डॉक्टर मीना श्रीवास्तव
☆ “अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे (मातृदिन) – एक पहलू ऐसा भी…” ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆
Related Articles
नमस्कार पाठकगण,
अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे (मई महीने का दूसरा रविवार) अर्थात मातृदिन की सबको शुभकामनाएं!
यह मातृदिन आज के ही दिन क्यों मनाया जाता है, इस प्रश्न का उत्तर ढूंढते हुए मुझे कुछ दिलचस्प और साथ ही विचारणीय जानकारी हाथ लगी| मदर्स डे का सबसे पुराना इतिहास ग्रीस के साथ जुड़ा है| वहाँ ग्रीक देवी देवताओं की माता की आदर सहित पूजा की जाती थी| माना जाता है कि, यह मिथक भी हो सकता है | परन्तु आज अस्तित्व में रहे मदर्स डे की शुरुवात करने का श्रेय ज्यादातर लोग अॅना रीव्ह्ज जार्विस (Anna Reeves Jarvis) को ही देते हैं| उसका अपनी माता के प्रति (अॅन मारिया रीव्ह्ज- Ann Maria Reeves) अत्यधिक प्रेम था| जब उसकी माता का ९ मई १९०५ को निधन हुआ, तब अपनी माता तथा सभी माताओं के प्रति आदर और प्रेम व्यक्त करने हेतु एक दिन होना चाहिए ऐसा उसे बहुत तीव्रता से एहसास होने लगा| इसलिए उसने बहुत अधिक प्रयत्न किये और वेस्ट व्हर्जिनिया में आन्दोलन की शुरुवात की| तीन साल के बाद (१९०८) अँड्र्यूज मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च में प्रथम अधिकृत मदर्स डे सेलिब्रेशन का आयोजन किया गया| वर्ष १९१४ को अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष वुड्रो विल्सन ने अॅना जार्विस की कल्पना को मान्यता देते हुए मई महीने के प्रत्येक दूसरे रविवार को राष्ट्रीय अवकाश (छुट्टी) को मान्यता देनेवाले विधेयक पर हस्ताक्षर किये| फिर यह दिन धीरे धीरे अमरीका से युरोपीय और अन्य देशों में और बाद में सारे जगत में अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे के रूप में मान्य किया गया|
कवी तथा लेखिका ज्यूलिया वॉर्ड होवे (Julia Ward Howe) ने इस आधुनिक मातृदिन के कुछ दशक पहले अलग कारण के लिए ‘मातृशांति दिन’ मनाये जाने के लिए प्रचार किया। अमरीका और युरोप में युद्ध के चलते हजारों सैनिक मारे गए, अनेक प्रकार से जनता ने कष्ट और पीड़ा झेली और आर्थिक हानि हुई सो अलग| इस पार्श्वभूमि पर एकाध दिन युद्धविरोधी कार्यकर्ताओं ने एक साथ आकर मातृदिन मनाये जाने की कल्पना जग में फैलनी चाहिए, ऐसा ज्यूलिया को लग रहा था| उसकी कल्पना यह थी कि, महिलांओं को वर्ष में एक बार चर्च या सोशल हॉल में एकत्रित होने के लिए, प्रवचन सुनने के लिए, अपने विचार प्रकट करने के लिए , ईश्वरभक्ति के गीत प्रस्तुत करने के लिए और प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए और उनके लिए ऐसा एकाध दिन तय करना चाहिए। इस कृति से शांति में वृद्धि होगी और युद्ध का संकट टल जायेगा, ऐसा उसे लग रहा था|
