क्या ऐसे कम सुखन से कोई गुफ्तुगू करे
जो मुस्तकिल सकूत से दिल को लहू करे
अब तो हमें भी तरके मरासिम का दुख नहीं
पर दिल ये चाहता है के आगाज़ तू करे
तेरे बगैर भी तो गनीमत है ज़िन्दगी
खुद को गाबा के कौन तेरी जुस्तजू करे
अब तो ये आरज़ू है के वो ज़ख़्म खाये
ता ज़िन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे
तुज को भुला दिल है वो सर्मिन्दा नज़र
अब कोई हादसा ही तेरे रु बा-रु-करे
चुप चाप अपनी आग में जलते रहो फ़राज़
दुन्याँ तो अर्ज़े हाल से बे आबरू करे
Ahmad Faraz Poetry hindi
वही जुनु है वही कुचा-ऐ-मलामत है
सिकिस्ता दिल पर भी अहदे वफ़ा सलामत है
ये हम जो बाग़ बा बहारो का ज़िकर करते है
तू मुददुआ वो गुल तर वो सरो कामत है
बजा ये फुर्सते हस्ती मगर दिले नादान
न याद करके उसे भूलना क़यामत है
चली चले यूही रस्मे वफ़ा बा मुश्के सितम
के तेगे यार बा सर बा दस्ता सलामत है
सुकुते बहर से साहिल लरज़ रहा है मगर
ये खामोसी किसी खामोसी की अलामत है
अजीब वजा का अहमद फ़राज़ है शायर
के दिलो रिदा मगर पैरहन सलामत है
Faraz Poetry hindi
ये मेरी ग़ज़लें, ये मेरी नज़्मे
तमाम तेरी हिक़ायते है
ये तजकिरे तेरी जुल्फ के है
ये शेयर तेरी शिकायते है
मैं सब तेरी नज़र कर रहा हु
ये उन ज़मानो की साएते है
जो ज़िन्दगी के नए सफर में
तुझे किसी वक्त याद आये
तो एक इक हर्फ़ जी उठेगा
पहन के अलफ़ाज़ की क़बा में
उदास तन्हाईओं के लम्हों
मैं नाच उठोगी ये अफसरा में
मुझे तेरे दर्द के आलावा भी
और दुख थे ये मानता हु
हज़ार गम थे जो ज़िन्दगी की
तलाश में थे ये जनता हु
मुझे खबर थी तेरे आँचल में
दर्द की रेत छानता हु
और अब ये सारी मताये हस्ती
ये फूल ये ज़ख़्म सब तेरे है
ये दुःख के नोहे ये सुख के नग्मे
जो कल मेरे साथ थे वो अब तेरे है
जो तेरी क़ुरबत तेरी जुदाई में
कट गए रोज़ो शब् तेरे है
वो जिस के जीने की खइस थी
खुद उसके अपने नसीब सी थी
न पूछ उसका के वो दीवाना
बहुत दिनों का उजाड़ चूका है
वो कोकून तो नहीं था लेकिन
कड़ी चट्टानों से लड़ चूका था
वो थक चूका था और उसका तिशा
उसी के सीने में गड चूका था
The post Ahmad Faraz Poetry Hindi appeared first on Silverhints.
This post first appeared on Best Hind Shayri And Gazal Natiya Kalaam Aud Quotes, please read the originial post: here