पठारों की आकृति, संरचना एवं खनिज संपदा का भूवैज्ञानिक अध्ययन न केवल विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, बल्कि समृद्धि और विकास के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करते हैं.
इससे हम पृथ्वी के भौतिक विश्लेषण, उपयोग और उनके संसाधनों को समझते हैं, जो हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं.
इस के लेख के माध्यम से हम पठार क्या है, पठार की विशेषताएँ, पठार कैसे बनते हैं, पठारों का वर्गीकरण, पठारों के प्रकार और उनका महत्व आदि के बारे में जानेंगे, कृपया लेख में अंत तक बने रहें.
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पठार किसे कहते हैं. विशेषताएँ, निर्माण, वर्गीकरण, प्रकार और महत्व |
बिना किसी देरी के, चलिए शुरू करते हैं पठार किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं के बारे में यह महत्वपूर्ण लेख.
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पठार किसे कहते हैं
पठार एक विशेष प्रकार के भूभाग होते हैं जो आसपास की भूमि से ऊभरे हुए होते हैं और उनकी ऊपरी सतह समतल या ऊबड़-खाबड़ होती है, इन्हें उठी हुई और सपाट भूमि भी कहा जाता है.
सामान्यतः पठार पर्वतों की तुलना में कम ऊँचे होते हैं लेकिन कुछ पठार पर्वतों से ऊँचे भी हो सकते हैं, पठारों का निर्माण भूकंप, भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं और सतह परिवर्तन के परिणामस्वरूप होता है.
पठारों की विशेषताएँ
पठारों की अनेक विशेषताएँ हैं जिनकी जानकारी इस प्रकार है.
भू आकृति - पठार एक ऐसी भू आकृति है जो आसपास के क्षेत्रों से ऊंची होती है, यह आसपास के मैदानों से ऊँचा और आसपास के पर्वतों से छोटा होता है.
शीर्ष सतह - पठार की शीर्ष सतह समतल या उबड़-खबड़ होती है.
खुले मेज - पठार एक खुली मेज़ की भांति होता है, जो एक छोर पर पर्वतों और दूसरे छोर पर मैदानों, तटीय क्षेत्रों या पहाड़ों से घिरा होता है.
ऊंचाई - पठार की ऊंचाई कुछ सौ मीटर से लेकर कई हजार मीटर तक हो सकती है, इसकी कोई स्पष्ट ऊंचाई नहीं है, पठार की ऊंचाई में अंतर अलग-अलग डिग्री पर बदल सकता है और यह कई सौ मीटर से लेकर कई हजार मीटर तक हो सकता है.
प्रकार - पठारों का निर्माण भूकंप, भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं और सतही परिवर्तनों के परिणामस्वरूप होता है.
विश्व में फैलाव - विश्व भर में कई पठार हैं जिन्हें विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे तिब्बत का पठार, कोलोराडो का पठार, भारत के झारखंड में पाट क्षेत्र आदि. विश्व का सबसे ऊँचा पठार तिब्बती पठार है जो एशिया महाद्वीप में स्थित है.
पठारों का निर्माण कैसे होता है
पठारों का निर्माण कई भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के संयोजन से होता है जिसका विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है.
धरातल के अवसंवलन और उत्संवलन - सतह के कुछ हिस्सों के नीचे धंसने और कुछ हिस्सों के ऊपर उठने से पठारों का निर्माण हो सकता है, यह अवसंवलन (सतह के नीचे दबाव) और उत्संवलन (सतह के ऊपर कंपन) के कारण होता है.
लावा प्रवाह - जब किसी समतल क्षेत्र में ज्वालामुखी से लावा निकलता है और सतह पर फैलकर ठंडा हो जाता है तो ऐसी स्थिति में लावा जम जाता है और एक पठार का निर्माण होता है.
