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भारतीय राजनीति के बाजीगर, जिन्होंने हारना नहीं सीखा

“भारतीय राजनीति के बाजीगर, जिन्होंने हारना नहीं सीखा”

जब कभी भारतीय राजनीति का इतिहास लिखा जाएगा, उसमें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाहजी के रणनीतिक कौशल, चुनाव प्रबंधन, नेतृत्व के प्रति प्रतिबद्धता, प्रतिद्वंदी पर आक्रामक हमले जैसी उनकी कुशलता पर एक पूरा अध्याय लिखा पड़ेगा। क्योंकि, वे इस सभी विधाओं के पारंगत खिलाड़ी हैं। उन्हें हारना नहीं आता! हारकर जीतना भी वे जानते हैं। यदि उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य कहा जाता है, तो उन्हें चुनाव प्रबंधन का बाजीगर भी कहना होगा। उन्होंने पार्टी को हमेशा चुनाव के लिए तैयार रहना भी सिखा दिया। वे कभी विश्राम नहीं करते। उनकी प्रबल इच्छाशक्ति ने पार्टी में अलग ही ऊर्जा का संचार किया है। आरएसएस के कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने को उन्होंने जिस तरह साकार किया है, वो उनके भविष्य के मजबूत इरादों का संकेत है।

