चिरायता (Swertia chirata Ham) यह जेंशियानेसिई (Gentianaceae) कुल का पौधा है, जिसका प्रेग देशी चिकित्सा पद्धति में प्राचीन काल से होता आया है। यह तिक्त, बल्य (bitter tonic), ज्वरहर, मृदु विरेचक एवं कृमिघ्न है, तथा त्वचा के विकारों में भी प्रयुक्त होता है। इस पौधे के सभी भाग (पंचांग), क्वाथ, फांट या चूर्ण के रूप में, अन्य द्रव्यों के साथ प्रयोग में जाए जाते हैं। इसके मूल को जंशियन के प्रतिनिधि रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।चिरायता के बारे में आमतौर पर अधिकांश लोग जानते हैं, क्योंकि प्राचीन समय से इसका उपयोग आयुर्वेदिक व घरेलू उपचारों में होता आया है। चिरायता स्वाद में कड़वा होता है। चिरायता मूल रूप से नेपाल, कश्मीर और हिमाचल में पाया जाता है। इसके फूल बरसात और फल सर्दियों के मौसम में आते हैं।
चिरायता एक एंटीबॉयोटिक औषधि है, जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। इसका रोजाना सेवन करने पर कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और बीमारियां दूर रहती हैं।
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चिरायता बनाने की विधि (Method of Swertia Chirata)
सूखी तुलसी पत्ते का चूर्ण, नीम की सूखी पत्तियों का चूर्ण, सूखे चिरायते का चूर्ण समान मात्रा (100 ग्राम) मिलाकर एक डिब्बे में भर कर रख लीजिए। मलेरिया, बुखार व अन्य रोगों की स्थिति में दिन में 3 बार दूध से सेवन करने से लाभ होगा।
चिरायता इस्तेमाल का तरीका
चिरायता बनाने का आसान और सरल उपाय है कि इसका चाय की तरह सेवन किया जाए। जिस तरह आप चाय बनाते हैं यानी सबसे पहले पानी उबालें। इसके बाद इसमें एक चम्मच चिरायता की जड़ का इस्तेमाल करें। इस मिक्सचर को तकरीबन आधा घंटे तक रखें। इसके बाद इसे छानें और चिरायता चाय का मजा लें।
कैंसर और ट्यूमर से बचाव
तमाम अध्ययनों से पता चला है कि चिरायता के जड़, पत्तों, टहनी, फल में 24 किस्म के तत्व मौजूद होते हैं। ये तमाम तत्व कैंसर को प्राकृतिक रूप से ठीक करने में मदद करते हैं। आस्ट्रेलिया में स्थित यूनिवर्सिटी आफ क्वीन्सलैंड में हुए अध्ययन के मुताबिक चिरायता में पांच किस्म के स्टेराइडल सैपोनिन्स होते हैं। वास्तव में यही सैपोनिन्स कैंसर से लड़ने में सहायक है। इसके अलावा इसमें कई किस्म के एंटीआक्सीडेंट एसिड, एंटी-इन्फ्लेमेटरी, तेल, रसायन आदि होते हैं जो कि इस बीमारी से बचाव के जरूरी है। यही नहीं चिरायता की सेल की हो रही क्षति रोकन में भी महति भूमिका है।
खून साफ करें चिरायता
हजारों सालों से चिरायता नामक जड़ी-बूटी का इस्तेमाल त्वचा संबंधी रोगों के लिए किया जाता है, क्योंकि इसके सेवन से रक्त को साफ करने में मदद मिलती है। इसके अलावा चिरायता एक एंटी-बायोटिक औषधि है, जो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ान में मदद करती है। इसके रोजाना सेवन करने से कीटाणु नष्ट होते हैं और बीमारियां दूर रहती है। आयुर्वेद के अनुसार चिरायता का रस कई किस्म की बीमारियों से लड़ने में सहायक है मसलन कैंसर, ट्यूमर का विकास, सर्दी-जुखाम, रुमेटाइड अर्थराइटिस, दर्द, जोड़ों के दर्द, त्वचा सम्बंधी बीमारी, थकन, कमजोरी, मस्लस में दर्द, सेक्स सम्बंधी समस्याएं, सिरदर्द, गठिया, पाचनतंत्र सम्बंधी समस्या, लिवर सम्बंधी समस्या, संक्रमण आदि। आइए चिरायता के त्वचा और स्वास्थ्य लाभों की जानकारी लेते हैं।
लिवर की सुरक्षा
चूंकि चिरायता पेशाब की स्थिति को भी बेहतर करता है। यही नहीं पसीने आने में भी यह मदद करता है। इसका मतलब साफ है कि यह लिवर के लिए लाभकारी तत्व है। यह सूजन और जलन से तो बचाता ही है। साथ पेट में हा रही तमाम किस्म की समस्याओं को भी रोकता है। इससे लिवर की सुरक्षा तो होती है साथ ही कई अन्य समस्याएं आने से पहले ही निपट जाती हैं। यह हमारे रक्त को साफ करता है और रक्त संचार को बेहतर करता है। इसके अलावा चिरायता का एक बड़ा गुण यह भी है कि रक्त से टाक्सिन को निकाल बाहार करता है। इसके अलावा यह टिश्यू को क्षति होने से रोकता है जिससे लिवर के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
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त्वचा सम्बंधी समस्या का निदान
एग्जीमा, फंगस, कील-मुंहासे आदि तमाम त्वचा सम्बंधी समस्याओं को चिरायता से निदान किया जा सकता है। यही नहीं इससे बैक्टीरियल इंफेक्शन को भी दूर किया जा सकता है। जिन महिलाओं को मौसम बदलने से या फिर बरसात के मौसम में मुंहासों की समस्या होती है, उन्हें आवश्यक तौर पर इसका उपयोग करना चाहिए।
सर्दी-जुखाम
यह इसका सबसे आम और सर्वविदित गुण है। तमाम जड़ी बूटियों की तरह चिरायता भी सर्दी-जुखाम से लड़ने में सहायक है। इसका सेवन कोई भी कर सकता है। जिन लोगों को ठंड लगने की शिकायत होती है खासकर उन्हें जिन्हें सर्दी के कारण फ्लू तक हो जाता है, उन्हें चिरायता का सेवन आवश्यक तौरपर करना चाहिए। हालांकि अकसर यह माना जाता है कि जड़ी बूटियां गंभीर बीमारियों को ठीक करने में मददगार नहीं होती। लेकिन चिरायता के साथ ऐसा नहीं है। यह रेसपिरेटरी संक्रमण को न सिर्फ ठीक करता है वरन किसी को यदि परिवार से यह बीमारी मिली है तो भी इसमें सुधार लाया जा सकता है।
कारगर एंटीबॉयोटिक-
बुखार ना होने की स्थिति में भी यदि इसका एक चम्मच सेवन प्रतिदिन करें तो यह चूर्ण किसी भी प्रकार की बीमारी चाहे वह स्वाइन फ्लू ही क्यों ना हो, उसे शरीर से दूर रखता है। इसके सेवन से शरीर के सारे कीटाणु मर जाते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी सहायक है। इसके सेवन से खून साफ होता है तथा धमनियों में रक्त प्रवाह सुचारू रूप से संचालित होता है।
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