टीकाकरण यानी भविष्य में हो सकने वाले रोगों के लिए वर्तमान में किया जाने वाला प्रतिरोधन, एक बहुत ही आवश्यक कर्म है और अगर बात शिशु के स्वास्थ्य से जुड़ी हो तो ये सबसे महत्वपूर्ण बात हो जाती है।
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प्रेग्नेंसी के पहले और इसके दौरान गर्भवती के लिए और जन्म के बाद शिशु के लिए टीकाकरण बहुत ही आवश्यक है। खसरा, टेटनस, पोलियो, टी• बी•, गलघोंटू, काली खाँसी, और हेपटाइटिस बी जैसी छह गंभीर संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए शिशु को डॉक्टर की सलाह पर सही समय पर टीके लगवाना बहुत ही जरूरी होता है।
शिशु के लिए टीके-
- पहला टीका -ये तो हम सभी जानते हैं कि माँ का पहला गाढ़ा दूध शिशु के लिए सबसे अच्छा एंटीबायोटिक का काम करता है इसलिए जितनी जल्दी हो सके जन्म के बाद उसे ये पिला देना चाहिए और सतत स्तनपान से वो अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है अतः डॉक्टर भी माँ के दूध को शिशु के लिए पहला टीका मानते हैं।
- बच्चे के जन्म के बाद पहला टीका बीसीजी का होता है (माँ के दूध के बाद ये दूसरा टीका है) जिसे जन्म से पंद्रह दिन (दो सप्ताह) के भीतर लगवाना चाहिए। यह टीका टी. बी. की बीमारी से शिशु को बचाने के लिए लगाया जाता है।
- गर्भवती महिला और उसके गर्भ के शिशु को टिटनेस से बचाने के लिए लियेटिटेनसटाक्साइड वन/बूस्टर टू टीका एक महीने के अंतर पर लगाया जाता है पर यदि पिछले तीन सालों में महिला को दो टीके लगे हों तो कुछ डाक्टर एक ही टीके को पर्याप्त बताते हैं । अपने डॉक्टर से अधिक जानकारी प्राप्त करें ।
- पोलियो वेक्सीन से बच्चा पोलियो जैसी अपंगता देने वाली गंभीर बीमारी से सुरक्षित होता है।
- हेपेटाइटिस बी के टीके से वायरस के द्वारा लीवर में आई सूजन, होने वाले पीलिया और लंबे समय तक वायरस से संक्रमित लीवर में कैंसर आदि से बच्चे को सुरक्षा मिलती है अतः यह टीका भी बहुत महत्वपूर्ण है।
- डीपीटी एक संयोजित टीका है जो कि डिप्थीरिया (गलघोंटू) काली खाँसी और टिटनेस जैसी गंभीर बीमारियों से बचाव के लिए लगाया जाता है।
कोई भी टीका डॉक्टर की सलाह व परामर्श के बिना न लगवाएं गर्भधारण से पहले या गर्भावस्था के दौरान और प्रसव उपरांत लगने वाले टीकों की जानकारी अपने डॉक्टर से करें और उसकी सलाह पर बताए गए समय पर ही टीके लगवाने चाहियें।