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प्रकाश संश्लेषण क्या है अर्थ, परिभाषा एवं इसे प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक लिखिए

प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) वह क्रिया जिसमें पौधे का हरा भाग सूर्य के प्रकाश उपस्थित होने पर जल एवं कार्बन-डाइऑक्साइड का उपयोग करके कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन स्वतंत्र होती है ।

प्रकाश संश्लेषण क्या है? | prakash sanshleshan kya hai

आधुनिक धारणा के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण तथा इसका कार्बनिक रसायनों के संश्लेषण द्वारा स्थायी रासायनिक विभव में परिवर्तन होना प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) कहलाता है ।


प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया का क्या अर्थ है? | photosynthesis meaning in hindi

प्रकाश संश्लेषण (prakash sanshleshan) में प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है । इस रासायनिक ऊर्जा से वायुमण्डल की कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तथा जल (H, O) कार्बनिक यौगिकों में समाविष्ट की जाती है ।

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया का समीकरण -

6CO2 + 6H₂0 + light + Chlorophyll -----> C6H12O6 + 6O2, ∆ G° + 686 Kcal/mole


प्रकाश संश्लेषण की परिभाषा लिखिए? | defination of photosynthesis in hindi


प्रारम्भिक अन्वेषकों ने प्रकाश संश्लेषण को निम्न प्रकार परिभाषित किया —

“प्रकाश संश्लेषण वह प्रक्रिया है जिसमें क्लोरोफिल तथा प्रकाश ऊर्जा की उपस्थिति में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड एवं जल ग्लुकोस में परिवर्तित हो जाते हैं ।”


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प्रकाश संश्लेषण किसे कहते है? | prakash sanshleshan kise kahte hain?

प्रकाश संश्लेषण क्या है अर्थ, परिभाषा एवं इसे प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक लिखिए

ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि (historical background) -

प्रकाश संश्लेषण का आधुनिक ज्ञान क्रमबद्ध अन्वेषणों पर आधारित हैं । पहले यह माना जाता था कि पौधे अपना पोषण केवल भूमि एवं जल से ही प्राप्त करते हैं ।


अरस्तु ( Aristotle ) – यह मानते थे कि पौधों की वृद्धि के लिये प्रकाश आवश्यक - होता है ।

हेल्स ( Stephen Hales, 1722 ) – ने सर्वप्रथम स्पष्ट किया कि पौधे जिस प्रक्रिया से वायुमण्डल से पोषण प्राप्त करते हैं उसके लिये प्रकाश आवश्यक होता है ।

प्रोस्टले ( Priestley, 1722 ) – ने बताया कि पौधों में भी जन्तुओं के समान गैस विनिमय होता है परन्तु पौधों की इस प्रक्रिया से वातावरण शुद्ध होता है ।

आइजनाहौज ( Ingenhousz 1779 ) – ने प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिये प्रकाश तथा क्लोरोफिल को आवश्यक बताया ।

सीनीबीअर ( Senebier, 1782 ) – ने बताया कि पौधों द्वारा ऑक्सीजन निकलने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड आवश्यक है ।

मेयर ( Mayer, 1842 ) – ने बताया कि पौधों द्वारा अवशोषित प्रकाश ऊर्जा प्रकाश - संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है ।

सन् 1900 तक विस्तृत अध्ययनों के आधार पर प्रकाश - संश्लेषण को निम्नलिखित समीकरण के द्वारा प्रदर्शित किया गया -

6CO2 + 6H₂0 + light + energy  ----> C6H12O6 + 602

ब्लैकमैन ( Blackman 1905 ) - ने अपने महत्वपूर्ण विस्तृत प्रयोगों के आधार पर आश्चर्यजनक प्रदर्शन किया कि प्रकाश - संश्लेषण कम से कम दो श्रेणीगत अभिक्रियाओं में होती है ।

1. प्रकाश अभिक्रिया ( Light Reaction ) - एक अरासायनिक अभिक्रिया जिसमें प्रकाश की आवश्यकता होती है ।

