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Abroo Shayari

Abroo Shayari

Abroo Shayari hindi

आबरू उल्फत में अगर चाहिए
रखनी सदा चश्मे तर को चाहिए

दिल तो तुझे दे ही चुके है
जान भी हाज़िर है अगर चाहिए

यार मिले या न मिले सुब हो शाम
कूचे-ए-जाना में गुज़र चाहिए

नाम भी नाम का न रहा चश्म में
अब तू गिरये लख्त-ए-जिगर चाहिए

तीर-ए-निग़ा वो है की जिस तीर के
सामने होने को जिगर चाहिए

Abroo Shayari izzat-shayri

प्यार में आबरू रूह की तरह होती है,जब जिस्म से रूह जुदा हो जाती है,तो जिस्म मिटटी बन जाता है
आबरू को ही इज़्ज़त बोलते हैं, आज इंसान इज़्ज़त की खातिर ही सब कुछ करता है
किसी शायर ने बयां किया

इश्क में आबरू खराब हुयी
ज़िन्दगी सर-बा-सर अज़ाब हुयी

मेरे महबूब तेरी ख़ामोशी
मेरी हर बात का जबाब हुयी

थी न आसूदगी मुक्क्दर में
मेहरबानी तो बे हिसाब हुयी

Abroo Shayari

आज के वक्त में लोग अपनी इज़्ज़त की खातिर बहुत कुछ छोड़ देते है बहुत सारे रिश्ते खराब हो जाते है
इज़्ज़त वो शे है की अगर ये रुस्बा हु जाये तो बाँदा जीते जी मर जाता है,
इज़्ज़त या इज़्ज़त की खातिर ही लोग अपने प्यार को छोड़ देते है,कभी बदनामी के दर से कभी दुन्याँ के दर से
कभी अपने आप से
लेकिन वो प्यार ही क्या जिस में आबरू न या खुद्दारी न हो
जब हम किसी से मिलते है या कोई हम से मिलता है तो नया रिस्ता बनता है,उस रिश्ते में जितना हो सके अदब से पेश
आया जाये तो बेहतर है
रफ्ता रफ्ता जब रिस्ता पास आता है तो अदब उसी तरह से जाने लगता है
जिस से हमको ये मैसूस होता है की सामने वाला बाँदा बलदल। गया फिर हमें अपनी आबरू की लगती है
शहिरे दिल्ली जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर याद आता है

हज़ारों ख्वाहिशें एसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी काम निकले

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बड़े बे आबरू हो कर तेरे कूचे से हम निकले

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