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कही आप भी तो नहीं करते ये गलती? श और ष का उच्चारण कब और कैसे होता है ? जानें

श और ष का उच्चारण कब और कैसे होता है: हिन्दी के व्याकरण ज्ञान के अभाव में अक्सर हम छोटी छोटी त्रुटियॉं करते रहते हैं। ध्वनियों को जिस प्रकार मुख स्थान या बोलने की सुविधा के हिसाब से वर्गीकृत किया गया है, उससे श या ष को लेकर भ्रम की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए परंतु हिंदी व्याकरण के शिक्षण में जिस प्रकार वैज्ञानिकता के अभाव के साथ-साथ उसे आगे बढ़ाया जा रहा है तो ऐसे में भ्रम पैदा होना और बढ़ना आम बात है ।

हिंदी वर्णमाला में श, ष, स में अंतर

स’ का उच्चारण – जीभ को जबड़े के ऊपर नीचे दोनों दाँतों के बीच में रखें। जीभ की नोक की ऊपरी सतह से नीचे के दोनों सामने वाले दाँत के एकदम ऊपरी छोर को छूते हुए बोल के देखिये ‘स’। यह एकदम शुद्ध ‘स’ ध्वनि है । सागर, समर, सहयोग आदि।

‘श’ का उच्चारण – ‘श’ की ध्वनि सरल है। हम ‘श’ (SH) जैसी जो ध्वनि बोलते या सुनते हैं वह ‘श’ ही है।ओठों को खोलकर, दंतपंक्तियों को निकट लाकर, या चिपकाकर, जीभ आगे की ओर करके हवा मुँह से बाहर फेंकते हुये बोलें- स। जो ध्वनि अभी आपके श्रीमुख से निकली होगी वह ‘श’ है। ‘श’ को सहजता से बोला जा सकता है। ‘श’ बोलते समय जीभ का स्थान ‘स’ से थोड़ा सा ऊपर रहता है। वस्तुतः यह एक तालव्य ध्वनि है और इसके बोलने का तरीका तालव्य व्यंजनों (चवर्ग) जैसा ही है। ओठों से फूंककर सीटी बजाते समय ‘श्श….’ जैसी जो ध्वनि सुनाई देती है वह ‘श’ ही है, इसमें कुछ विशेष नहीं है। शक्कर, शीला, विदेश आदि।

श और ष का उच्चारण कब और कैसे होता है

‘ष’ का उच्चारण – इसके उच्चारण में जीभ मूर्धा को स्पर्श करती है। मूर्धा ऊपर के दाँत की जड़ के और ऊपर है तालु यानि Soft Palate यहाँ से और ऊपर है मूर्धा माने Hard Palate। जहाँ ‘श’ तालव्य है, ‘ष’ एक मूर्धन्य ध्वनि है। आम तौर पर लोगों द्वारा द्वारा ‘श’ जैसे बोलने के अलावा कुछ भाषाई क्षेत्रों में इसे ‘ख’ जैसे भी बोला जाता है। अगर ‘स’ और ‘श’ से तुलना करें तो ‘ष’ बोलने के लिए जीभ की स्थिति ‘श’ से भी ऊपर होती है। इसके उच्चारण में मूर्धा ( तालु के थोडा सा पीछे का भाग ) में जिव्हा के अग्र भाग को स्पर्श करते हुए बोलें -स तो ध्वनि निकलेगी ष।

ध्यान रखें, यदि जीभ की नोक की ऊपरी सतह से बोलेंगे तो ‘श’ ध्वनि निकलेगी।

तीनों ध्वनियां लगभग एक सी हैं लेकिन तीनों का उच्चारण स्थल और उच्चारण अंग थोड़े अलग हैं।

तालु और मूर्धा का विभाजन बड़ा ही सूक्ष्म है और हर वक्ता के लिए ज़रा सा अलग रह सकता है । इसीलिए एकदम शुद्ध स, श और ष ध्वनि बोलना चाहते हैं तो जीभ की नोक का ध्यान रखिए।

वैसे शुद्ध ष ध्वनि बोलने वालों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है । बोलने के स्तर पर ष ध्वनि श में सिमटती जा रही है। अधिकांश बोलने वाले श और ष एक समान ध्वनि में बोलते हैं।

मिथिला में ष ध्वनि ख की तरह भी बोली जाती है। शेष को शेख, औषधि को औखधि बोलते लोग मिल सकते हैं।