2. अप्रदीप्त अभिक्रिया ( Dark Reaction or Blackman Reaction ) - एक रासायनिक - एन्जाइमीक अभिक्रिया जिसमें CO2 की आवश्यकता होती है तथा इसमें प्रकाश की आवश्यकता नहीं पड़ती है ।

वारवर्ग ( O. Warburg ) - दूसरे वैज्ञानिकों ने प्रमाणित किया कि ये दोनों अभिक्रियायें स्वतन्त्र रूप से होती हैं ।

ईमरसन व आरनोल्ड ( Emerson and Arnold ) – ने प्रदर्शित किया कि प्रकाश अभिक्रिया बहुत तेजी से होती है तथा अप्रदीप्त अभिक्रिया (dark reaction) आपेक्षित मन्द गति से होती है । प्रकाश अभिक्रिया में बने उत्पाद (products) परिवर्तनशील हैं । अर्थात् यदि वे तुरन्त अप्रदीप्त अभिक्रिया में उपयोग नहीं होते हैं तो व (decompose) हो जाते हैं ।

वान नील ( C. B. Van Niel , 1924 ) – ने दो अभिक्रियाओं के आधार पर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया विधि प्रस्तावित की । उन्होंने सुझाव दिया कि जल CO, के साथ प्रतिक्रिया करने के बजाय H + आयन तथा इलेक्ट्रॉन प्रदान करता है जो कि CO2 का पचयन (reduction) करते हैं ।

2H₂0 +light ----> O2 + 4 [ H ]

4 [ H ] + CO2 ----> [CH2O] + H₂0

रुवन व कामैन ( S. Ruben and K. D. Kamen 1941 ) – ने समस्थानिक (isotopic) ऑक्सीजन (18O2) के प्रयोग से प्रमाणित किया कि प्रकाश संश्लेषण में उत्पन्न 02 जल से आती है ।

2H 18O + CO2 + light ----> 18O2 + ( CH2O ) + H₂O

यदि प्रकाश संश्लेष सामान्य H₂O और CO2 में होती है तो सामान्य आक्सीजन निकलती है ।

2H₂O + C18O2 ----> 18O2 + (CH₂ 18O) + H₂O

हिल ( R. Hill, 1937 ) – सर्वप्रथम विलगित क्लोरोप्लास्ट में प्रकाश संश्लेषण की कुछ अभिक्रिया करने में सफल हुये । इस अभिक्रिया में उन्होंने O₂ उत्पन्न की तथा साथ - साथ प्रकाश में इलेक्ट्रॉन ग्राही (electron acceptor) पचित (reduce) हुआ । इस प्रक्रिया (प्रकाश जभिक्रिया) को हिल अभिक्रिया (hill reaction) भी कहते हैं । हालाँकि हिल इस अभिक्रिया को CO2 अपचन से नहीं जोड़ पाये परन्तु इस से प्रकाश अभिक्रिया स्पष्ट हुई । ऑक्सीजन प्रकाश अभिक्रिया में निकलती हैं तथा जल से आती हैं ।

कालविन ( M. Calvin, 1956 , 60 ) – ने 14CO, के उपयोग से यह प्रदर्शित किया कि अप्रदीप्त अभिक्रिया अन्धेरे में भी हो सकती है तथा बाद में उन्होंने प्रकाश संश्लेषण में कार्बन पथ का आविष्कार किया जिसे "कालबिन चक्र (calvin cycle)" कहते हैं ।

आरनौन एवं साथियों ( Arnon & Co workes 1955-1960 ) – ने प्रदर्शित किया कि प्रकाश अभिक्रिया के दो उत्पाद, ATP तथा NADPH होते हैं तथा इन दो उच्च ऊर्जा यौगिकों का अप्रदीप्त अभिक्रिया में CO2 के अपचन में उपयोग होता है ।

