Palamu fort – पलामू के दो प्रसिद्ध किले झारखण्ड के दलतोंगंज शहर से दक्षिण पूर्व की दिशा में करीब लगभग 20 किमी की दुरी पर है।
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पलामू किले का इतिहास – Palamu fort History
मैदान के इलाके में जो पुराना किला है वो चेरो वंश से भी पहले बनाया हुआ है और उसे राजा रक्षेल ने बनाया था। हालाकी, उस दौरान राजा मेदिनी राय का शासन था जिसने पलामू के मेदिनीनगर से 13 साल तक यानि की 1662 से 1674 तक शासन किया।
पुराने किले को सुरक्षा की दृष्टी से उसे फिर से बनवाया गया था। राय चेरो जनजाति के राजा थे। उसका साम्राज्य दक्षिण में गया, हजारीबाग और सुरगुजा तक था। उसने दोइसा पे हमला कर दिया और छोटानागपुर के राजा को हराया था।
दोइसा रांची से 53 किमी की दुरी पर है। उस लड़ाई मे जो लुटा था उसके ही दम पर राजा ने सतबरवा के नजदीक एक किले का निर्माण करवाया था। और आज वही किला उस जिले में सबसे मशहुर किला माना जाता है।
1574 में अकबर के शासन काल में राजा मान सिंह के नेतृत्व में पलामू पर हमला किया गया था। लेकिन 1605 में उसकी सेना पलामू के लड़ाई में हार गई थी क्यु की उस वक्त अकबर की मृत्यु हो गयी थी।
जब शाहजहाँ का शासन चल रहा था तो उस वक्त अहमद खान पटना का सूबेदार था और उसने पलामू के चेरो राजा से फिरोती वसूल रहा था लेकिन चेरो राजा ने उसे देने से मना कर दिया। इसके कारण मुघलो ने चेरो राजा पर तीन बार हमला किया।
3 अप्रैल 1660 से दौड़ खान ने हमले करने की मुहीम शुरू कर दी थी जिसकी शुरुवात उसने पटना से की थी, बाद में उसने गया के दक्षिण हिस्से में हमला किया और सबसे आखिरी में वो 9 दिसंबर 1660 को पलामू किले तक पंहुचा।
फिरोती की रकम देने से चेरो राजा ने इंकार कर दिया था। लेकिन दौड़ खान चाहता था सारे हिन्दू लोगों ने इस्लाम धर्म का स्वीकार करना चाहिए तो उसने लगातार किले पर हमला करना शुरू कर दिया था।
लेकिन चेरो के लोगों ने भी पूरी जान लगाके किले को बचाने की कोशिश की मगर आखिरी में दौड़ खान ने किले पर कब्ज़ा जमा ही लिया और चेरो को जंगल में भागना पड़ा। बाद में फिर हिन्दू लोगों को वहा निकाल दिया गया, मंदिरों को तोडाफोड़ा गया और इस्लाम लोगों की सत्ता स्थापित की गयी।
मेदिनी राय की म्रत्यु के बाद में उनके चेरो वंश के घर के लोगों में दुशमनी हो गयी उसके कारण ही चेरो वंश का पतन शुरू हो गया था। उनकी मृत्यु के बाद उनका राज्य मंत्री और सलाहकार ही सँभालते थे।
चित्रजित राय के भतीजे गोपाल राय ने उन्हें धोका दिया और किले पर आक्रमण करने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पटना परिषद् को बुलाया था। जब कप्तान कामाक ने 28 जनवरी 1771 को नए किले पर आक्रमण कर दिया तो चेरो के सैनिकोने पूरी जान लगा के अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी लेकिन बिच बिच में चेरो के सैनिको को पानी की कमी महसूस हो रही थी।
उसी कारण वो लड़ाई लडनेसे पीछे हट गए। उनकी इसी कमजोरी के कारण अंग्रेजो को आसानी से जीत मिली और उन्होंने कुछ ज्यादा मेहनत ना करते हुए भी नए किले को अपने कब्जे में कर लिया था। उस किले की जगह अंग्रेजो के लिए काफ़ी अच्छी साबित हुई।
उस किले के कारण अंग्रेजो को तोप से हमला करना काफ़ी आसान सा काम हो गया था। चीरो ने भी उनकी तोपों की मदत से अंग्रेजो पर पूरी ताकत से हमला कर दिया था लेकिन 19 मार्च 1771 को अंग्रजो ने पुराने किले को भी अपने कब्जे में कर लिया।
और आखिरकार सन 1772 में अंग्रेजो ने किलो को अपने कब्जे में कर लिया था। कुछ साल गुजरने के बाद चेरो और खरवार ने साथ में मिलकर सन 1882 में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई बोल दी थी लेकिन उस लड़ाई में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
पलामू किले की वास्तुकला – Palamu fort architecture
जहातक किले के संरक्षण की बात की जाये तो रोह्ताशगढ़ किला और शेरगढ़ किला काफ़ी अच्छी स्थिती में थे। दीवारों की संरचना और आकार काफ़ी सुरक्षित था।
किले के दीवारों की चौड़ाई भी काफ़ी हद तक अच्छी थी। जहापर लड़ाई लड़ी जाती थी उस रस्ते की चौड़ाई करीब 8 फीट दिखाई देती है। लेकिन किले बाकी सभी जगह की चौड़ाई काफ़ी कम है।
किले के हर दीवार छोटे छोटे छेद बनाए हुए है जिससे पता चल सके की दुश्मन की सेना क्या हालचाल कर रही है। किले की दीवारे पत्थर और कंक्रीट से बनाई हुई दिखाई देती है।
कोई भी दुश्मन की सेना हमला ना कर सके इसको ध्यान में रख कर ही इमारतो को उस तरह की वास्तुकला में बनाया जाता है। उन सभी किलो को मुग़ल के शासन कल में बनाया गया था।
पुराने किले का आकार बाकी किलो की तरह ही है और उसका घेरा 1 मैल तक फैला हुआ है। किले के उपरी हिस्से में बडासा आंगन बनाया हुआ है और उसके बीचो बिच दीवार बनाई हुई है जिसके कारण उपरी हिस्सा अलग हो जाता है और निचला हिस्सा अलग हो जाता है।
शत्रु के होने वाले हमले को ध्यान में रखकर ही किले के द्वार भी बहुत मजबूती से बनाए हुए है। इसीलिए उन्हें कोई भी बड़ी आसानी से पार नहीं कर सकता। किले के सभी द्वार अन्दर और बाहर से काफ़ी चिकने है और चारो द्वारो पर घडी का स्तंभ भी है। किले के अंदर एक दीवार भी जिसमे में भी द्वार बनाया हुआ दिखाई देता है। उस दीवार को पत्थरो से बनाया हुआ है।
पलामू किले तक कैसे पहुचे – How to reach Palamu fort
बस से जाने की सुविधा – यहाँ तक पहुचने के लिए रांची और हजारीबाग से बहुत सारी बसेस बड़ी आसानी से मिल जाती। बस सुविधा के कारण कोई भी बड़ी आसानी से दल्तोंराज पहुच सकता है। रांची और हजारीबाग से दल्तोंराज तक पहुचने के लिए बस की सुविधा है।
रेलगाड़ी से जाने की सुविधा – दल्तोंराज को जाने को लिए रांची, पटना, हजारीबाग और नेतरहाट से बहुत सारी रेलगाड़ी शुरू रहता है। दल्तोंराज पलामू से सबसे नजदीक में आता है।
हवाई जहाज से जाने की सुविधा – रांची का हवाई अड्डे की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ का हवाई अड्डा शहर से 171 किमी की दुरी पर है।
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