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मल्लिकार्जुना ज्योतिर्लिंगा का इतिहास | Mallikarjuna Jyotirlinga

Mallikarjuna Jyotirlinga – श्री ब्रमराम्भा मल्लिकार्जुना मंदिर भगवान शिव-पार्वती को समर्पित हिन्दू मंदिर है, जो भारतीय राज्य आंध्रप्रदेश के श्रीसैलम में बना हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक और देवी पार्वती के आंठ शक्ति पीठो में से एक है।

यहाँ भगवान शिव की पूजा मल्लिकार्जुन के रूप में की जाती है और लिंग उनका प्रतिनिधित्व करता है। देवी पार्वती को भ्रमराम्बा की उपाधि दी गयी है। भारत का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसे ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ दोनों की उपमा दी गयी है।

मल्लिकार्जुना ज्योतिर्लिंगा का इतिहास – Mallikarjuna Jyotirlinga

मल्लिकार्जुना ज्योतिर्लिंगा का इतिहास – Mallikarjuna Jyotirlinga History:

मंदिर की भगवान शिव की मूर्ति को उनके 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। साथ ही देवी ब्रमराम्भा की मूर्ति को उनके आंठ शक्तिपीठो में से एक माना जाता है।

कुछ लोगो के अनुसार यहाँ सत्वहना साम्राज्य के रहने के भी कुछ पुख्ता सबुत मिले है और उनके अनुसार इस मंदिर की खोज दूसरी शताब्दी में की गयी थी। मंदिर का ज्यादातर नवनिर्माण विजयनगर साम्राज्य के राजा हरिहर ने करवाया था। मल्लिकार्जुन को दक्षिण का कैलाश कहते हैं। अनेक धर्मग्रन्थों में इस स्थान की महिमा बतायी गई है।

महाभारत के अनुसार श्रीशैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। कुछ ग्रन्थों में तो यहाँ तक लिखा है कि मल्लिकार्जुन के शिखर के दर्शन मात्र करने से दर्शको के सभी प्रकार के कष्ट दूर भाग जाते हैं, उसे अनन्त सुखों की प्राप्ति होती है और आवागमन के चक्कर से मुक्त हो जाता है।

शिव महापुराण के अनुसार एकबार ब्रह्मा (सृष्टि के निर्माता) और विष्णु (सृष्टि के संरक्षक) के बीच सृजन की सर्वोच्चता को लेकर बहस छिड़ गयी। उनकी परीक्षा लेने के लिए शिवजी ने ब्रह्माण्ड को प्रकाश के अनंत पिल्लर से छेद कर दिया, जिसे ज्योतिर्लिंग का नाम दिया गया।

विष्णु और ब्रह्मा दोनों ही प्रकाश के अंत की खोज में निकल पड़े। ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के बाद ब्रह्मा ने आकार झूट बोल दिया की उन्हें प्रकाश का अंत मिल गया है, जबकि विष्णु ने अपनी हार स्वीकार कर ली। जिसके बाद शिवजी ने ब्रह्मा को श्राप दिया की किसी भी उत्सव और धार्मिक कार्य में उन्हें स्थान नही दिया जाएंगा जबकि भगवान विष्णु को अनंत काल तक पूजा जाएंगा।

कहा जाता है की ज्योतिर्लिंग भी भगवान शिव का ही एक रूप है। जिसका अनंत प्रकाश हमें दिखाई नही देता। वास्तविक रूप से भगवान शिव के 64 ज्योतिर्लिंग है लेकिन उनमे से 12 को ही सबसे पवित्र और धार्मिक ज्योतिर्लिंग की संज्ञा दी गयी है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों को अलग-अलग नाम भी दिए गए है। उन्ही नामो को भगवान शिव का अलग-अलग रूप में माना जाता है।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग इस प्रकार है –  आंध्रप्रदेश के श्रीसैलम में मल्लिकार्जुन, मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकालेश्वर, मध्यप्रदेश में ओंकारेश्वर, महाराष्ट्र में त्रिंबकेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, गुजरात में सोमनाथ,महाराष्ट्र में भीमाशंकर, उत्तरप्रदेश के वाराणसी में विश्वनाथ,  झारखण्ड के देवगढ़ जिले में वैद्यनाथ, गुजरात के द्वारका में नागेश्वर, महाराष्ट्र के औरंगाबाद में ग्रिश्नेश्वर और तमिलनाडु के रामेश्वरम् में रामेश्वर।

शक्तिपीठ – Shakti Peeth:

श्रीसैलम श्री मल्लिकार्जुन स्वामी मंदिर 18 महा शक्ति पीठो में से एक है। दक्षयागा पौराणिक कथाओ और सति की स्वयं बंदी के परिणामस्वरूप सति देवी की जगह पर श्री पार्वती का उगम हुआ और उन्होंने ही शिव को अपना घरदार बनाया। यही पौराणिक कथाये शक्ति पीठ के उगम के पीछे की कहानी है। सति देवी की लाश जब भगवान शिव लेकर घूम रहे थे तभी आदिपराशक्ति की स्थापना की गयी। कहा जाता है की देवी सति के उपरी होंठ यहाँ गिरे थे।

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