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सूर्य की महादशा में – सभी ग्रहों की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में – सभी ग्रहों की अन्तर्दशा का फल| सूर्य महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में सूर्य की ही अंतर्दशा तीन महीने अठारह दिन की होती है।यदि जन्म पत्रिका में सूर्य कारक हो, उच्च राशि का हो तथा पाप प्रभाव से रहित हो तो अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में शुभफल देता है।

इस दशा में जातक के धन और पदोन्नति में वृद्धि होती है, साथ ही समाज में उनकी मान-प्रतिष्ठा बढ़ती है।

जातक के सभी कार्य अनायास हो जाते हैं।

अकारक और पाप प्रभावी सूर्य की अन्तर्दशा में जातक रोग से पीड़ित और क्रोधी रहता है।

आय की अपेक्षा जातक का व्यय बढ़ा रहता है जिसके फलस्वरूप उसकी आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है जातक पढ़ावनति स्थानान्तरण, अधिकारियों से विरोध जैसी आपत्तियों को झेलता है एवं व्यर्थ भटकता रहता है।

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा छः महीने की होती है।

यदि जन्म पत्रिका में चन्द्रमा में चन्द्रमा उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि आदि शुभ प्रभाव में हो तथा केन्द्र, धन अथवा आज स्थान में स्थित हो तो शुभ फल प्रदान करता है। इस दशा में जातक को धन-धान्य में वृद्धि होती है तथा व्यवसाय या नौकरी में सफलता प्राप्त होती है। उसे स्त्री एवं सन्तति से सुख मिलता है।

विरोधी गुटो से सन्धि हती है। मित्र लर्ग से विशेषतः स्त्री मित्रों से लाभ रहता है।

ष ऐसे समय में जातक में भावावेग बढ़ जाता है तथा वह कल्पना लोक में विचरण करता है।

जातक की कला व काव्य के प्रति रूचि भी बढ़ जाती है। यदि चन्द्रमा क्षीणावस्था में पापा प्रभाव में, सूर्य से छठे या आठवें स्थान में हो तो जातक को अशुभ फल मिलते हैं।

वे धन हानि और चिंताग्रस्त रहते हैं और जातक की कामवासना बढ़ती है ।

जातक का आत्म बल बहुत कमजोर हो जाता है।

सूर्य महादशा में मंगल की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में मंगल की अंतर्दशा चार महीने छः दिन की होती है।

यदि कुण्डली में मंगल उच्च राशि, शुभ प्रभाव में तथा सूर्य से व लग्न से शुभ स्थानगत हो तो जातक इस दशा में भूमि एवं कृषि कार्यो से लाभ प्राप्त करता है।

जातक को भूमि व नए गृह की प्राप्ति होती है।

मंगल लाभ या सेना में होने पर जातक को वाहन, मकान और धन का लाभ होता है।

यदि जातक सेना में हो तो उसे उच्च पद प्राप्त होता है अथवा उसकी पदोन्नति होती है। यदि मंगल अशुभ अवस्था में होकर त्रिक (छठा, आठवा) स्थान में स्थित हो तो जातक को सेना, पुलिस व चोर लुटेरों से भय रहता है। मित्रों परिजनों से जातक के व्यर्थ के झगड़े होते हैं। जातक के धन व भूमि का नाश होता है।

जातक रोगी हो जाता है एवं सका चित्त दुर्बल हो जाता है।

सूर्य महादशा में राहु की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में राहु की अंतर्दशा दस महीने चौबीस दिन की होती है।

राहु चूंकि सूर्य का प्रबल शत्रु है, अतः सूर्य महादश में राहु की अन्तर्दसा विशेष फल प्रदान नही कर पाती।

यदि राहु शुभ ग्रह व राशि में होकर सूर्य से केन्द्र, द्वितीय अथवा एकादश भाव में हो तो दशा के प्रारंभ में कुछ अशुभ फल एवं अन्त में कुछ अच्छे फल प्रदान करता है। इस दशा में जातक निरोगी रहता है।

जातक के भाग्य में अचानक वृद्धि, पदोन्नति तथा स्थानान्तरण जैसे फल प्राप्त होते हैं।

जातक को प्रवास पर जाने से लाभ होता है।

राहु पाप प्रभाव में स्थित रहता है तो जातक को राजकीय दण्ड की आशंका होती है।

जातक को उसके परिवारजनों से पीड़ा व कष्ट प्राप्त होता है।

कारावास, अकालमृत्यु, सर्पदंश का भय, धन, मान, भूमि और द्रव्य का नाश भी इस दशा में होता है। इस दशाकाल में जातक के सुख में न्यूनता आती है।

एवं वह हमेशा विचलित रहता है।

सूर्य महादशा में गुरू की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में गुरू की अंतर्दशा नौ महीने अठारह दिन की होती है। सूर्य की महादशा में उच्च, स्वराशि, मित्रराशि या शुभ प्रभाव युक्त गुरू की अन्तर्दशा चले तो जातक को अनेक शुभ फल मिलते हैं।

जातक अविवाहित हो तो उसका विवाद संपन्न हो जाता है एवं उसे सर्वगुण सम्पन्न जीवन साथी मिलता है।

