प्राणायाम: आजकल लोग जिस तरह से प्राकृतिक जीवनशैली को त्याग कर जिस भौतिकतावाद के पीछे तेजी से दौड़ रहे है उससे हमें कहीं न कहीं नुकसान ही उठाना पड़ा है. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण COVID-19 के रूप में देखने को मिला है.
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आजकल हम छोटी से छोटी बिमारियों के लिए भी दवा पर निर्भर हो गए है, जिसकी वजह से हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता लगातार कम होती जा रही है. हम जब भी किसी रोग के लिए एंटीबायोटिक दवा कर प्रयोग करते है, तो हमारे शरीर में मौजूद बैक्टीरिया उस दवा के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित कर लेते है. जिसकी वजह से हमें और भी अधिक मात्रा में एंटीबायोटिक दवा का इस्तेमाल करना पड़ता है.
और आज के युग में यही क्रम जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई बन चुकी है. जिसके चलते जीवन में एक ऐसा समय आता है जब हमारा जीवन पूरी तरह से दवाओं के सहारे हो जाता है. क्या आपने कभी सोचा है पशु-पक्षी सबसे कम बीमार होते है? जानते है ऐसा क्यूँ वो इसलिए कि वो हर मामूली रोग के लिए दवा नहीं खाते है, बल्कि आहार को संयमित कर अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा लेते है.
यदि आप भी रोग मुक्त जीवन जीना चाहते है और अपने इमुनिटी सिस्टम यानि की रोग प्रतिरोधक तंत्र को और भी अधिक विकसित करना चाहते है, तो आपको अष्टांग योग में वर्णित प्राणायाम को अपने जीवन का एक निश्चित अंग बना लेना चाहिए.
PRANAYAMA दीर्घायु और स्वास्थ्य जीवन जीने का अभ्यास है. यदि हम इस अभ्यास को अपने जीवन का हिस्सा बना लेते है, तो हम निरोगी जीवन जी सकते है.
कई पौराणिक योग उपनिषदों में यह बात लिखी हुई है कि यदि कोई व्यक्ति रोज प्राणायाम करता है तो, वह हर बीमारी से दूर रहता है. छोटी मोटी बीमारियां उसे कभी छूती भी नहीं और उसका शरीर लंबे समय तक जवान रहता है और वह व्यक्ति एक लंबा और स्वस्थ जीवन जी पाता है. और अगर कोई व्यक्ति बीमारियों से ग्रस्त है तो उसे प्राणायाम करना शुरू कर देना चाहिए. धीरे-धीरे समय के साथ उसकी बीमारियां खत्म होनी शुरू हो जाती है. इसीलिए आज के समय में प्राणायाम करना बेहद जरूरी है तो आइए जानते हैं प्राणायाम क्या है? Pranayama in Hindi
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प्राणायाम क्या है ? Pranayama in Hindi
प्राणायाम दो शब्दों का एक योग समूह है जो प्राण+आयाम जैसे दो शब्दों में मिलकर बना है. जिसमे प्राण का अर्थ जीवन और आयाम का अर्थ द्वार से से होता है. यदि इसको स्वस्थ्य जीवन जीने का द्वार कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
प्राणों के सम्यक् व संतुलित प्रवाह को ही प्राणायाम कहते हैं
प्राणायाम का मतलब होता है अपनी प्राणवायु को ठीक करना अंतः श्वास के द्वारा अपनी प्राणवायु को बढ़ाना जिससे फेफड़े की क्षमता बढ़े और शरीर में ज्यादा प्राणवायु जा सके. शरीर में जितनी ज्यादा प्राणवायु जाएगी उतनी ज्यादा ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ेगी और शरीर ज्यादा ताकतवर एवं एक्टिव महसूस करेगा. प्राणायाम करने से हमारे शरीर को कई फायदे होते हैं पर सबसे बड़ी बात की प्राणायाम करने से आप बड़ी-बड़ी खतरनाक बीमारियां जैसे कि मधुमेह, हार्टअटैक, कैंसर, अस्थमा आदि से दूर रहते हैं, और यदि आपको यह बीमारी हो चुकी है तो नियमित प्राणायाम करने इन बीमारियां के बढ़ने की गति कम हो जाती है और शारीर में रोगप्रतिरोधक क्षमता का विकास होने लगता है.
