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इस मंदिर में जलती मां की ज्योत को बुझाने में नाकाम रहा था सम्राट अकबर, दान में चढ़ाया था सोना

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New Delhi: मां ज्वाला शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में एक प्रमुख शक्तिपीठ है। कहते हैं कि यहां पर माता सती की जीभ गिरि थी। यहां की देवी मां अंबिका और अनमाता भैरव के रूप में भगवान शिव हैं।

इस मंदिर में ज्वाला रूप में माता का पूजन किया जाता है। यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है, क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है।

यहां की नौ ज्वालाओं के नाम देवी के नाम पर रखे गए हैं। इनके नाम इस प्रकार है महाकाली, मां अन्नपूर्णा, मां चंडी, मां हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, महा सरस्वती, मां अम्बिका और अंजना देवी। ज्वाला मंदिर का एक रहस्य भी है। इस मंदिर में लगातार किसी भी ईंधन, तेल या घी की सहायता के बिना एक चट्टान से निकलती ये ज्वालाएं देखी जा सकती है।

51 शक्तिपीठों में एक प्रमुख शक्तिपीठ मां ज्वाला को माना जाता है। शक्तिपीठ उस स्थान को कहते हैं, जहां पर भगवान विष्णु के चक्र से कटकर माता सती के अंग गिरे थे। माना जाता है कि जो भी भक्त यहां पर माता को नारियल चढ़ाता है उसकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है।

इस मंदिर को राजा भूमि चंद ने बनवाना शुरू किया था। उसके बाद इसे महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने पूर्ण रूप से बनवाया था। यहां पर धरती से नौ अलग-अलग जगहों से ज्वाला निकलती है जिसके उपर ही मंदिर का निर्माण करवाया गया है।

यहां पर मान्यताएं है कि सम्राट अकबर ने अपने समय में यहां पर जल रही ज्योत को बुझाने के प्रयास किए थे, लेकिन हर बार वह असफल रहा। यहां पर कहानियां है कि अकबर ने देवी के चमत्कारों की परीक्षा के लिए उनके एक भक्त का सिर कलम कर दिया था। भक्त ध्यानू का सिर कटते ही ज्वाला और तेज हो गई और ध्यानू का सिर खुद ही जुड़ गया औऱ वो जीवित हो उठा। अंत में उसे भी मां की शक्ति का आभास हुआ और उसने यहां सोने का छत्र चढ़ाया।

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इस मंदिर में जलती मां की ज्योत को बुझाने में नाकाम रहा था सम्राट अकबर, दान में चढ़ाया था सोना

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