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वात क्या होता है प्रकृति और लक्षण

आयुर्वेद कफ, वात और पित्त प्रकृति के आधार पर कार्य करता है. कोई भी व्यक्ति कफ प्रकृति का या पित्त प्रकृति का या वात प्रकृति का हो सकता है, और उसी प्रकृति दोष के आधार पर उसका इलाज किया जाता है.



शरीर में आवश्यकता से कम या अधिक कफ, वात और पित्त बढ़ जाने पर कफ दोष, वात दोष और पित्त दोष का निर्माण एक शरीर में होता है.
हम वात को लेकर यहां बात कर रहे हैं.

वात क्या है

मनुष्य शरीर के अंदर वात एक प्रकृति है. मनुष्य का शरीर पंच तत्वों से निर्मित होता है. जिसके अंदर आकाश, वायु, अग्नि, जल और थल आते हैं. वात आकाश और वायु तत्वों से प्रेरित होता है.

वात को मुख्य रूप से वायु से जोड़ा जाता है, इसका तात्पर्य गति से होता है.

चिपचिपाहट से रहित, खुरदुरा पर लिए हुए, चंचलता से परिपूर्ण,छोटा, शीतलता और रूखापन यह सब वात के गुण होते हैं. वात संतुलित होने पर यह सब लक्षण नजर नहीं आते हैं, लेकिन जैसे ही वात असंतुलित होता है, तो यह सब लक्षण शरीर में नजर आने लगते हैं.

वात प्रकृति का व्यक्ति

वात प्रकृति के व्यक्ति के अंदर कुछ लक्षण नजर आते हैं जैसे कि --

  • यह व्यक्ति पतला होता है
  • व्यक्ति हमेशा ऊर्जावान नजर आता है
  • वातरोग सर्दियों के मौसम में अधिक हो जाता है
  • व्यक्ति को जोड़ों में दर्द का सामना करना पड़ता है
  • गैस और एसिडिटी की समस्या अक्सर नजर आती है
  • वात प्रकृति के व्यक्ति हमेशा जल्दी में रहते हैं
  • यह बहुत जल्दी-जल्दी निर्णय लेते हैं
  • कुछ बैठे हुए लोगों के हाथ पैर हिलते नजर आते हैं
  • नींद की कमी
  • शरीर में रूखापन
  • शरीर का कांपना
  • जाड़ो में होने वाले साधारण रोग जल्दी लग जाना
  • ठंडी चीजों को सहन नहीं कर पाने की क्षमता
  • आवाज का भारीपन
  • शरीर में हल्का पन
  • तेज चलने में लड़खड़ाहट
  • जल्दी गुस्सा आना
  • जल्दी चले जाना
  • किसी भी बात का जल्दी से निर्णय ले लेना
  • बातों को जल्दी समझ कर, जल्दी भूल जाना

यह सब वात प्रकृति वाले लोगों के स्वभाव में होता है. इन्हीं सब गुणों के आधार पर वाद प्रकृति के व्यक्ति को पहचाना जा सकता है.


वात दोष क्या होता है

किसी भी व्यक्ति के शरीर में वात का असंतुलित हो जाना वात दोष कहलाता है. इसका अर्थ है व्यक्ति के शरीर में वायु तत्व और आकाश तत्व असंतुलित हो गए हैं.

शरीर में अधिक समय तक वात दोष रहने से कफ और पित्त दोष भी शरीर के अंदर आ जाते हैं.
वात के अंदर दूसरे दोषों के गुणों को संग्रहित करने का लक्षण होता है. अगर वह कफ दोष के साथ मिल जाता है, तो यह शीतलता के गुण ग्रहण कर लेता है. वही अगर यह पित्त दोष के साथ सहयोग करता है तो गर्मी वाले गुणों को प्रदर्शित करता है.

वात के प्रकार

शरीर में इनके निवास स्थानों और अलग कामों के आधार पर वात को पांच भांगों में बांटा गया है.

  1. प्राण
  2. अपान
  3. उदान
  4. व्यान
  5. समान

आयुर्वेद के अनुसार सिर्फ वात के प्रकोप से होने वाले रोगों की संख्या ही 80 के करीब है.

वात रोग

वात का अर्थ होता है वायु अर्थात शरीर में जो भी रोग वायु गति से प्रभावित होकर पैदा होते हैं उन्हें वात रोग की श्रेणी में रखा जाता है. शरीर में वात का बहुत प्रमुख कार्य होता है. यह कोशिकाओं की कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण रोल अदा करती है. ऑक्सीजन की सहायता से शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन होता है.