पर्वत निर्माण - पर्वतों के निर्माण के साथ-साथ आसपास के क्षेत्र भी ऊपर उठ जाते हैं जिससे तलहटी पठारों का निर्माण होता है.
वायुमंडल के प्रभाव - वायुमंडल के प्रभाव के कारण सतह के पत्थर और चट्टानों का उदासीनीकरण हो जाता है और फिर वे छोटे छोटे टुकड़ों में बदल जाते हैं जिससे पठारों का निर्माण होता है.
भूसन्नति के प्रभाव - प्राचीन काल में पर्वतों के ऊपरी भाग के घर्षण एवं अनाच्छादन के कारण वे छोटे हो जाते हैं और बाद में पठारों में विकसित हो जाते हैं.
ये सभी प्रक्रियाएं पठारों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और अंततः पठारों के निर्माण को पूरा करती हैं, भूगर्भ विज्ञानी इन प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं ताकि पृथ्वी के विभिन्न भागों में पठारों के विकास को समझ सकें.
पठारों के वर्गीकरण
पठारों को कई आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जो इस प्रकार हैं.
निर्माण प्रक्रिया - यह वर्गीकरण उन पठारों के आधार पर होता है जिनका निर्माण बहिर्जनित बल, हिमानी निर्मित, पवन द्वारा निर्मित, जल द्वारा निर्मित और अंतर्जात बलों द्वारा होता है.
भौगोलिक स्थिति - पठारों को उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे अंतरपर्वतीय पठार, गिरिपाद पठार, महाद्वीपीय पठार और तटीय पठार.
आकार - पठारों के आकार के आधार पर भी उन्हें वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे छोटे पठार, मध्यम पठार और बड़े पठार.
सतह क्षेत्र - पठारों को उनके सतहीय धरातल के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे समतल और विषम सतह के पठार.
जलवायु - पठारों को उनके जलवायु के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जैसे मरुस्थलीय या शुष्क पठार, आर्द्र पठार और हिम पठार.
अपरदन चक्र - पठारों को उनके अपरदन चक्र के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे तरुण पठार, प्रौढ़ पठार और जीर्ण पठार.
पठारों के प्रकार
1. निर्माण प्रक्रिया के आधार पर
पठारों के निर्माण की प्रक्रिया में दो प्रकार के बल योगदान करते हैं, पहला सतह के अंदर से लगने वाला बल जिसे अंतर्जनित बल कहते हैं और दूसरा बल, सतह पर लगने वाले बल जैसे- हवा, पानी, बर्फ, तापमान, वायुदाब आदि को बहिर्जनित बल कहते हैं.
A. अंतर्जनित बलों द्वारा निर्मित पठारों के प्रकार
सतह के अंदर विकसित होने वाले बलों या शक्तियों की तीव्रता के आधार पर दो तरह के बल का विकास होता है, पहला है पटलविरुपण बल और दूसरा है आकस्मिक अंतर्जात बल, इस आधार पर निर्मित पठारों को दो भागों में बाँटा गया है.
i). पटलविरूपणी पठार
पटलविरूपणी पठार के अंतर्गत उन पठारों को शामिल किया जाता है, जिनका निर्माण अंतर्जात शक्तियों द्वारा धीरे-धीरे विकसित होता है और विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ पाया जाता है, ये पठार निम्न प्रकार के होते हैं.
• अन्तर्पर्वतीय पठार
अंतरपर्वतीय पठार वे पठार हैं जो चारों ओर से पर्वतों से घिरे होते हैं, इसका निर्माण धीमी अंतर्जात शक्तियों द्वारा होता है. इसका विकास अधिकतर वलित पर्वतों के मध्य में होता है और इसके साथ-साथ भूसंचयन के किनारों पर पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण होता है, इसके उदाहरण हिमालय पर्वत और कुनलुन पर्वत के बीच का तिब्बती पठार, बोलीविया और पेरू का पठार, कोलंबिया का पठार और मैक्सिको का पठार हैैं.