योग के आठ अंग होते है जो अष्टांग योग कहलाते है. प्राणायाम इसी अष्टांग योग का ही एक अंग है. जो निम्न प्रकार से है
- यम
- नियम
- आसन
- प्राणायाम
- प्रत्याहार
- धारणा
- ध्यान
- समाधि
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प्राणायाम के प्रकार : Types Of Pranayama
प्राणायाम मुख्यतः 13 प्रकार के होते है जो निम्नवत है.
- भस्त्रिका प्राणायाम (Bhastrika Pranayam)
- अनुलोम-विलोम (Anulom Vilom Pranayam)
- कपालभाति प्राणायाम (Kapalbhati Pranayam)
- बाह्य प्राणायाम (Bahya Pranayama)
- भ्रामरी प्राणायाम (Bhramari Pranayam)
- उद्गीथ प्राणायाम (Udgeeth Pranayama)
- प्रणव प्राणायाम (Pranav Pranayama)
- अग्निसार क्रिया (Agnisar Pranayama)
- उज्जायी प्राणायाम (Ujjayi Pranayama)
- सीत्कारी प्राणायाम (Sitkari Pranayam)
- शीतली प्राणायम (Sheetali Pranayama)
- चंदभेदी प्राणायम (Chandra Bhedi Pranayam)
- सूर्यभेदी प्राणायाम (Surya Bhedi Pranayam)
प्राणायाम के नियम:
प्राणायाम करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना बहुत ही आवश्यक है. ये नियम अत्यंत ही सरल है परन्तु इन नियमों का पालन कर प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से बहुत ही ज्यादा लाभ मिलता है. प्राणायाम करने से पूर्व इन नियमों को अच्छे से समझ लेना चाहिए तभी हमें इसका अभ्यास करना चाहिए.
- प्राणायाम करने से पहले हमारा मन और शरीर भीतर व बाहर से स्वच्छ होना चाहिए.
- अपने मन के सारे विकारों को हटा देना चाहिए.
- बैठने की जगह स्वच्छ होनी चाहिए और भूमि पर आसन बिछा लेना चाहिए.
- बैठने की मुद्रा सरल होनी होनी चाहिए. आप सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठ सकते है, आप उसी आसन में बैठें जिसमे आपको सरलता हो.
- पीठ बिलकुल सीधी रहनी चाहिए.
- यदि भूमि में बैठने में तकलीफ है तो आप कुर्सी पर भी बैठ कर प्राणायाम कर सकते है.
- प्राणायाम करते समय यथायोग्य शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए. जरुरत से ज्यादा शारीरिक या मानसिक शक्ति का प्रयोग न करे.
- प्राणायाम करते समय शरीर बिलकुल ढीला रहना चाहिए अनावश्यक तनाव न ले.
- स्वांस का आदान प्रदान सुगमता और सम्यक होना चाहिए.
- उच्च रक्त-चाप के रोगियों को धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये.
- यदि आँप्रेशन हुआ हो तो कम से कम छह माह के पश्चात् ही प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए.
- हर स्वांस के साथ अपने इष्ट का जाप करे. ॐ का उच्चारण करना सर्वश्रेष्ठ है.
प्राणायाम कैसे करें? Pranayama Kaise Kare
यदि संभव हो तो प्रातःकाल सूर्य उदय के समय नित्यकर्मों से निवृत होकर स्वच्छ भूमि पर आसन लगा कर किसी भी मुद्रा (सुखासन) में बैठ जाए. और हाँथ की मुद्राएँ ज्ञान मुद्रा, ध्यान मुद्रा या वायु मुद्रा में रहनी चाहिए.
स्वस्थ्य जीवन के नियम
1. भस्त्रिका प्राणायाम : Bhastrika Pranayam in hindi
प्राणायाम की प्रक्रिया में सबसे पहला प्राणायाम है भस्त्रिका प्राणायाम. सबसे पहले ऊपर बताये गए किसी भी आसन में बैठ जाए. उसके बाद दोनों नाक से एक लम्बी साँस लेकर धीरे धीरे फेफड़ों में भरेंगे और फिर धीरे पूरी सांस को फेफड़ों से बहार निकल देंगे. स्वांस लेने और छोड़ने की गति समान होनी चाहिए.
भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ : Bhastrika Pranayam benefits
- इससे हमारे फेफड़ों में भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन जायेगी और फेफड़े स्वस्थ्य व मजबूत बनेंगे.
- इससे हमारा हृदय सशक्त होगा और ह्रदय से सम्बंधित रोगों में कमी आती है..
- इससे मेधा शक्ति बढती है और मस्तिष्क से सम्बंधित सभी बीमारियाँ दूर होती है.
- पार्किनसन, पैरालिसिस, लूलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी सभी बीमारियों में लाभ मिलता है.
2. अनुलोम-विलोम प्राणायाम विधि : Anulom Vilom Pranayam
अनुलोम विलोम प्राणायाम को नाड़ी शोधन प्राणायाम भी कहते है. सबसे पहले आप अपनी उंगलियों को अपने नाक के नीचे रख कर देखें कि आपकी कौन सी नाक चालू है. आपके नाक में 2 नाड़ियां होती है इंगला और पिंगला. अगर दाई नाक से हवा आ रही है तो इसका मतलब है कि आपका दाहिना फेफड़ा एक्टिव है. और यदि बाई नाक से हवा आ रही है तो इससे यह पता चलता है कि आपका बाया फेफड़ा एक्टिव है, इसलिए सबसे पहले हम इस बंद नाक को खोलेंगे. अब जिस नाक से हवा नहीं आ रही है. हम लोग सबसे पहले उस नाड़ी की सफाई करेंगे. इसके लिए जिस नाक से हवा आ रही है उसे बंद करेंगे, और जिस नाक से हवा नहीं आ रही है उससे धीरे-धीरे लंबी सांस लेंगे, और धीरे-धीरे सांस छोड़ेंगे.
अब अपने दाहिने हाथ के अंगूठे से अपनी दाहिनी नाक बंद करें और बाईं नाक से लंबी सांस लें. अब अपनी दूसरी उंगली से अपने बाएं नाक को बंद करें और दाहिनी नाक से सांस छोड़ दें. अब इसी का उल्टा करें दाहिनी नाक से अब लंबी सांस लें और फिर दाहिनी नाक को बंद करें और बाईं नाक से सांस छोड़ दें ऐसा कम से कम 5 मिनट के लिए करेंगे और ऐसा करने के बाद आपकी दोनों नाक खुल जाएंगी.
अनुलोम-विलोम प्राणायाम के लाभ : Anulom Vilom pranayam benefits
इस प्राणायाम के करने से हार्ट की ब्लाॅकेज खुल जाती है. उच्च रक्तचाप एवं निम्न रक्तचाप दोनों में लाभ होता है. इस प्राणायाम के करने से फेफड़ों में स्वच्छ oxygen पहुंचती है जिससे फेफड़ों से संबंधिक रोगों में बहुत अच्छा लाभ मिलता है और फेफड़े मजबूत होते है. इससे स्मरण शक्ति भी बढती है और माइग्रेन से लेकर मस्तिषक के सम्बधित सभी व्याधिओं में लाभ मिलता है.
3. कपालभाति प्राणायाम विधि : Kapalbhati Pranayam in hindi
अब हम कपालभाति प्राणायाम करेंगे. कपालभाति करने के लिए सुखासन में बैठे. और अपनी स्वांस को बहार की तरफ फेकते हुए पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना होता है. इसमें स्वांस को बाहर छोड़ना होता है. सांस छोड़ते ही स्वांस फिर से स्वतः ही अन्दर चली जाएगी आपको जानबूझ का स्वांस नहीं लेना है. इस प्रक्रिया को कम से कम 5 मिनट तक जरुर करे.
कपालभाति प्राणायाम के लाभ : Kapalbhati Pranayam benefits in Hindi
- बालों की समस्याओँ का निराकरण होता है.
- चेहरे की झुरियाँ और आँख के नीचे के काले धब्बे ख़त्म हो जाते है.