जातक को उच्च शिक्षा, परीक्षा में सफलता, धन व मान सम्मान की प्राप्ति भी होती है।

राजयकृपा बनी रहती है एवं उसकी पदोन्नति होती है।

जातक की पूजा पाठ में रूचि एवं गाय, ब्राह्मण, अथिति, साधु संन्यासी की सेवा करने की प्रवृति बनती है।

जातक के शत्रु परास्त होते हैं। उनके परिवार में महोत्सव और प्रेम-सौहार्दिक वातावरण होता है।

यदि बृहस्पति नीच का पाप ग्रहों के मध्य हो पापी ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त होकर सूर्य से छठे, आठवें बारहवें स्थान में स्थित हो तो उसकी अन्तर्दशा में जातक को स्त्री व सन्तान पीड़ा तथा मन में भय उत्पन्न होता है। जातक पाप कार्यों में लगा रहकर अपना सर्वनाश कर लेता है।

सूर्य महादशा में शनि की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में शनि की अंतर्दशा ग्यारह महीने बारह दिन की होती है। शनि सूर्य का परम शत्रु है।

इस दशाकाल में जातक को अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। अशुभ फलों की प्राप्ति के बावजूद जातक पाप कर्मों को नही करता। यदि शनि उच्च, स्वराशि, मित्रराशि का होकर केन्द्र, द्वितीय, तृतीय या आय स्थान में हो तो जातक का कल्याण होता है।

निम्न वर्ग के लोगों से उसे लाभ रहता है तथा न्यायालय में लम्बित केसों में उसे विजय मिलती है।

यदि शनि अशुभ प्रभाव वाला हो अर्थात शत्रु राशि, नीच राशि का पाप ग्राहों द्वारा दृष्ट हो एवं सूर्य से छठे, आठवें व बारहवें स्थान मे हो तो जातक की बुद्धि भ्रमित हो जाती है।

जातक के शत्रु परास्त होते हैं। उनके परिवार में महोत्सव और प्रेम-सौहार्दिक वातावरण होता है।

शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है जातक की ।

जातक को अपने जन्मस्थान को त्यागना पड़ता है। जातक वायुरोगों से ग्रसित रहता है।

सूर्य महादशा में बुध की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा मे बुध की अंतर्दशा दस महीने छः दिन की होती है।

उच्च बुध और सूर्य से दृष्टि होने पर जातक को राज्यकृपा मिलती है।

उसे स्त्री व संतान का पुर्ण सुख मिलता है तथा वाहन व वस्त्राभूषणों की प्राप्ति होती है।

यदि बुध भाग्य स्थान में भाग्येश से युक्त हो तो जातक की भाग्यवृद्धि करता है।

बुध लाभ स्थान में हो तो व्यवसाय में प्रबल वृद्धि होकर धनार्जन होता है।

यदि कर्म स्थान में कर्मेश से युक्त हो तो सत्कर्मो में रूचि, मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि व पदोन्नति होती है।

जातक सम्पूर्ण सुख पा लेता है।

अशुभ बुध छठे या आठवें भाव में स्थित होने पर जातक अशान्त होता है, प्रवास करने की आवश्यकता होती है और धन का नुकसान होता है। स्वास्थ्य कमजोर होता है और कार्य व्यवसाय में परेशानियाँ होती हैं। जातक चर्मरोग से ग्रसित रहता है।

सूर्य महादशा में केतु की अन्तर्दशा का फल

सूर्य की महादशा में केतु की अंतर्दशा चार महीने और छः दिन की होती है।

इस दौरान जातक को अनुशासनहीनता और अवस्थानिक संकट का सामना करना पड़ता है। इस दशा में जातक को मानसिक और शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है।

व्यापार में नुकसान हो सकता है और संबंधों में विघ्न उत्पन्न हो सकता है।

इस अवधि में धन की हानि, स्वास्थ्य समस्याएं, और निराशा बढ़ जाती है।

शत्रुओं का मजबूत प्रभाव और विवादों का सामना होता है।

अच्छे व्यवहार और ध्यानयुक्त विचारधारा रखने पर इस दशा में सुखद फल प्राप्त हो सकते हैं।

हालांकि, सावधानी और सतर्कता बरतना इस समय महत्वपूर्ण होता है, ताकि नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके और उनका सामना किया जा सके।

शुक्र की अन्तर्दशा का फल सूर्य महादशा में

सूर्य की महादशा में शुक्र का ट्रांजिट एक वर्ष का होता है।
यदि शुक्र उच्च राशि, स्व राशि व मित्र राशि का हो तथा शुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट हो तथा सूर्य से छठे, आठवें व बारहवें स्थान में स्थित न हो तो सूर्य महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा शुभ फलको देने वाली होती है।

विवाहोत्सव, पुत्रोत्सव आदि अनेक मंगल कार्य संपन्न होते है।

जातक को वैभव और मकान का संपूर्ण सुख मिलता है और उसके मान-सम्मान में वृद्धि होती है।

यदि शुक्र नीच या शत्रु राशि का व पाप प्रभावी होकर सूर्य से छठा, आठवां व बारहवां स्थान हो तो पत्नी सुखो में कमी संतान कष्ट व विवाह मे अवरोध उत्पन्न होते हैं। स्वजनों से जातक का वैचारिक मतभेद होता है।

जातक को गुप्त रोग होते हैं। जातक के मान सम्मान, धन व स्वास्थ्य का नाश हो जाता है।

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