• गिरिपदीय पठार
गिरिपदीय पठार पर्वतों के आधार पर विकसित होता है जिसमें एक ओर पर्वत तथा दूसरी ओर मैदान अथवा समुद्र तल होता है, इसका निर्माण पर्वतों के साथ-साथ होता है, अमेरिका का पीडमोंट पठार और दक्षिण अमेरिका का पेटागोनिया का पठार इसके उदाहरण हैं.
• गुंबदाकार पठार
ज्वालामुखी क्रिया के कारण विस्तृत गुंबदाकार पठार बनता है, जिसमें बीच का हिस्सा सबसे ऊपर और चारों ओर की ऊंचाई कम होती है, संयुक्त राज्य अमेरिका में ओज़ार्क पठार और छोटानागपुर पठार इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं.
• महाद्वीपीय पठार
विस्तृत क्षेत्र में फैले हुवे पठार को महाद्वीपीय पठार कहते हैं, यह क्षेत्र समुद्री तटों या मैदानों से घिरा हुआ होता है जिसका एक छोर पर्वतीय भी हो सकता है. भारत का प्रायद्वीपीय पठार, अरब का पठार इसका सर्वोत्तम उदाहरण है.
• सागरतटीय पठार
सागरतटीय पठार वह पठार है जिसका विकास सागर तट के समीप होता है, जिस कारण यह तटीय पठार भी कहलाता है, भारत में कोरोमंडल तट के तटीय पठार इसका उदाहरण हैं.
ii). आकस्मिक अंतर्जात बलों द्वारा निर्मित पठार
आकस्मिक अंतर्जात बलों द्वारा निर्मित पठार के अंतर्गत वे ज्वालामुखीय पठार आते हैं जो क्षणिक समय में उत्पन्न होते हैं और एक सीमित क्षेत्र में फैले हुए होते हैं, आकस्मिक अंतर्जात बलों द्वारा निर्मित पठार को दो भागों में विभाजित किया गया है.
• लावा पठार
जब किसी क्षेत्र में ज्वालामुखी से लावा उद्गार होता है तो विस्तारशील क्षेत्र में लावा एक ऊँचा पठार बनाता है, यह पठार आस-पास के क्षेत्र से ऊपर उठ जाता है और विशाल क्षेत्र को आवरण करता है, दक्षिण भारत का पठार और अमेरिका के कोलंबिया का पठार इस प्रकार के पठार के उदाहरण हैं.
• केंद्रीय उद्गार द्वारा निर्मित पठार
जब लावा गाढ़ी अवस्था में होता है तो इसका संचय ज्वालामुखी के चारों ओर होने लगता है, इस लावा से बने छोटे से क्षेत्र में फैले हुए पठार को केन्द्रीय पठार कहते हैं.
B. बहिर्जनित बल द्वारा निर्मित पठारों के प्रकार
बहिर्जनित बल द्वारा निर्मित पठारों को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया जाता है.
i). हिमानी निर्मित पठार
हिमानी क्षेत्रों में हिमनदों के घर्षण से पर्वत की चोटी कटकर चपटी हो जाती है जिससे पर्वत की चोटी एक सपाट मेज की तरह विकसित हो जाती है. यह प्रक्रिया हिमानी पठार को जन्म देती है. ग्लेशियर से बने पठार अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसे क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं, भारत के गढ़वाल पठार इसका उदाहरण हैं.
ii). पवन द्वारा निर्मित पठार
पवनों द्वारा लाए गए बारीक कणों के बार-बार निक्षेप से उत्थित भूमि को पवन द्वारा निर्मित पठार कहा जाता है, इसका अच्छा उदाहरण पाकिस्तान के पोटावर पठार और चीन में लोयस पठार है.
iii). जल द्वारा निर्मित पठार
नदियों द्वारा निरंतर निक्षेपण कार्य से विकसित समतल मैदान भूमि हलचल के कारण आसपास के क्षेत्र से ऊपर उठ जाते हैं जिन्हें जल निर्मित पठार कहते हैं. भारत में चेरापूंजी और म्यांमार के शान का पठार इसी प्रकार के पठारों का उदाहरण हैं.