- थायराॅइड की समस्या मिट जाती है.
- आँखो की रोशनी बढती है.
- इसके करने से पेट की अतरिक्त चर्बी कम होती है.
- पेट रोग जैसे कब्ज, ऐसिडिटी, गैस्टि्क, बवासीर आदि में बहुत ही अधिक लाभ मिलता है.
- चहरे की चमक बढ़ जाती है.
4. बाह्य प्राणायाम विधि : Bahya Pranayama
बाह्य प्राणायाम करने के लिए उचित अभ्यास की आवश्यकता होती है. बाह्य प्राणायाम का अर्थ होता है साँस को बाहर रखकर बंध लगाना. इस प्राणायाम को करने के लिए सबसे पहले पूरी सांस को फेफड़े और पेट से बाहर निकलते है, फिर साँस को बाहर ही रोक कर तीन बन्ध लगाते हैं.
- जालंधर बन्ध :- साँस छोड़ने के बाद गले को पूरा सिकोड कर ठोडी को छाती से सटाते है.
- उड़ड्यान बन्ध :- पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खींचते है. ऐसा महसूस होता है जैसे पेट और पीठ एक में मिल गए है.
- मूल बन्ध :- अपने गुदा द्वार (Anal) को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींच कर रखना होता है.
इस अवस्था में कुछ देर तक रहना होता है. इस अभ्यास को 5-6 बार दोहराएँ.
बाह्य प्राणायाम के लाभ: Benefits Of Bahya Pranayama in Hindi
- इस अभ्यास को नियमित करने से पेट रोग जैसे कब्ज, ऐसिडिटी, गैस इत्यादि रोग मूल से ही समाप्त हो जाते है.
- बांझपन जैसे रोग में भी लाभदायक है.
- हर्निया जैसे कष्टदायी रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है.
- धातु और पेशाब से संबंधित सभी रोग ख़त्म हो जाते है.
- इससे मन की एकाग्रता शक्ति बढ़ती है.
5. भ्रामरी प्राणायाम विधि : Bhramari Pranayam
भ्रामरी प्राणायाम मष्तिष्क रोगों के लिए अमृत जैसा है. इसे करना बहुत ही आसान है. सबसे पहले किसी भी सरल आसन में बैठ जाए फिर हाथ दोनो अंगूठे से अपने दोनों कान पूरी तरह से बन्द करले, फिर अपनी दोनों तर्जनी उँगलियों को अपने माथे पर रखे, फिर आँख बंद कर दोनों हाथों की उंगलियों दोनों आँखों पर रख ले. फिर नाक से लम्बी सांस भर कर एक सांस में ॐ का उच्चारण करे. इस क्रम को दोहराते हुए 5-6 बार करे.
भ्रामरी प्राणायाम के लाभ: Bhramari Pranayama benefits in Hindi
भ्रामरी प्राणायाम एक तरह से दिमाग के लिए रामबाण औषधि है. इससे सभी प्रकार के मानसिक रोग दूर होते है. इसके बहुत सारे फायदे है. जो निम्न प्रकार से है…
- सरदर्द, माइग्रेन इत्यादि रोगों के लिए अत्यंत लाभदायक है.
- मानसिक शांति मिलती है. जिससे मन एवं मस्तिष्क दोनों ही प्रसन्न व शांत रहते है.
- भ्रामरी प्राणायाम करने से मानसिक तनाव दूर होते है और नई उर्जा का संचार होता है.
- मानसिक एकाग्रता बढती है और घबराहट कम होती है.
- ब्लडप्रेशर : इस प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से ब्लडप्रेशर कण्ट्रोल में आ जाता है.
- डिप्रेसन: यदि आप डिप्रेशन से ग्रसित हैं तो यह प्राणायाम आपके लिए रामबाण औषधि का कार्य करेगी.
- काम वासना एवं क्रोध पर नियंत्रण मिलता है.
- इच्छाशक्ति और संकल्प शक्ति बढती है.
