कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण
Chapter -1
Part 3Jai Shre KrishnaRelated Articles
अध्याय एक में कुल 46 श्लोक हैं जिसमें से हम 21 से 30 पर आज चर्चा करने वाले हैं
भूमिका : प्रथम 20 श्लोक अध्याय 1 पर हम पहले ही अपने पिछले ब्लॉक में चर्चा कर चुके हैं अब हम आगे के 21 से 30 श्लोक देखेंगे ||
श्लोक 21 & 22
अर्जुन उवाच । सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥ 21 ॥ यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् । कर्मया सह योिव्यमनस्मन्रर्समुद्यमे ॥ 22 ॥
Meaning :
अर्जुन ने कहा- हे अच्युतः कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच ले चलें जिससे मैं यहाँ उपस्थित युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों की इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ।
Description: यद्यपि श्रीकृष्ण साक्षात् श्रीभगवान् हैं, किन्तु वे अहैतुकी कृपावश अपने मित्र की सेवा में लगे हुए थे। वे अपने भक्तों पर स्नेह दिखाने में कभी नहीं चूकते इसीलिए अर्जुन ने उन्हें अच्युत कहा है। सारथी रूप में उन्हें अर्जुन की आज्ञा का पालन करना था और उन्होंने इसमें कोई संकोच नहीं किया, अतः उन्हें अच्युत कह कर सम्बोधित किया गया है। यद्यपि उन्होंने अपने भक्त का सारथी पद स्वीकार किया था, किन्तु इससे उनकी परम स्थिति अक्षुण्ण बनी रही। प्रत्येक परिस्थिति में वे इन्द्रियों के स्वामी श्रीभगवान् हृषीकेश हैं।
भगवान् का शुद्ध भक्त होने के कारण अर्जुन को अपने बन्धु बान्धवों से युद्ध करने की तनिक भी इच्छा न थी, किन्तु दुर्योधन द्वारा शान्तिपूर्ण समझौता न करके हठधर्मिता पर उतारू होने के कारण उसे युद्धभूमि में आना पड़ा। अतः वह यह जानने के लिए अत्यन्त उत्सुक था कि युद्धभूमि में कौन-कौन से अग्रणी व्यक्ति उपस्थित हैं। यद्यपि युद्धभूमि में शान्तिप्रयासों का कोई प्रश्न नहीं उठता तो भी वह उन्हें फिर से देखना चाह रहा था और यह देखना चाह रहा था कि वे इस अवांछित युद्ध पर किस हद तक तुले हुए हैं।
श्लोक 23
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः | धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ 23 ॥
Meaning:मुझे उन लोगों को देखने दीजिये जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुर्बुद्धि पुत्र (दुर्योधन) को प्रसन्न करने की इच्छा से लड़ने के लिए आये हुए हैं।
Description:
यह सर्वविदित था कि दुर्योधन अपने पिता धृतराष्ट्र की साँठगाँठ से पापपूर्ण योजनाएँ बनाकर पाण्डवों के राज्य को हड़पना चाहता था। अत: जिन समस्त लोगों ने दुर्योधन का पक्ष ग्रहण किया था वे उसी के समानधर्मा रहे होंगे। अर्जुन युद्ध प्रारम्भ होने के पूर्व यह तो जान ही लेना चाहता था कि कौन-कौन से लोग आये हुए हैं। किन्तु उनके समक्ष समझौता का प्रस्ताव रखने की उसकी कोई योजना नहीं थी। यह भी तथ्य था कि वह उनकी शक्ति का, जिसका उसे सामना करना था, अनुमान लगाने की दृष्टि से उन्हें देखना चाह रहा था |
श्लोक 24
एवमुक्तो हृषीकेश गुडाकेशेन भारत । सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ 24 ॥
Meaning:
संजय ने कहा – हे भरतवंशी! अर्जुन द्वारा इस प्रकार सम्बोधित किए जाने पर भगवान् कृष्ण ने दोनों दलों के बीच में उस उत्तम रथ को लाकर खड़ा कर दिया।
Description: इस श्लोक में अर्जुन को गुडाकेश कहा गया है। गुडाका का अर्थ है नींद और जो नींद को जीत लेता है वह गुडाकेश है। नींद का अर्थ अज्ञान भी है। अत: अर्जुन ने कृष्ण की मित्रता के कारण नींद तथा अज्ञान दोनों पर विजय प्राप्त की थी।
श्लोक 25
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् । उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥ 25 ॥
Meaning: भीष्म द्रोण तथा विश्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो।