2. अपरदन चक्र के आधार पर
अपरदन चक्र के आधार पर पठारों को निम्नलिखित तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है.
i). तरुण पठार
तरुण पठार चट्टानों से घिरा हुआ एवं समतल होता है, इस पठार में चट्टानों की संरचना सीधी और क्षेत्र लगभग समतल होता है, इसमें नदियों की संख्या कम होती है लेकिन इस पठार के अंदर नदियों द्वारा गहरी घाटियाँ बनती हैं, तरुण पठार आसपास के क्षेत्र से ऊँचा है तथा चारो ओर तीव्र कगारों से घिरा होता है, अमेरिका के कोलोरैडो का पठार इसी प्रकार का पठार है.
ii). प्रौढ़ पठार
इस प्रकार के पठार में नदियों के अपरदन कार्य से पठार की सतह ऊबड़-खाबड़ एवं असमान हो जाती है, जिसके कारण इसमें अनेक तीखी पर्वत चोटियाँ बन जाती हैं, इस प्रकार के पठार का सम्पूर्ण क्षेत्र पर्वतीय क्षेत्रों में परिवर्तित हो जाता है.
iii). जीर्ण पठार
इस प्रकार के पठार अत्यधिक अपरदन के कारण उच्चावच घर्षण से विकसित होते हैं, इन पठारों में नदियों के द्वारा उथली घाटियां बनती हैं और इससे पर्वत चोटियों का निर्माण होता है, ये पठार एक पिनीप्लेन के रूप में परिवर्तित होते हैं जिससे अवशेष पर्वत मेसा या बूटी बनते हैं, भारत में छोटानागपुर का पठार, खण्डेश का पठार और बांसवाड़ा का पठार इसी के उदाहरण हैं.
विश्व के प्रमुख पठार
पठार का नाम |
क्षेत्र का नाम |
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तिब्बत का पठार |
मध्य एशिया |
मंगोलिया का पठार |
उत्तर मध्य चीन तथा मंगोलिया |
प्रायद्वीपीय भारत का पठार |
भारत |
ईरान का पठार |
ईरान |
अरब का पठार |
दक्षिण-पश्चिम एशिया |
तुर्की या अनातोलिया का पठार |
तुर्की |
यूनान या अनातोलिया का पठार |
म्यांमार, चीन और वियतनाम |
आस्ट्रेलिया का पठार |
आस्ट्रेलिया |
मेडागास्कर /मलागासी का पठार |
मेडागास्कर |
दक्षिण अफ्रीका का पठार |
दक्षिण अफ्रीका |
अबीसीनिया या इथोपिया का पठार |
इथोपिया, सोमालिया |
मेसेट्टा का पठार |
स्पेन |
ब्राजील का पठार |
ब्राजील |
बोलीबिया का पठार |
बोलीबिया |
इसके अलावा अलास्का का पठार, कोलंबिया का पठार, कोलोराडो का पठार और ग्रेट बेसिन का पठार अमेरिका में स्थित हैं.
पठारों के महत्व
1. खनिज संसाधन - पठारों में विभिन्न प्रकार के खनिज संसाधनों का भंडार होता है, यहां से लोहा, तांबा, मैग्नीशियम, निकेल, जस्ता आदि धात्विक खनिज प्राप्त होते हैं, जो विभिन्न उद्योगों के लिए उपयुक्त होते हैं. इसके साथ ही पठारों में कोयला, तेल, अभ्रक, यूरेनियम आदि अधात्विक खनिज भी पाए जाते हैं.
2. जल विद्युत उत्पादन - पठारों में उच्चतम स्तर पर चट्टानें और शिखर होते हैं जो नदियों की प्रवाह और जल विद्युत उत्पादन के लि