श्वसन प्रणाली, मांसपेशियों की सक्रियता, दिल की धड़कन और श्वसन प्रणाली में वात की काफी अहम भूमिका होती है. यह वायु के संतुलन की आवश्यकता नजर आती है.

वात बिगड़ जाने पर इन सभी कार्य प्रणाली में समस्या का सामना करना पड़ता है, और इनसे संबंधित काफी सारे रोग शरीर में वात दोष या वात असंतुलन की वजह से नजर आने लगते हैं.

मुख्यता गैस एसिडिटी गठिया की बीमारी फेफड़ों से संबंधित विकार भूलने की बीमारी तंत्रिका तंत्र से संबंधित समस्या कमजोरी शरीर में ताकत की कमी महसूस होना डर और चिंता इत्यादि रोग नजर आते हैं.

प्राण वात
की वजह से मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र से संबंधित रोग शरीर में उत्पन्न होते हैं. संवेदनाओं  पर नियंत्रण समाप्त होने लगता है.

उदान वात की वजह से सांस  छोड़ने की प्रक्रिया में समस्या, बोलने की प्रक्रिया में समस्या, चेहरे की चमक समाप्त हो जाना , खांसी की समस्या इत्यादि  रोग नजर आते हैं.

अपान वात की वजह से आंतों की और किडनी की समस्याएं देखने में नजर आती है. शरीर में पानी का असंतुलन नजर आता है. पोषक तत्वों की असामान्य स्थिति पैदा होती है.

व्यान वात रोग के अंतर्गत शरीर की त्वचा प्रभावित होना , बाल झड़ना जैसी समस्याएं नजर आती है.

समान वात रोगों में आपको आंतों  की तकलीफ,  निगलने  में तकलीफ, पोषक तत्वों का शोषित नहीं होना जैसी समस्याएं नजर आती है.

वात दोष के कारण

कई कारणों से शरीर के अंदर वात दोष बढ़ जाता है, जैसे कि --

  • शुष्क और ठंडे मौसम के दौरान शरीर में वात दोष बढ़ सकता है
  • ठंडी प्रकृति वाला भोजन इस वात दोष को बढ़ा सकता है
  • शांत स्वभाव भी वात दोष को बढ़ाने में सक्षम है
  • अधिक व्रत रखना वात दोष बढ़ाता है
  • बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना वात दोष का कारण बन सकता है
  • तीखी और कडवी चीजों का अधिक सेवन करना
  • अपनी क्षमता से अधिक मेहनत करना
  • रात को देर तक जागना
  • अधिक तेज बोलना
  • ज्यादा ठंडी चीजें खाना
  • ज्यादा सेक्स करना
  • मानसिक परेशानी में रहना
  • हमेशा चिंता करना
  • सफर के दौरान गाड़ी में अधिक झटके लगना
  • मल मूत्र या छींक को बार बार रोक कर रखना
  • खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही कुछ खा लेना
  • अधिक मात्रा में भोजन खाना

वात दोष के लक्षण

शरीर में वात के असंतुलित हो जाने के बहुत सारे लक्षण नजर आते हैं जैसे कि –

  • अधिक प्यास लगना
  • चिंता और तनाव की स्थिति बने रहना
  • डर लगना
  • दिमागी अशांति
  • तेज बोलना
  • स्पष्ट नहीं बोल पाना
  • अधिक बोलना
  • गला बैठा है ऐसी स्थिति बन जाना
  • दुबला पतला शरीर
  • पतली और नोकदार ठुड्डी नजर  आना
  • धीरे-धीरे वजन का कम हो जाना
  • चेहरे पर झुर्रियां नजराना
  • गालों का अंदर घस जाना
  • फोटो का सूखना फटना
  • गालों का सूखना और फटना
  • मसूड़े कमजोर हो जाना
  • दांतो का कमजोर हो जाना
  • त्वचा का रूखापन
  • बालों का रंग भूरा नजर आना
  • बालों का रूखापन नजर आना
  • भूख का ना लगना
  • अनियमित तरीके से भूख का लगना
  • पाचन संबंधी विकार
  • एसिडिटी अधिक होना
  • गैस की समस्या
  • अंगों में रूखापन और जकड़न
  • कब्ज की स्थिति
  • मुंह का स्वाद कड़वा हो जाना
  • नाखून दांत और त्वचा का बेजान और सूखा नजर आना
  • अंगों में कमजोरी महसूस होना
  • अंगों में कपकपी लगना
  • अंगो का ठंडा , सुन्न हो जाना
  • हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन महसूस होना
  • सुई के चुभने जैसा दर्द नजर आना
  • बेचैनी
  • चक्कर आना
  • सर्दी लगना
  • मांसपेशियों में ऐंठन
  • दर्द
  • जकड़न

