130/17
:1:
इतना भी आसान नहीं है
इल्म-ए-सदाक़त, इल्म-ए-दियानत
वरना तो ता उम्र ज़िंदगी
भेजा करती रह्ती लानत
Related Articles
:2:
दिल से जब मिट जाए जिस दिन
इस्याँ और गुनह तारीक़ी
जाग उठेंगे तब उस दिन से
इश्क़ रुहानी , इश्क़-ए- हक़ीक़ी
:3:
सतरंगी अनुभूति मेरी
श्वेत-श्याम सा अनुभव भी है
भोगी हुई व्यथाएँ शामिल
कुछ खुशियों के कलरव भी है
This post first appeared on गीत ग़ज़ल औ गीतिका, please read the originial post: here