हिल एवं बिन्डाल ( Hill and Bendall 1960 ) – ने सुझाव दिया की प्रकाश अभिक्रिया दो पगीय इलेक्ट्रॉन संवहन तन्त्र (Electron Transport System) प्रक्रिया होती है । पहले पग में H₂O से इलेक्ट्रॉन्स प्रारम्भिक स्तर (ground level) से मध्य स्तर तक उठते हैं जिसमें ऑक्सीजन निकलती है तथा दूसरे पग में वे H₂ अपचन स् (H₂ reducing level) तक उठते हैं जिसमें NADPH का निर्माण होता है ।

प्रथम प के शीर्ष स्तर से इलेक्ट्रॉन का स्थान्तरण दूसरे पग के तल (bottom) तक विभव में न्यूनता ETS द्वारा होती है जिसमें क्लोरोप्लास्ट में उपस्थित दो ज्ञात साइटोक्रोम, साइटोक्रोम b6 (Eo = 0.0V) तथा साइटोक्रोम f (Eo = + 0 : 37V) होते हैं । इलेक्ट्रॉन संवहन में ATP उत्पन्न होती है । क्लोरोफिल द्वारा अवशोषित प्रकाश ऊर्जा जल से इलेक्ट्रॉन निवर्त करने में उपयोग होती है (जिसके कारण O2 निकलती है) तथा उन्हें दो पगीय संवहन प्रक्रिया में अपचन स्तर (reducing level) पर लाती है जिससे CO2 का अपचन होता है ।

इस प्रक्रिया में Pi इस्टर बन्ध से ADP के साथ मिलकर ATP बनाती है जो कि NADPH के साथ रासायनिक अभिक्रियाओं के चक्र में CO2 को कार्बोहाइड्रेट्स में पचित कर देती है ।


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प्रकाश संश्लेषण वर्णक तन्त्रों से आप क्या समझते हैं? pigment systems in hindi

क्लोरोफिल के साथ कुछ दूसरे वर्णक भी सम्बन्धित रहते हैं ।


इन सब वर्णकों को दो समूहों में रखा गया है -

  • वर्णक तन्त्र I ( pigment system I )
  • वर्णक तन्त्र II ( pigment system II )

ये वर्णक तन्त्र क्रमशः I एवं II प्रकाश प्रतिक्रियाओं के लिये उत्तरदायी होते हैं ।


इमरसन प्रभाव ( The Emmerson Effect ) -

प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) में दो वर्णक तन्त्र तथा दो ही प्रकाश प्रतिक्रियायें होती हैं । इस तथ्य का प्रथम प्रमाण इमरसन ने एल्गी के प्रयोगों से दिया । यदि एल्गी को > 680mē तरंग दैर्ध्य (wavelength) के प्रकाश में रखा जाता है तो प्रकाश - संश्लेषण की एक दर प्राप्त की जाती है तथा यदि इसे Emmerson effect” कहते हैं । इससे यह प्रदर्शित होता है कि प्रकाश संश्लेषण में दो वर्णक तन्त्र सहयोग करते हैं ।


वर्णक तन्त्र I ( Pigment system I ) -

वर्णक तन्त्र I में केवल एक क्लोरोफिल अणु उत्तेजित होता है अर्थात् ऊर्जा युक्त इलेक्ट्रॉन निकालता है । इस तथ्य के लिये “trapping centre" की परिकल्पना की गई है कि क्लोरोफिल अणु वर्णक तन्त्र के साथ संयुक्त होकर एक ‘pit’ बनाते हैं जिसमें प्रकाश क्वान्टा पकड लिये (trapped) जाते हैं यह प्रकाश क्वान्टा जो कि खन्द (pit) में गिर जाता है क्लोरोफिल के एक अणु से दूसरे पर संचरित होता है तथा यह प्रकाश क्वान्टा अन्ततः क्रियाशील क्लोरोफिल पर पहुँच जाता है । यह क्रियाशील क्लोरोफिल उत्तेजित होकर ऊर्जा युक्त इलेक्ट्रॉन दे देता है । वर्णक तन्त्र I में क्लोरोफिल a क्रियाशील क्लोरोफिल होता है इसे P - 700 भी कहते हैं क्योंकि यह अधिकतम अवशोषण 700mu कर सकता है । क्लोरोफिल a के अणु में विशेष गुण होते हैं । सम्भवतः यह प्रोटीन से बन्धन के कारण होते हैं ।