Description: समस्त जीवों के परमात्मास्वरूप भगवान् कृष्ण यह जानते थे कि अर्जुन के मन में क्या बीत रहा है। इस प्रसंग में हृषीकेश शब्द का प्रयोग सूचित करता है कि वे सब कुछ जानते थे। इसी प्रकार पार्थ शब्द अर्थात् पृथा या कुन्तीपुत्र भी अर्जुन के लिए प्रयुक्त होने के कारण महत्त्वपूर्ण है। मित्र के रूप में वे अर्जुन को बता देना चाहते थे कि चूँकि अर्जुन उनके पिता वसुदेव की बहन पृथा का पुत्र था इसीलिए उन्होंने अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया था।
श्लोक 26
तत्रापश्यत्स्थितान्पार्थः पितृनथ पितामहान् । आचार्यान्मातुलान्त्रातॄन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा । असुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ॥ 26 ॥
Meaning: अर्जुन ने वहाँ पर दोनों पक्षों की सेनाओं के मध्य में अपने चाचा-ताउओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, पुत्रों, पौत्रों, मित्रों, ससुरों और शुभचिन्तकों को भी देखा।
Description:
Meaning: उस समय हनुमान से अंकित ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डुपुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर तीर चलाने के लिए उद्यत हुआ। हे राजन्! धृतराष्ट्र के पुत्रों को व्यूह में खड़ा देखकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से ये वचन कहे।
अर्जुन युद्धभूमि में अपने सभी सम्बंधियों को देख सका। वह अपने पिता के समकालीन भूरिश्रवा जैसे व्यक्तियों, भीष्म तथा सोमदत्त जैसे पितामहों, द्रोणाचार्य तथा कृपाचार्य जैसे गुरुओं, शल्य तथा शकुनि जैसे मामाओं, दुर्योधन जैसे भाइयों, लक्ष्मण जैसे पुत्रों, अश्वत्थामा जैसे मित्रों एवं कृतवर्मा जैसे शुभचिन्तकों को देख सका। वह उन सेनाओं को भी देख सका जिनमें उसके अनेक मित्र थे।
श्लोक 27
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान् । कृपया पत्याविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥ 27 ॥
Meaning: जब कुन्तीपुत्र अर्जुन ने मित्रों तथा सम्बन्धियों की इन विभिन्न श्रेणियों को देखा तो वह करुणा से अभिभूत हो गया और इस प्रकार बोला।
श्लोक 28
दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण दत्तुं समुपस्थितम् सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥ 28 ॥
Meaning: अर्जुन ने कहा- हे कृष्ण! इस प्रकार युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने मित्रों तथा सम्बन्धियों को अपने समक्ष उपस्थित देखकर मेरे शरीर के अंग काँप रहे हैं और मेरा मुँह सूखा जा रहा है।
Description: यथार्थ भक्ति से युक्त मनुष्य में वे सारे सद्-गुण रहते हैं जो सत्पुरुषों या देवताओं में पाये जाते हैं जबकि अभक्त अपनी शिक्षा तथा संस्कृति के द्वारा भौतिक योग्यताओं में चाहे कितना ही उन्नत क्यों न हो इन ईश्वरीय गुणों से विहीन होता है। अतः स्वजनों, मित्रों तथा सम्बन्धियों को युद्धभूमि में देखते ही अर्जुन उन सब के लिए करुणा से अभिभूत हो गया, जिन्होंने परस्पर युद्ध करने का निश्चय किया था। जहाँ तक उसके अपने सैनिकों का सम्बन्ध था, वह उनके प्रति प्रारम्भ से दयालु था, किन्तु विपक्षी दल के सैनिकों की आसन्न मृत्यु को देखकर वह उन पर भी दया का अनुभव कर रहा था। और जब वह इस प्रकार सोच रहा था तो उसके अंगों में कंपन होने लगा और मुँह सूख गया।
श्लोक 29
वेपथु शरीर मे रोमहर्षच जायते। गाण्डीवं स्रंसते हस्तात्त्वक्चैव परिदह्यते ॥ 29 ॥
Meaning : मेरा सारा शरीर काँप रहा है, मेरे रोंगटे खड़े हो रहे हैं, मेरा गाण्डीव धनुष मेरे हाथ से सरक रहा है और मेरी त्वचा जल रही है।
श्लोक 30
न च शक्नोम्यवस्थातुं भ्रमतीव च मे मनः । निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव ॥ 30 ||
Meaning: मैं यहाँ अब और अधिक खड़ा रहने में असमर्थ हूँ। मैं अपने को भूल रहा हूँ और मेरा सिर चकरा रहा है। हे कृष्ण ! मुझे तो केवल अमंगल के कारण दिख रहे हैं।
Description: अपने अधैर्य के कारण अर्जुन यूद्धभूमि में खड़ा रहने में असमर्थ था और अपने मन की इस दुर्बलता के कारण उसे आत्मविस्मृति हो रही थी। भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आसक्ति के कारण मनुष्य ऐसी मोहमयी स्थिति में पड़ जाता है।