6. उद्गीथ प्राणायाम : Udgeeth Pranayama
उद्गीत प्राणायाम एक तरह से मैडिटेशन प्राणायाम है. इस प्राणायाम को “ओमकारी जप” भी कहते है. यह अत्यंत सरल प्राणायाम है. सबसे पहले किसी भी आसन में बैठ जाए. फिर नाक से लम्बी साँस अन्दर ले, और फिर धीरे-धीरे पूरी सांस को ॐ का जाप करते हुए बाहर निकले. ॐ का जाप करते हुए सांस को बाहर निकालने में 10-15 सेकंड का समय ले. इस प्रकार एक सांस की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. इस प्राणायाम का अभ्यास कम से कम 10-15 करे.
उद्गीथ प्राणायाम के लाभ: Benefits Of Udgeeth Pranayama in Hindi
- स्मरण शक्ति बढती है.
- शारीरिक एवं मानसिक कार्य करने की क्षमता बढती है.
- चिंता, भय, घबराहट, डिप्रेसन, मायग्रेन पेन, ब्लडप्रेशर इत्यादि में अभूतपूर्व आराम मिलता है.
- सकारात्मक उर्जा का संचार होता है.
- आत्मविश्वाश बढ़ता है.
7. प्रणव प्राणायाम : Pranav Pranayama
सबसे पहले धयान मुद्रा में बैठ जाए. उसके पश्चात अपनी आँखों को बंद कर ले. फिर धीरे-धीरे गहरी सांस लेते हुए मन में ॐ का उच्चारण करेंगे. इस अवस्था को 10-15 बार अभ्यास करे.
प्रणव प्राणायाम के लाभ: Pranav Pranayama Benifits in Hindi
- सकारात्मक उर्जा का संचार होता है.
- आत्मविश्वाश बढ़ता है.
- स्मरण शक्ति बढती है.
- शारीरिक एवं मानसिक कार्य करने की क्षमता बढती है.
- चिंता, भय, घबराहट, डिप्रेसन, मायग्रेन पेन, ब्लडप्रेशर इत्यादि में अभूतपूर्व आराम मिलता है.
8. अग्निसार क्रिया : Agnisar Pranayama
यह क्रिया पेट रोगियों के लिए अमृत है. सबसे पहले आपको किसी भी आसन में बैठ जाना है. तत्पश्चात एक लम्बी स्वांस लेना है फिर पूरी सांस को बाहर निकालकर रोके रखना है फिर आपको अपना पेट आगे पीछे चलाना होता है. ध्यान रहे पेट के अतरिक्त शरीर का कोई अन्य अंग नहीं हिलाना होता है. आरम्भ में इस प्राणायाम को करने में थोड़ी सी परेशानी आएगी. लेकिन जैसे ही आप ५-६ बार इसका अभ्यास करेंगे. आपको ये सरल लगने लगेगा.
अग्निसार क्रिया के लाभ : Agnisar Pranayama Benefits in Hindi
- इस अभ्यास को नियमित करने से पेट रोग जैसे कब्ज, ऐसिडिटी, गैस इत्यादि रोग मूल से ही समाप्त हो जाते है.
- बांझपन जैसे रोग में भी लाभदायक है.
- हर्निया जैसे कष्टदायी रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है.
- धातु और पेशाब से संबंधित सभी रोग ख़त्म हो जाते है.
- इससे मन की एकाग्रता शक्ति बढ़ती है.
9. उज्जायी प्राणायाम कैसे करे : Ujjayi Pranayama Kaise Kare
आठ प्राणायामों में चौथा सबसे महत्वपूर्ण उज्जाई प्राणायाम हैं. उज्जाई प्राणायाम में गले को पूरा सिकोड कर ठोडी को छाती से सटाते है. फिर गले से गहरी सांस अन्दर फेफड़ों में भरते है, फिर यथाशक्ति सांस को भीतर ही रोक कर रखते है. स्वांस भरते समय कंठ से एक स्वर आता है. जब स्वास छोड़ने की इच्छा हो तो, दाई नाक को अंगूठे से बंद कर बायीं नाक से स्वांस छोड़ते है. इस प्रकार एक चक्र पूरा हो जाता है. एक बार में २-३ चक्रों का अभ्यास करे. उचित अभ्यास होने पर 7-11 बार भी इस प्राणायाम को किया जा सकता है. इस अभ्यास को 24 घंटे में एक बा
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