बहला रहे हो झूठ से पगले नहीं हैं हम.
बोलो न बात जोर से बहरे नहीं हैं हम.
हमसे जो खेलना हो संभल कर ही खेलना,
शतरंज पे फरेब के मोहरे नहीं हैं हम.
सोने सी लग रही हैं ये सरसों की बालियाँ,
तो क्या है जो किसान सुनहरे नहीं हैं हम.
हरबार बे-वजह न घसीटो यहाँ वहाँ,
मसरूफियत है, इश्क़ में फुकरे नहीं हैं हम.
मुश्किल हमारे दिल से उभरना है डूब के,
हैं पर समुंदरों से तो गहरे नहीं हैं हम.
गुमनाम बस्तियों में गुजारी है ज़िन्दगी,
जगमग बुलंदियों पे ही ठहरे नहीं हैं हम.
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