परन्तु ‘एकसंध शांतता-केंद्रित मदर्स डे’ मनाये जाने के ये प्रारंभिक प्रयत्न पीछे रह गए क्योंकि, तब तक व्यक्तिगत रूप से मातृदिन मनाया जाने की दूसरी संकल्पना ने जोर पकड लिया था| इसका कारण था व्यापारीकरण! नॅशनल रिटेल फेडरेशन द्वारा २०१९ में प्रकाशित हुए आंकड़ों के अनुसार आजकल मदर्स डे अमरीका में $२५ अरब जितना महँगा अवकाश का दिन बन गया है| वहाँ लोग इस दिन मां पर सबसे अधिक खर्चा करते हैं| ख्रिसमस और हनुक्का सीझन (ज्यू लोगों का ‘सिझन ऑफ जॉय’) को छोड़ मदर्स डे के लिए सब से अधिक फूल खरीदे जाते हैं| आलावा इसके गिफ्ट कार्ड, भेंट की चीजें, गहने, इन पर $५ अरब से भी अधिक खर्चा किया जाता है| इसके अतिरिक्त विविध स्कीम के अंतर्गत स्पेशल आउटिंग भी बहुत लोकप्रिय है|
अॅना रीव्ह्ज जार्विस को इसी कारण मातृप्रेम पर आधारित उसकी कल्पना के बारे में दुःख हो रहा था| उसके जीवन काल में, वह फ्लोरिस्ट्स (फूल बेचने वाली इंडस्ट्री) के आक्रमक व्यापारीकरण के विरोध में अकेले लडी. परन्तु दुर्भाग्य ऐसा था कि, इस बात के लिए उसे ही जेल जाना पडा| इस अवसर पर माता के प्रति भावनाओं का गलत तरीके से राजनितिक लाभ उठाना, धार्मिक संस्थाओं के नाम पर निधि इकठ्ठा करना, ये बातें भी उसकी आँखों के सामने घटित हो रही थीं| जार्विस ने वर्ष १९२० में एक अत्यंत महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किया| उसने कहा, ‘यह विशेष दिन अब बोझिल और फालतू बन गया है| माँ को महंगे गिफ्ट देना, यह मदर्स डे मनाने का योग्य मार्ग नहीं है|’ वर्ष १९४८ में, ८४ की उम्र में, जार्विस की एक सॅनेटोरियम में एकाकी रूप में मृत्यु हुई| तब तक उसने अपना सारा पैसा मदर्स डे की छुट्टी के व्यापारीकरण के खिलाफ लडने के लिए उपयोग कर खर्च कर दिया था| इस बहादुर और उन्नत विचारों की धनी वीरांगना स्त्री को आज के मातृदिवस पर मैं नतमस्तक हो कर प्रणाम करती हूँ| उसका छायाचित्र लेख के साथ जोडा है|
मित्रों, जब मैंने यह जानकारी पढी तब मेरे मन में विचार आया कि, क्या सचमुच ही माँ की ऐसी महँगी अपेक्षाएं रहती हैं? सच में देखें तो, अपेक्षा रहित प्रेम करना ही स्थायी मातृभाव होता है| फिर उसे व्यक्त करने के लिए इस खालिस व्यापारिक रवैये को बढ़ावा देकर पुष्ट करना क्या ठीक है? बहुतांश माताओं को ऐसा लगता है कि, इस दिन उनके बच्चों ने उन्हें केवल अपना समय देना चाहिए, उनसे प्रेम के दो शब्द बोलना चाहिए, माँ के साथ बिताए सुंदर क्षणों की यादें ताज़ातरीन करनी चाहिए। गपशप करना और साथ रहना, बस! इसमें एक ढेले का भी खर्चा नहीं होगा। मेरे विचार में यहीं सबसे बहुमूल्य गिफ्ट होगा आज के मदर्स डे का अर्थात मातृदिन का!
धन्यवाद!
डॉक्टर मीना श्रीवास्तव
दिनांक – १४ मई २०२३
फोन नंबर: ९९२०१६७२११
(टिपण्णी- इस लेख के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी उपयोग किया है| कृपया लेख को अग्रेषित करना हो तो मेरा नाम एवं फोन नंबर उसमें रहने दें!)
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
The post हिन्दी साहित्य – आलेख ☆ “अन्तरराष्ट्रीय मदर्स डे (मातृदिन) – एक पहलू ऐसा भी…” ☆ डॉक्टर मीना श्रीवास्तव ☆ appeared first on साहित्य एवं कला विमर्श.
This post first appeared on ई-अà¤à¤¿à¤µà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ - साहितà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ कला विमरà¥à¤¶ (हिनà¥à¤¦à¥€/मराठी/अङà¥à¤—à¥à¤°à¥‡à¥›à¥€), please read the originial post: here