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35 Best tehzeeb hafi shayari in hindi

घर में भी दिल नहीं लग रहा, काम पर भी नहीं जा रहा जाने क्या ख़ौफ़ है जो तुझे चूम कर भी नहीं जा रहा।

तुम्हें हुस्न पर दस्तरस है बहोत, मोहब्बत वोहब्बत बड़ा जानते हो तो फिर ये बताओ कि तुम उसकी आंखों के बारे में क्या जानते हो?

फरेब दे कर तेरा जिस्म जीत लूँ लेकिन मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊंगा।

तुम्हें पता तो चले बेजबान चीज का दुःख मैं अब चराग की लौ ही नहीं बनाऊंगा।

यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया

मैं दुश्मनों से जंग अगर जीत भी जाऊं तो उनकी औरतें कैदी नहीं बनाऊंगा।

अपना लड़ना भी मोहब्बत है तुम्हें इल्म नहीं चीख़ती तुम रही और मेरा गला बैठ गया।

उस की मर्ज़ी वो जिसे पास बिठा ले अपने इस पे क्या लड़ना फलाँ मेरी जगह बैठ गया।

मल्लाहों का ध्यान बटाकर दरिया चोरी कर लेना है, क़तरा क़तरा करके मैंने सारा चोरी कर लेना है।

आज तो मैं अपनी तस्वीर को कमरे में ही भूल आया हूँ लेकिन उसने एक दिन मेरा बटुआ चोरी कर लेना है।

मै फूल हूँ तो फिर तेरे बालो में क्यों नही हूँ तू तीर है तो मेरे कलेजे के पार हो।

वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता।

एक आस्तीन चढ़ाने की आदत को छोड़ कर ‘हाफ़ी’ तुम आदमी तो बहुत शानदार हो।

इतना मीठा था वो गुस्सा भरा लहज़ा मत पूछ, उसने जिस जिस को भी जाने को कहा वो बैठ गया।

बाद में मुझसे न कहना घर पलटना ठीक है, वैसे सुनने में यही आया है रास्ता ठीक है।

अपना लड़ना भी मोहोब्बत है तुम्हे इल्म नहीं, चीखती तुम रही और मेरा गला बैठ गया।

लड़किया इश्क़ में कितनी पागल होती है, फ़ोन आया और चूल्हा जलता छोड़ दिया।

जहन पर जोर देने से भी याद नहीं आता कि हम क्या देखते थे सिर्फ इतना पता है कि हम आम लोगों से बिल्कुल जुदा देखते थे।

सारा दिन रेत के घर बनते हुए और गिरते हुए बीत जाता शाम होते ही हम दूरबीनों में अपनी छतों से खुदा देखते थे।

दोस्त किसको पता है कि वक़्त उसकी आँखों से फिर किस तरह पेश आया हम इकट्ठे थे हंसते​ थे रोते थे एक दूसरे को बड़ा दखते थे।

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लड़कियाँ इश्क़ में कितनी पागल होती हैं फ़ोन बजा और चूल्हा जलता छोड़ दिया।

बस कानों पर हाथ रख लेते थोड़ी देर और फिर उस आवाज़ ने पीछा छोड़ दिया।

अज़ल से इन हथेलियों में हिज्र की लकीर थी तुम्हारा दुःख तो जैसे मेरे हाथ में बड़ा हुआ।

उस लड़की से बस अब इतना रिश्ता है मिल जाए तो बात वगैरा करती है।

तुझे किस किस जगह पर अपने अंदर से निकालें हम इस तस्वीर में भी तूझसे मिल के आ रहे हैं।

क्या करूं तुझसे ख़यानत नहीं कर सकता मैं वरना उस आंख में मेरे लिए क्या कुछ नहीं था।

ये किस तरह का ताल्लुक है आपका मेरे साथ मुझे ही छोड़ के जाने का मशवरा मेरे साथ।

तुझे भी अपने साथ रखता और उसे भी अपना दीवाना बना लेता अगर मैं चाहता तो दिल में कोई चोर दरवाज़ा बना लेता।

अकेला आदमी हूँ और अचानक आये हो, जो कुछ था हाजिर है अगर तुम आने से पहले बता देते तो कुछ अच्छा बना लेता।

तारीकियों को आग लगे और दीया जले ये रात बैन करती रहे और दीया जले।

तुम चाहते हो कि तुमसे बिछड़ के खुश रहूँ यानि हवा भी चलती रहे और दीया जले।

तू ने क्या क़िन्दील जला दी शहज़ादी सुर्ख़ हुई जाती है वादी शहज़ादी।

वो फूल और किसी शाख़ पर नहीं खिलता वो ज़ुल्फ़ सिर्फ़ मिरे हाथ से सँवरनी है।

हमारे गाँव का हर फूल मरने वाला है अब उस गली से वो ख़ुश्बू नहीं गुज़रनी है।

सूरज तो मेरी आँख से आगे की चीज़ है मै चाहता हूँ शाम ढले और दीया जले। – tehzeeb hafi



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