इत्यादि लक्षण वात के होते हैं

वात असंतुलन को दूर करने के उपाय

वात को संतुलित करने के लिए आपको अपने जीवन शैली में कुछ विशेष बदलाव करने होंगे अपने भोजन संबंधी आदतों को बदलना होगा इस प्रकार से आप वात को संतुलित बड़ी आसानी से कर सकते हैं.

वात असंतुलन के लिए भोजन संबंधी सावधानियां

  • पौष्टिक खाद्य पदार्थों को अपने भोजन में शामिल करें.
  • वात को कंट्रोल करने के लिए आपको सोयाबीन दूध, राजमा और मूंग दाल का सेवन करना चाहिए.
  • सब्जियों की बात करें तो आपको पालक, शकरकंद, चुकंदर, खीरा और गाजर अपने भोजन में शामिल करनी चाहिए.
  • घी में तले हुए मे वे आपको खाने चाहिए .
  • तांबे के बर्तन में 6 से 12 घंटे पानी रखकर पीना शुरू करें.
  • बादाम, कद्दू के बीज, सूरजमुखी के बीज, तिल के बीज इन्हें रात को पानी में भिगोकर रखें और सुबह इनका प्रयोग अपने नाश्ते में करें.
  • ठंडी तासीर वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचें.
  • कच्ची सब्जियां, ठंडी मिठाईयां या फ्रीज में रखी ठंडी मिठाईयां, सूखे मेवे, शराब और कैफीन इत्यादि से दूरी बना कर रखिए.  मेवे भून कर ही खाएं.
  • ताजा पनीर, नमक डालकर मट्ठा ,मक्खन और गाय के दूध का प्रयोग अपने भोजन में करें.
  • गु ड़, लहसुन, अदरक और गेहूं का प्रयोग करना शुरू करें.
  • देसी घी, देसी तेल का प्रयोग अपने भोजन में करें.
  • गर्म मसाले जैसे कि लॉन्ग, दालचीनी,काली मिर्च अपने भोजन में शामिल करें.
  • वात बढ़ाने वाली खाद्य वस्तुएं जैसे कि गोभी मूली इत्यादि आपको अपने भोजन में शामिल नहीं करनी है.
  • कड़वे स्वाद की खाद्य वस्तुओं से दूरी बनाकर रखें.

जीवन शैली द्वारा वात नियंत्रण करना

जीवन शैली में बहुत सारे ऐसे परिवर्तन होते हैं, जो वात को कंट्रोल करने में मदद करते हैं इसके लिए आपको ---

  • रोजाना ध्यान करना चाहिए
  • गर्म पानी से नहाने की आवश्यकता है
  • गुनगुने तेल से नियमित मालिश, मसाज करें. इसके लिए बदाम का तेल, जैतून का तेल या तिल का तेल इस्तेमाल कर सकते हैं.
  • आपको रोजाना व्यायाम करना है.
  • रोजाना सुबह 15 से 20 मिनट धूप में टहलना है.
  • रात को समय से सोए समय से सुबह उठे
  • जल्दी सोए जल्दी उठे
  • नाश्ता लंच और डिनर रोजाना एक ही समय पर करने की कोशिश करें.

निष्कर्ष

शरीर की प्रकृति के अनुसार ही व्यक्ति को वातावरण और जीवनशैली प्रभावित करती है, और उसी के अनुसार शरीर में रोग लगते हैं.

अगर व्यक्ति को वात दोष नजर आ रहा है तो उसके लिए जीवन शैली और भोजन में परिवर्तन के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधियां भी प्रयोग में लाई जाती हैं.

 इसके लिए आप आयुर्वेदाचार्य से सलाह कर सकते हैं.

नियमित और संयमित जीवनशैली अपनाने से किसी भी प्रकार का दोष शरीर में नहीं लगता है इसलिए संयमित जीवनशैली अपनाएं. 



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