसा रूधिर प्रवाह बाधित होने के कारण होता है।
पलपिटेशन : दिल की तेज एवं बढ़ी हुई धड़कनें। परिश्रम अथवा बेचैनी की वजह से ऐसा होता है।
थकान, रात में अत्यधिक परेशान होना, खांसी।