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डॉक्टर्स और सरकार की जिद के बीच राजस्थान में मरीजों का बुरा हाल। पलायन शुरू। यदि चिरंजीवी योजना प्रभावी तरीके से लागू हो जाए तो राइट टू हेल्थ बिल की जरूरत नहीं है। प्रदेशभर के डॉक्टरों ने जयपुर मे

राजस्थान सरकार के राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में 27 मार्च को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आव्हान पर देशभर के डॉक्टरों ने काली पट्टी बांध कर ब्लैक डे नमाया। एसोसिएशन की ओर से चेतावनी दी गई है कि यदि बिल वापस नहीं हुआ तो देश भर के डॉक्टर्स हड़ताल करेंगे। राजस्थान के निजी अस्पताल गत 15 मार्च से बंद पड़े हैं और सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर्स प्रतिदिन 9 से 11 बजे तक कार्य बहिष्कार कर रहे हैं। सरकारी डॉक्टरों ने 28 मार्च को सामूहिक अवकाश लेने की घोषणा कर दी है। सरकारी डॉक्टरों की एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अजय चौधरी ने कहा है कि यदि बिल वापस नहीं होता है तो बेमियादी हड़ताल भी शुरू की जाएगी। बिल के विरोध में प्रदेशभर में डॉक्टर्स धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। उधर प्रदेश के चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा ने दो टूक शब्दों में कहा है कि डॉक्टर्स चाहे जितना आंदोलन कर लें, लेकिन बिल वापस नहीं होगा। सरकार और डॉक्टर्स की जिद के बीच प्रदेश के मरीजों का बुरा हाल है। डॉक्टर्स और सरकार भी जानती है कि पेट का दर्द भी असहनीय होता है। जिन मरीजों को रोजाना चिकित्सा की जरूरत है, उनका बुरा हाल है। सामर्थ्य मरीज अब पड़ोसी राज्य गुजरात, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश की ओर पलायन कर रहे हैं। चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह ठप होने से प्रदेशभर में त्राहि त्राहि मची हुई है, लेकिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का अधिकांश समय इन दिनों दिल्ली में बीत रहा है। गहलोत दिल्ली में कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त हैं। ऐसे में लाखों मरीजों की पीड़ा को समझने वाला कोई नहीं है। सरकार को ताकत दिखाने के लिए ही 27 मार्च को जयपुर में प्रदेश भर के डॉक्टर्स ने प्रदर्शन भी किया। राइट टू हेल्थ बिल को लेकर अब तक सरकार से जो वार्ताएं हुई, वे सभी विफल हो चुकी है, क्योंकि दोनों ही अपनी अपनी बात पर अड़े हुए हैं। सरकार को उम्मीद थी कि बिल से आम लोगों को राहुल मिलेगी, लेकिन लोगों की मुसीबत और बढ़ गई है। 75 प्रतिशत मरीजों का इलाज निजी क्षेत्र में ही होता है। खुद सरकारी डॉक्टर्स भी अस्पताल से ज्यादा मरीज अपने घरों पर देखते हैं। फिलहाल सरकारी डॉक्टर्स मरीजों को घर पर भी नहीं देख रहे हैं। 
चिरंजीवी योजना:
सरकार ने एक अप्रैल से मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना का दायरा 25 लाख रुपए तक बढ़ा दिया है। यानी मरीज निजी अस्पताल में 25 लाख रुपए तक इलाज प्रति वर्ष करवा सकता है। अब तक यह राशि 10 लाख रुपए थी। पिछले डेढ़ वर्ष से निजी अस्पतालों में सरकार द्वारा निर्धारित दरों पर मरीजों का इलाज हो रहा था। चिरंजीवी में बीपीएल कार्ड धारकों का प्रीमियम भी माफ है, जबकि कोई भी परिवार मात्र 850 रुपए देकर बीमा करवा सकता है। यही वजह है कि प्रदेश के अधिकांश परिवारों ने चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा करवा रखा है। यदि इस योजना को निजी अस्पतालों की सहमति से लागू करवाया जाए तो राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल की जरूरत नहीं है। सवाल यह भी है कि जब अधिकांश निजी अस्पताल चिरंजीवी में मरीजों का इलाज कर रहे थे, तब यह बिल क्यों लाया गया? चिरंजीवी में सरकार ने सीनियर डॉक्टर की फीस भी मात्र 135 रुपए निर्धारित कर रखी है। इसी प्रकार इनडोर पेशेंट के लिए एक दिन के दो हजार रुपए खर्च निर्धारित है। अच्छा होता कि सरकार चिरंजीवी में खर्च की राशि बढ़ा कर मरीजों का इलाज सुनिश्चित करवाती। सरकार राइट टू हेल्थ बिल की आड़ में डंडे के जोर पर निजी अस्पतालों में इलाज करवाना चाहती है जो डॉक्टर्स को स्वीकार नहीं है। सरकार को मरीजों की पीड़ा भी समझनी चाहिए। 

S.P.MITTAL BLOGGER (27-03-2023)
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डॉक्टर्स और सरकार की जिद के बीच राजस्थान में मरीजों का बुरा हाल। पलायन शुरू। यदि चिरंजीवी योजना प्रभावी तरीके से लागू हो जाए तो राइट टू हेल्थ बिल की जरूरत नहीं है। प्रदेशभर के डॉक्टरों ने जयपुर मे

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