श और ष- में विशेष अंतर

किसी शब्द विशेष में कौन सा (श /ष ) होगा यह तो शब्द की व्युत्पत्ति पर आधारित है, किन्तु किसी असमसित तत्सम शब्द में जब एक से अधिक(श/ ष/ स) आएँ तो उनका क्रम ठीक वैसा ही होगा, जिस क्रम से वे वर्णमाला में हैं । जैसे शासन, विशेष, शोषण, शीर्षक, शेष, प्रशंसा । कहने का तात्पर्य यह है कि व्याकरण द्वारा वर्ण की जो व्यवस्था की गयी है, उसमें एक नियम होता है अर्थात जितने भी श या ष वाले शब्द होंगे उनमें ‘श’ वर्ण पहले और ‘ष’ वर्ण बाद में आएगा, जैसे- शोषण, शोषित, शेष, शीर्षक, शिष्ट, शिष्टचार, शुष्क आदि। इस प्रकार जब दोनों वर्ण एक साथ होंगे तो वरिष्ठता के आधार पर पहले ‘श’ ही आएगा।

च और छ के साथ जब भी संयुक्त होगा तो केवल श ही होगा । जैसे पश्चिम, पश्चात्, प्रायश्चित, निश्छल, निश्चल आदि । ट, ठ के साथ हमेशा ष संयुक्त होगा जैसे कष्ट, नष्ट, भ्रष्ट, निष्ठा, प्रतिष्ठा आदि । ठीक ऐसे ही त, थ के साथ स जैसे हस्त, अस्त, परास्त, गृहस्थ, स्थल आदि।संधि का नियम भी कहता है कि स से पहले अ आ से भिन्न स्वर हो तो स का ष हो जाता है।

वि + सम = विषम
वि + साद = विषादऋ के बाद ‘ष’ का प्रयोग होता है।विसर्ग से पूर्व इ, उ स्वर हो और उसके बाद क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग आधा ‘ष’ ( ष हलन्त) हो जाता है।यह प्रवृत्ति केवल तत्सम शब्दों के साथ देखी जाती है ।

अगर वर्तनी की बात है तो हिज्जे मानक वर्तनी के प्रयोग किए जाते हैं और अगर उच्चारण की बात है तो हिज्जों का मानक उच्चारण किया जाना चाहिए। गौरतलब यह भी कि हिज्जे और उच्चारण को क्षेत्रीयता भी प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए कुमाऊंनी श की तरफ झुकी हुई है तो गढ़वाली स की तरफ। फूल एक ही है पर कुमाऊंनी में वो बुरांश हो जाता है और गढ़वाली में बुरांस।

जहाँ तक मनीष और अनिमेष में श या ष वाला कोई ‘शब्द’ कैसे बनेगा? या उसकी मूल संरचना हम कैसे बनायेंगे तो हमें ध्यान देना है कि श और ष की ध्वन्यात्मक भिन्नता है । व्याकरण के नियम शब्दों के वाक्य में प्रयोग को निर्धारित करते हैं । शब्द में कौन -सा श/ष प्रयोग होता है या शब्द निर्माण कैसे किया जाए ,यह व्याकरण का नहीं भाषा की परंपरा का काम है। कौन शब्द कैसे बना यह व्युत्पत्ति-विज्ञान (etymology) से पता चलता है।

किसी भी भाषा के शब्द की अपनी मूल रचना होती है, भले ही वो शब्द अन्य भाषा से लाया गया हो (अंग्रेजी और फ्रैंच भाषा में कई शब्द अन्य भाषाओं से लिए गये हैं) लेकिन एक बार उसका Alphabetical structure स्थापित हो गया तो उसको वैसे ही लिखा जाना चाहिए। उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता। साँप, शाप, का जैसा Alphabetical structure है, वैसा ही रहेगा। साँप के मूल अक्षर हटाकर हम अपना नया structure नहीं बना सकते। अंग्रेजी में या हिन्दी मे या किसी भी अन्य भाषा में उसके शब्दों को वैसा ही, उनकी अपनी spelling alphabets से ही लिखा जाता है। हम कोई परिवर्तन नहीं कर सकते।

हृषीकेश जो उच्चारण के सौकर्य से ऋषिकेश और कुछ तो रिषीकेश भी लिखने लगे हैं। बच्चे ध्वनिभेद अंग्रेजी में.खूब कर लेते हैं,पर हिंदी में चलता है,भाव आ गया है। सही नियम तो पता होना ही चाहिए। हम अपने शिक्षकों के कारण आदतन लिख तो लेते हैं.पर शायद नियम न जानने से प्रचलन के दबाब में भी आ जाते हैं।

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