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New Delhi: राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों को बचाने वाले बिल पर काफी हंगामा मचा है। कांग्रेस काला कानून बताकर विरोध कर रही है। इस विधेयक के तहत अगर आप सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत करेंगे तो वसुंधरा सरकार 180 दिन बाद बताएगी कि भ्रष्टाचार की जांच होगी या नहीं।
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इसके दायरे में सरकारी अफसरों के अलावा जनप्रतिनिधि भी आएंगे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश कहता है कि मुख्यमंत्री भी एक सरकारी मुलाजिम ही होता है। इसके खिलाफ बीजेपी से भी विरोध के स्वर उभर रहे हैं। बीजेपी नेता घनश्याम तिवाड़ी ने राजे के इस बिल का विरोध करते हुए विधानसभा सदस्यता को दांव पर लगाने की धमकी दे दी है।
वसंधुरा सरकार ने सीआरपीसी में बदलाव को लेकर विधानसभा में एक विधेयक पेश किया है, जिसका जबरदस्त विरोध हो रहा है। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस अध्यादेश को ‘काला बिल’ करार दिया था। वहीं अब बीजेपी के भीतर ही वसुंधरा का विरोध शुरू हो गया है। बीजेपी नेता घनश्याम तिवाड़ी का कहना है कि वह इस बिल को पारित नहीं होने देंगे भले ही उन्हें अपनी विधानसभा सदस्यता को दांव पर लगाना पड़ जाए।
बता दें कि हाल ही में वसुंघरा सरकार ने हाल ही में सरकारी कर्मचारियों को बचाने के लिए बिल पेश किया था। इस बिल के मुताबिक अगर किसी कर्मचारी के खिलाफ भ्रष्टाचार से जुड़े हुए किसी मामले की शिकायत आती है तो 180 बीत जाने के बाद सरकार यह तय करेगी कि इसकी जांच होगी या नहीं।
अगर यह बिल पारित हो जाता है तो कोई भी मजिस्ट्रेट किसी भी याचिका के आधार पर सरकारी कर्मचारी के खिलाफ जांच का आदेश नहीं दे सकेगा। लेकिन शिकायत के छह महीने यानी 180 दिन तक सरकार की ओर से कोई जबाव नहीं आता तब कोर्ट के जरिए सरकारी नौकर के खिलाफ FIR दर्ज कराई जा सकती है। इस बिल के दायरे में सरकारी कर्मचारियों के अलावा जनप्रतिनिधियों को भी रखा गया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक सीएम भी एक सरकारी कर्मचारी ही होता है।
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