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नॉन-वोवन (गैर-बुने / NW) ‘कपड़े’ के बैग और कुछ नहीं बल्कि प्लास्टिक ही हैं!

◊प्यूर एंड इको द्वारा

दिल्ली स्थित जनपैरवी संगठन टॉक्सिक लिंक (Toxics Link) द्वारा जारी एक नवीनतम शोध ‘नॉन-वोवन बैग – एक पर्यावरणीय भ्रम’ ने आज इस मिथक से पर्दा उठा दिया है कि नॉन-वोवन या गैर बुने बैग, प्लास्टिक बैग के एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प हैं, इस शोध ने इस तथ्य को उजागर किया कि ये बैग पॉलीप्रोपीलिन (एक प्रकार का प्लास्टिक) के बने होते हैं और यही कारण है कि उपभोक्ताओं को इनकी वास्तविकता के बारे में जागरूक और शिक्षित करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है।

इस शोध के परिणामों से पता चला है कि उत्तर देने वालों में से 88% लोगों ने प्लास्टिक बैग की जगह दूसरे विकल्पों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है जबकि 45% लोग प्लास्टिक बैग के स्थान पर नॉन-वोवन (गैर-बुने) बैग का प्रयोग कर रहे हैं। यहां विडंबना यह है कि उन सभी बाजारों में, जहां पर एकल उपयोग वाले प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, इन नए नॉन-वोवन बैग का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है और इससे उपभोक्ताओं में एक भ्रम की स्थिति बन रही है।

टॉक्सिक लिंक का सर्वेक्षण, प्लास्टिक बैग के उपयोग तथा इसके विकल्पों का आकलन करने के लिए नई दिल्ली में विभिन्न खुदरा विक्रेताओं तथा वेंडर्स के बीच किया गया, इस दौरान विभिन्न प्रतिष्ठानों का दौरा कर यह समझने की कोशिश की गई कि क्या लोगों ने प्लास्टिक बैग के विकल्पों का इस्तेमाल करना शुरु कर दिया है या अभी भी व्यापक रूप से प्लास्टिक बैग का ही उपयोग हो रहा है, यह बात तो स्पष्ट है कि पर्याप्त जानकारी के अभाव में या गलत जानकारी के कारण बहुत से विक्रेता सामान्य प्लास्टिक के विकल्प के रूप में अभी भी प्लास्टिक (नॉन-वोवन PP) का ही उपयोग कर रहे हैं।

नई दिल्ली में स्थित एक मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला में नॉन-वोवन बैग के पांच नमूने भेजे गए और जांच में इन बैग में पॉली प्रोपीलिन तथा पॉलिएस्टर (दोनों प्लास्टिक रेजिन हैं) की उपस्थिति पाई गई।

तो इस प्रकार से टेस्ट के परिणामों से यह स्पष्ट हो गया तथा इस तथ्य की पुष्टि हो गई कि उपभोक्ताओं की आंखों में धूल झोंकी जा रही है तथा उन्हें यह विश्वास करने के लिए विवश किया जा रहा है कि कपड़े के जैसे दिखाई देने वाले NW कैरी बैग जैव-अपघटनीय होते हैं, जो कि सत्य से कोसों दूर है।

टॉक्सिक लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति महेश कहती हैं कि, “अन्य उपलब्ध विकल्पों के मुकाबले नॉन-वोवन बैग की कीमतें कम होना, प्रतिष्ठानों द्वारा इनका उपयोग किए जाने का एक बड़ा कारण रहा है। हालांकि यह शोध दिल्ली में किया गया था, लेकिन इसके बाद किए गए द्वितीयक शोध यह दर्शाते हैं कि नॉन-वोवन बैग्स का देश भर में व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। चूंकि नॉन-वोवन बैग्स को बनाने के लिए भी प्लास्टिक का ही इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए प्लास्टिक के बैग्स की तरह इनसे भी पर्यावरण को खतरा होता है, और इन्हें चुनना दो बुराईयों में से एक को चुनने के समान ही है।”

हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 अधिनियमित किया गया है, जिसके मानकों के अनुसार कम से कम 50 माइक्रोन की मोटाई वाले बैग्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। इस मामले में राज्य स्तर पर भी सख्त नियम बनाए गए हैं, कुछ राज्यों ने प्लास्टिक बैग्स पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है और कुछ ने पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में उनका उपयोग सीमित करने से संबंधित प्रावधान किए हैं।

महाराष्ट्र, चंडीगढ़, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों ने समग्र प्लास्टिक प्रतिबंध विनियमन में नॉन-वोवन बैग पर प्रतिबंध लगाया है। लेकिन उद्योग लगातार यह दावा करते रहे हैं कि NWPP (नॉन-वोवन पॉलीप्रोपीलिन) बैग पॉलिथीन या सामान्य रूप से उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक बैग का सबसे अच्छा विकल्प हैं, इस तर्क के पक्ष में वे इनके स्थायित्व का हवाला देते हैं और दावा करते हैं कि ये बैग पर्यावरण अनुकूल हैं।

कुछ उद्योगपति यह दावा भी करते हैं कि NWPP बैग जैव अपघटनीय होते हैं। कुछ स्थानीय और क्षेत्रीय सरकारी एजेंसियों ने यह स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया है कि NWPP बैग्स सही विकल्प नहीं है, हालांकि इस मुद्दे पर अभी भी स्पष्टता की कमी है तथा भ्रम की स्थिति बरकरार है। यह भी स्पष्ट है कि हमारे नियामकों ने न तो इस बारे में कोई स्पष्टीकरण जारी किया है और न ही उपभोक्ताओं को इन बैग्स का उपयोग न करने की कोई सलाह जारी की है।

टॉक्सिक लिंक के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने कहा कि, “प्लास्टिक रेजिन युक्त नॉन-वोवन बैग्स को प्रतिबंधित या सीमित रूप से प्रतिबंधित प्लास्टिक बैग्स की सूची में शामिल करने में नियामक संस्थानों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, कुछ राज्य पहले ही ऐसे कदम उठा चुके हैं। लेकिन इसके अलावा, प्रतिष्ठानों को भी जागरूक और शिक्षित करने की आवश्यकता है, अधिकतर मामलों में इन प्रतिष्ठानों ने अपनी इच्छा से और पर्यावरण अनुकूल उपाय अपनाने के इरादे से इन नॉन-वोवन बैग्स का इस्तेमाल करना शुरू किया है।

मुख्य निष्कर्ष:

  • इस शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि NW बैग्स भी एक प्रकार के प्लास्टिक बैग ही हैं और इनका उपयोग प्लास्टिक बैग के विकल्प के रूप में नहीं किया जा सकता है, लोगों को इनकी वास्तविकता से परिचित करने के लिए जन-जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • उत्तर देने वाले लोगों में से 45% ने प्लास्टिक बैग्स के स्थान पर नॉन-वोवन बैग्स का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जबकि 40% इसके स्थान पर कागज के बैग्स का उपयोग कर रहे हैं।
  • हालांकि यह शोधकार्य दिल्ली में किया गया था, लेकिन इसके बाद हुए द्वितीयक शोध से यह पता चला है कि NW का देश भर में व्यापक उपयोग हो रहा है।
  • सब्जी तथा फल सहकारी समितियां एक विकल्प के रूप में नॉन-वोवन बैग्स का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रही हैं।
  • उपभोक्ताओं के मन में यह गलतफहमी व्याप्त है कि NW बैग्स जैव-अपघटनीय और पर्यावरण-अनुकूल होते हैं। उत्तर देने वाले लोगों में से 46% का मानना था कि नॉन-वोवन बैग्स का जैव-अपघटन हो जाएगा, लेकिन अधिकांश लोग (44%) इस बारे में निश्चित राय नहीं रखते थे। उनमें से केवल 10% ने कहा कि इस प्रकार के प्रतिस्थापन का जैव अपघटन होना संभव नहीं है।
  • NWPP बैग्स के उपयोग में कमी सुनिश्चित करने के लिए जमीनी स्तर पर सख्त अनुपालन सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

 


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