वर्णक तन्त्र II ( Pigment system II ) -

वर्णक तन्त्र I की अपेक्षा वर्णक तन्त्र II के विषय में बहुत कम ज्ञात है । इसके क्रियाशील क्लोरोफिल की स्पष्ट रूप से पहचान नहीं हुई है । शायद इसमें भी “trapping centre” सिद्धान्त लागू होता है । इसके क्रियाशील क्लोरोफिल को क्लोरोफिल कहते हैं । यह अधिकतम अवशोषण 680mu करता है । जिससे इसे P - 680 कहते हैं । दोनों वर्णक तन्त्रों में क्लोरोफिल a ही इलेक्ट्रॉन दाता होता है । क्लोरोफिल b का कार्य अभी तक विवादस्पद है । एल्गी में केवल क्लोरोफिल a ही होता है तथा इनमें प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) क्रिया सामान्य रूप से होती हैं ।

प्रत्येक "एकल (single)" प्रकाश रासायनिक (photochemical) घटना, दो अलग - अलग वर्णक तन्त्रों में होने वाली दो अभिक्रियाओं का संयोजन है तथा प्रत्येक वर्णक तन्त्र भिन्न - भिन्न तरंग दैर्ध्य के प्रकाश को अवशोषित करते हैं । प्रत्येक वर्णक तन्त्र में प्रकाश ऊर्जा accessory वर्णकों से अभिक्रिया केन्द्र (reaction centre) तक सम्भवतः Inductive resonance द्वारा संचरित होती है ।

उदाहरणतः यूकैरियोटिक कोशिकाओं के क्लोरोप्लास्ट में एक वर्णक तन्त्र के कैरोटिन्स द्वारा अवशोषित ऊर्जा क्लोरोफिल a को स्थान्तरित की जाती है जो कि इस उत्तेजित ऊर्जा को उस वर्णक तन्त्र के लम्बी तरंग दैर्ध्य अभिक्रिया केन्द्रक वर्णक को स्थान्तरित कर देता है । क्लोरोफिल b की उत्तेजित ऊर्जा प्रत्यक्ष रूप से क्लोरोफिल a को स्थान्तरित कर दी जाती है, जहाँ से यह अभिक्रिया केन्द्र को स्थान्तरित की जाती है ।


अभिक्रिया केन्द्र ( Reaction Centre ) -

यह अनुमान है कि प्रत्येक वर्णक तन्त्र में क्लोरोफिल a से 300 वर्णक अणु तथा अभिक्रिया वर्णक केन्द्र का 1 अणु (वर्णक तन्त्र I में P 700 तथा वर्णक तन्त्र II में P680) उपस्थित होता है ।

क्योंकि प्रकाश संश्लेषण में ऑक्सीजन का एक अणु उत्पन्न करने के लिये क्लोरोफिल के 2400 अणुओं की आवश्यकता होती है तथा ऑक्सीजन का एक अणु उत्पन्न करने के लिये आठ प्रकाश रासायनिक घटनाओं की आवश्यकता होती है ।

P700 इलेक्ट्रॉन स्थान्तरित करने वाला वर्णक है । दूसरे क्लोरोफिल अणु प्रकाश एकत्र करने वाले एजेन्ट्स का कार्य करते हैं जो कि P 700 को ऊर्जा स्थान्तरित करते हैं ।


प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक लिखिए? | factor's affecting photosynthesis in hindi

प्रकाश संश्लेषण पर कारकों के प्रभाव का अध्ययन करते समय सीमान्त कारकों के सिद्धान्त को ध्यान में रखना आवश्यक है ।

अत: प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) बहुत से बाह्य तथा आन्तरिक कारकों द्वारा प्रभावित होती है ।


