एक नयी सहर का तसव्वुर
हर रात मेरी आँखों में होता है
एक सफीने में तन्हा
बीच दरिया मैं बैठा मैं
सुकून भरे लम्हों से
मैं रूबरू हो जाता हूँ
दिन-भर की आपाधापी,
आसमां को चूमने की ख्वाहिश,
बेकरारी और हसद को
एक गोशे में दम तोड़ता देखता हूँ
अजीब उलझन में सुबह उठता हूँ फिर
सोचता हूँ क्या वो अंतर्मन की आवाज थी
या था बस एक ख्वाब
तभी झरोखे से
कदमों के कई झुंडों को
हर जानिब जाते हुए देखता हूँ
अचानक मेरे कदम
एक पाश से जकड़ जाते हैं
और मंत्रमुग्ध होकर मैं भी
उन झुंडों मैं शामिल हो जाता हूँ
‘