– कैलाश विजयवर्गीय
भारतीय जनता पार्टी देश में अगले पचास साल तक सत्ता में रहेगी। ये बात कहने का साहस और आत्मविश्वास यदि किसी में है तो वो हैं पार्टी अध्यक्ष श्री अमित शाह। उनकी ये बात सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं में ही उत्साह का संचार नहीं करती, बल्कि विपक्ष के लिए भी एक चुनौती है। राजनीतिक रूप से मुखर मानी जाने वाली भाजपा आज पहले की अपेक्षा ज्यादा संगठित और अनुशासित मानी जाती है, तो उसके पीछे कहीं न कहीं अमित शाहजी का अपना तरीका है। श्री शाह को आज भाजपा का सबसे ताकतवर अध्यक्ष माने जाने का कारण ये है कि वे न केवल रणनीतिकार हैं, बल्कि पार्टी के प्रभावशाली प्रचारक भी हैं। उन्होंने पार्टी को हमेशा इलेक्शन मोड़ में रहना सिखा दिया। मैंने काफी नजदीक से देखा है कि एक चुनाव ख़त्म होने के बाद वे कभी विश्राम की मुद्रा में दिखाई नहीं दिए। उनकी इसी ऊर्जा ने पार्टी को हमेशा मैदान में बनाए रखा है।
कामकाज के नजरिए से भी देखा जाए तो अमित शाह पिछले करीब दस अध्यक्षों से बिलकुल अलग हैं। भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष अटलबिहारी वाजपेयी 18 साल तक पार्टी के कर्ताधर्ता रहे। इसके बाद लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने पार्टी की बागडोर संभाली। पहली बार जब एनडीए सत्ता में आई, तो कुशाभाऊ ठाकरे, जना कृष्णमूर्ति, बंगारू लक्ष्मण पार्टी के अध्यक्ष बने। इन दिग्गजों को पार्टी के मुखिया की कुर्सी पर बैठाने के पीछे विचारधारा यह थी कि पार्टी के नेता सरकार और राजनीति संभालें और आरएसएस के लोग पार्टी और संगठन के बीच एक सेतु का काम करें। श्री नितिन गडकरी और श्री राजनाथ सिंह दो ऐसे अध्यक्ष रहे हैं, जिन्होंने राजनीति और संगठन दोनों को संभाला। इन दोनों को आरएसएस का साथ भी बखूबी से सहयोग मिला। लेकिन, पार्टी अध्यक्ष के तौर पर श्री अमित शाह का नजरिया थोड़ा अलग हैं। वे रणनीतिक रूप से आक्रामक हैं और कार्यकर्ताओं की सुनते भी हैं। उनके फैसलों और उन फैसलों को कार्य रूप में परिणित करने में वजन दिखाई देता है। साथ ही आरएसएस में भी उनकी बात को गंभीरता से लिया जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी वैचारिक और नीतिगत जुगलबंदी का फ़ायदा जितना पार्टी को अपने विस्तार में मिला, उतना ही संघ को भी मिला।
अपने स्पष्ट दृष्टिकोण और रणनीति के अद्भुत कौशल के कारण ही उन्हें 2010 में भाजपा का महासचिव और उसके पश्चात लोकसभा चुनाव की दृष्टि से उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था। चुनाव के नजरिए से समय कम था, पर जिनकी इच्छाशक्ति प्रबल हो, उनके लिए लक्ष्य कभी मुश्किल नहीं होता। अमितजी ने बहुत थोड़े समय में उत्तर प्रदेश में भाजपा को पुनर्जीवित किया। इसका सबूत 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में देखने को मिला जब भाजपा और उसके सहयोगियों ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 73 लोकसभा सीटों पर झंडा गाड़ दिया। सिर्फ संख्यात्मक रूप से ही सीटें नहीं बढ़ाई, बल्कि भाजपा के मत प्रतिशत में भी ढाई गुना वृद्धि की। 2014 का लोकसभा चुनाव तो पूरी तरह श्री नरेंद्र मोदी और श्री अमित शाह के रणनीतिक कौशल का ही परिणाम था। प्रचार, जनसंपर्क, अभियान और नए मतदाताओं की जिम्मेदारी अपने हाथ में लेकर एक ऐसी रणनीति बनाई गई, जिसने इन चुनावों में भाजपा को अभूतपूर्व विजय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
संगठनात्मक क्षमताओं के कारण ही उन्हें चुनाव का कुशल रणनीतिकार समझा जाता है। अमितजी की गिनती उन चुनिंदा राजनीतिज्ञों में होती है, जिनका राजनीतिक इतिहास प्रभावशाली रहा है। पार्टी में उन्हें अपने सिद्धांतों और आदर्शों पर अडिग रहने के लिए भी जाना जाता है। अमितजी में न केवल बेहतरीन संगठनात्मक क्षमता है, बल्कि वे आक्रामक सामरिक योजना के लिए भी जाते हैं। वे ऐसे जमीनी नेता हैं, जो अपने आदर्शों के प्रति दृढ़तापूर्वक प्रतिबद्ध रहे हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनीतिक नहीं रही, लेकिन उनके परिवार में मानवीयता का समावेश था, जिससे उनके भीतर समाज सेवा की इच्छा जागृत हुई। 14 साल की उम्र में ‘तरुण स्वयसेवक’ के रूप में उन्होंने आरएसएस की सदस्यता ग्रहण की थी। इसके बाद तो उनके जीवन की दिशा ही बदल गई।
अमितजी को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का कट्टर समर्थक माना जाता है। लेकिन, इन दोनों की शख़्सियत का मूल्यांकन किया जाए तो कई मामलों में दोनों एकदम जुदा हैं। लोगों को जहाँ मोदीजी की स्पष्ट वाकपटुता और आक्रामक भाषण शैली प्रभावित करती है, वहीँ अमितजी को बंद कमरे में सियासी चक्रव्यूह रचने में माहिर समझा जाता हैं। मैंने कई बार देखा कि वे नेताओं की भीड़ से अलग रहना ही पसंद करते हैं। उनका ये एकाकीपन ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। जहाँ तक राजनीतिक रणनीति की बात है, तो वे कभी भी किसी योजना को अधूरा नहीं छोड़ते! वे ज़मीनी हकीकत को विस्तार से जानकर ही किसी योजना को अंतिम रूप देते हैं। उनकी इसी कार्यशैली का नतीजा है कि भाजपा को हर चुनाव में बेहतरीन नतीजे मिले हैं।
आज लोग मानते हैं कि भाजपा का सबसे बड़ा पावर सेंटर अमित शाहजी हैं। यदि ऐसा माना जाता है तो इसमें गलत भी क्या है! नरेंद्र मोदी को यदि दिमाग मान लिया जाए तो अमित शाहजी उसी दिमाग की रक्तवाहिनियां हैं, जो उनके विचारों और योजनाओं को भाजपा रूपी शरीर के हर कोने तक पहुंचाती है। ऊर्जावान दिमाग और संगठनात्मक शक्ति की इस अनमोल जोड़ी ने आरएसएस के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सपने को काफ़ी हद तक पूरा करके भी दिखाया है। आज यदि देश का ज्यादातर हिस्सा भाजपा के झंडे से रंगा नजर आ रहा है तो इसके पीछे कहीं न कहीं इसी जोड़ी का हाथ है। ये अमितजी की ही रणनीति थी कि पार्टी ने असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में जीत हांसिल की। वे कभी हार नहीं मानते और हारी हुई बाजी जीतना भी उन्हें आता है। क्योंकि, वे राजनीति के बाजीगर जो हैं। गोवा में कांग्रेस को पीछे छोड़कर वहाँ सरकार बनाने में कारनामा उनकी आक्रामक शैली और त्वरित फैसले का सबसे बेहतरीन उदाहरण माना जा सकता है। बिहार का विधानसभा चुनाव हारकर भी उन्होंने उस हार को जीत में कैसे बदला, ये भी देश देख चुका है। उन्हें शतरंज खेलना बहुत पसंद है। वे गुजरात चेस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे हैं। माना जाता है कि शतरंज खिलाड़ी प्रतिद्वंदी का दिमाग पढ़कर योजना बनाने में माहिर होता है और अमितजी की इस काबलियत का कोई सानी नहीं है। उनकी हर चाल प्रतिद्वंदी को रक्षात्मक होने के लिए मजबूर कर देती है। आने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाला लोकसभा चुनाव उनकी संगठनात्मक क्षमताओं का परिचायक होगा। आज अमित शाहजी का जन्मदिन है। इस पावन दिन पर उन्हें बधाइयाँ और शुभकामनाएं।

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