प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित है -


बाह्य कारक ( External factors ) -

  • प्रकाश ( Light )
  • प्रकाश की तीव्रता ( Intensity of light )
  • प्रकाश विशेषता ( Light quality )
  • प्रकाश अवधि ( Light duration )
  • कार्बन डाइऑक्साइड ( CO )
  • तापक्रम ( Temperature )
  • जल ( Water )

आन्तरिक कारक ( Internal factors ) -

  • क्लोरोफिल की मात्रा ( Chlorophyll content )
  • प्रोटोप्लाज्मिक कारक ( Protoplasmic factor )
  • प्रकाश संश्लेषण के उत्पादों का एकत्रीकरण ( Accumulation of photosynthetic products )


बाह्य कारक ( External factors ) -


प्रकाश ( Light ) –

प्रकाश संश्लेषण में उपयोग होने वाली ऊर्जा प्रकाश से ही होता है । प्रकाश संश्लेषण सामान्यतः दृश्य स्पेक्ट्रम (visible spectrum) में ही होती है यह काफी तीव्रता के इलैक्ट्रिक प्रकाश में भी हो सकती है ।


( i ) प्रकाश की तीव्रता ( Intensity of light ) - प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से प्रकाश संश्लेषण की दर भी बढ़ती है । कुछ पौधों में इष्टतम दर कम तीव्र प्रकाश में ही होती है ये छायादार स्थानों में उगते हैं इन्हें “Sciophytes” कहते हैं । दूसरी ओर कुछ पौधों को इष्टतम प्रकाश - संश्लेषण (optimum photosynthesis) के लिये अधिक तीव्र प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है ये प्रकाशमय खुले स्थानों में उगते हैं इन्हें "heliophytes” कहते हैं । अत्यधिक तीव्र प्रकाश का प्रकाश संश्लेषण पर विरोधी प्रभाव पड़ता है इस घटना को “Solarization” कहते हैं । Solarization में कोशिकीय अवयवों का प्रकाश - ऑक्सीकरण (photo oxidation) हो जाता है जिसमें उनकी मृत्यु तक हो सकती है । अत्यधिक प्रकाश में दूसरे कारक सीमान्त हो जाते हैं जिसमें प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) की दर घट जाती है ।

( ii ) प्रकाश विशेषता ( Light quality ) - हरे पौधों में प्रकाश संश्लेषण दृश्य स्पैक्ट्रम में होती है । अधिकतम प्रकाश संश्लेषण की दर स्पैक्ट्रम लाल प्रकाश में होती है इसके बाद नीले प्रकाश में होती है । हरे स्पैक्ट्रम को पौधे के हरे भाग परावर्तित कर देते हैं जिससे इसका अवशोषण न्यूनतम होता है । प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) दृश्य स्पैक्ट्रम के 350ml से 750mu के विस्तार में होती है 637 में अधिकतम होती है । से 656 mu

( iii ) प्रकाश अवधि ( Light duration ) - प्रकाश संश्लेषण के लिये प्रकाश की संक्षिप् दमक (flash) भी काफी होती है । प्रकाश संश्लेषण की दर आन्तरायिक (intermittant) प्रकाश में सतत प्रकाश (continuous light) से अधिक पायी गयी है क्योंकि निरन्तर प्रकाश में संश्लेषित ऊर्जा एकत्र होती रहती है तथा इसका उपयोग अप्रदीप्त अभिक्रियाओं में उतनी दर नहीं हो पाता है जितना कि प्रकाश प्रतिक्रियाओं में उत्पन्न होता है ।


कार्बन डाइऑक्साइड ( CO ) –

वायुमण्डल में लगभग 0.03% CO2 होती है । अतः इसकी कम मात्रा होने से यह सीमान्त कारक होती है । CO2 की मात्रा बढ़ाने से प्रकाश संश्लेषण की दर बढ़ती है परन्तु अत्यधिक सान्द्रता हानिकारक होती है जिससे प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis in hindi) की दर घटने लगती है ।




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