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Loktantra kise kahate hain | लोकतंत्र क्या हैं, परिभाषा

Loktantra kise kahate hain ( लोकतंत्र ):- आज हम आपको लोकतंत्र के बारे में विस्तार से बतायेगें । आप सभी ने कई बार TV में News में या लोगो के मुह से सुना ही होगा कि हमारा भारत देश एक लोकतात्रिक देश हैं । और आप सभी के मन में तब ये आता होगा कि आखिर ये लोकतात्रिक शब्द का मतलब क्या हैं। तो चलिए आज हम आपको इसके बारें में बताते हैं।

loktantra ki paribhasha :-लोकतन्त्र का शाब्दिक अर्थ हैं लोगो का शासन। लोकतंत्र को English भाषा में Democracy कहा जता हैं।

loktantra kya hai– जिसे देश में लोग मत करते है या चुनाव के द्वारा अपने नेता का चुनाव होता हैं वह देश एक लोकतंत्र देश कहलाता हैं।

loktantra ka pran:- देश की जनता और देश के संविधान को ही लोकतंत्र का प्राण कहा जाता हैं।

Note:-आपने कई बार यह भी सुना ही होगा की अपना भारत देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतात्रिक देश हैं वह इस लिए कि हमारे भारत देश में मतदान होता हैं और यहां के सभी नागरिको को मतादान करने का हक मिलता हैंं और हमारे देश कि जनसंख्या सबसे ज्यादा हैं जहां पर मतदान के द्वारा हम आपनी प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। हमसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश चीन हैं पर वहां पर चुनाव नही होता हैं। आशा करता हूँ कि आप को समझ आ गया होगा कि loktantra kise kahate hain हैं।

लोकतंत्र के प्रकार

1-प्रतिनिधि लोकतन्त्र

2-प्रत्यक्ष लोकतन्त्र

1-प्रतिनिधि लोकतन्त्र:- प्रतिनिधि लोकतन्त्र में जनता सरकारी अधिकारियों को सीधे चुनती है। प्रतिनिधि किसी जिले या संसदीय क्षेत्र से चुने जाते हैं या कई समानुपातिक व्यवस्थाओं में सभी मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ देशों में मिश्रित व्यवस्था प्रयुक्त होती है। यद्यपि इस तरह के लोकतन्त्र में प्रतिनिधि जनता द्वारा निर्वाचित होते हैं, लेकिन जनता के हित में कार्य करने की नीतियाँ प्रतिनिधि स्वयं तय करते हैं।

2-प्रत्यक्ष लोकतन्त्र:- प्रत्यक्ष लोकतन्त्र( में सभी नागरिक सारे महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों पर मतदान करते हैं। इसे प्रत्यक्ष कहा जाता है क्योंकि सैद्धान्तिक रूप से इसमें कोई प्रतिनिधि या मध्यस्थ नहीं होता। सभी प्रत्यक्ष लोकतन्त्र छोटे समुदाय या नगर-राष्ट्रों में हैं। उदाहरण – स्विट्जरलैंड

लोकतंत्र की आवश्यकता

1-बहुसंख्यक जनसमुदाय, जो गैर-अभिजनवर्ग का निर्मायक है, में अधिकांश भावशून्य, आलसी और उदासीन होते हैं, इसलिए एक ऐसा अल्पसंख्यक वर्ग का होना आवश्यक है जो नेतृत्व प्रदान करे।

2-अभिजन सिद्धान्त के अनुसार आज के जटिल समाज में कार्यक्षमता के लिए विशेषज्ञता आवश्यक है और विशेषज्ञों की संख्या हमेशा कम ही होती है। अतः राजनैतिक नेतृत्व ऐसे चुनिंदा सक्षम लोगों के हाथ में होना आवश्यक है।

3-लोकतंत्र मात्र एक ऐसी कार्यप्रणाली है जिसके द्वारा छोटे समूहों में से एक जनता के न्युनतकम अतिरिक्त समर्थन से शासन करता हैं अभिजनवादी सिद्धान्त यह भी मानता है कि अभिजन वर्गों- राजनीतिक दलों, नेताओं, बड़े व्यापारी घरानों के कार्यपालकों, स्वैच्छिक संगठनों के नेताओं और यहां तक कि श्रमिक संगठनों के बीच मतैक्य आवश्यक है ताकि लोकतंत्र की आधारभूत कार्यप्रणाली को गैर जिम्मदार नेताओं से बचाया जा सके।

4-सहभागिता सिद्धान्त के समर्थकों के अनुसार लोकतंत्र वास्तविक अर्थ प्रत्येक व्यक्ति की समान सहभागिता है, न कि मात्र सरकार को स्थायी बनाए रखना जैसा कि अभिजनवादी अथवा बहुलवादी सिद्धान्तकार मान लेते हैं। सच्चे लोकतंत्र का निर्माण तभी हो सकता है जब नागरिक राजनीतिक दृष्टि से सक्रिय हों और सामूहिक समस्याओं में निरंतर अभिरूचि लेते रहें। सक्रिय सहभागिता इस लिए आवश्यक है ताकि समाज की प्रमुख संस्थाओं के पर्याप्त विनिमय हों और राजनीतिक दलों में अधिक खुलापन और उत्तरदायित्व के भाव हों।

5-सहभागी लोकतंत्र के सिद्धान्तकारों के अनुसार यदि नीतिगत निर्णय लेने का जिम्मा केवल अभिजन वर्ग तक सीमित रहता है तो उसके लोकतंत्र का वास्तविक स्वरूप बाधित होता है। इसलिए वे इसमें आम आदमी की सहभागिता की वकालत करते हैं। उनका मानना है कि यदि लोकतांत्रिक अधिकार कागज के पन्नों अथवा संविधान के अनुच्छेदों तक ही सीमित रहे तो उन अधिकारों का कोई अर्थ नहीं रह जाता, अतः सामान्य लोगों द्वारा उन अधिकारों का वास्तविक उपभोग किया जाना आवश्यक है।

6-लोकतंत्र राज्य का एक स्वरूप है और वर्ग-विभाजित समाज में सरकार अधिनायकवादी और लोकतांत्रिक दोनों होती है। यह एक वर्ग के लिए लोकतंत्र है तो दूसरे के लिए अधिनायकवाद। बुर्जुआ वर्ग चुंकि अपने हित साधन में पूंजीवादी प्रणाली को नियंत्रित और संचालित करता है, इसलिए उसे सत्ता से बेदखलकर समाजवादी लोकतंत्र को स्थापित करना आवश्यक है।

लोकतंत्र का इतिहास ( History Of Loktantra )

लोकतंत्र के उपयोग का इतिहास लंबा और ऊंचनीच से भरा हुआ है। भारत के प्राचीन गणतंत्रों अथवा यूरोप के एथेन्सी लोकतंत्र का इतिहास ही दो हजार वर्ष से भी अधिक पुराना है और हम देखते हैं कि उस काल के मानव समाज में भी लोकतंत्रीय संस्थाएं किसी-न-किसी रूप में विद्यमान थीं।

मानवीय गतिविधि जैसे-जैसे व्यापक रूप लेती गई, मानव दृष्टि में भी व्यापकता आती गई। नागरिक समाज निर्माण करने की आकांक्षा ने मनुष्य को लोकतंत्र की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया क्योंकि यही ऐसी व्यवस्था है जिसमें सर्वसाधारण को अधिकतम भागीदारी का अवसर मिलता है। इससे केवल निर्णय करने की प्रक्रिया ही में नहीं अपितु कार्यकारी क्षेत्र में भी भागीदारी उपलब्ध होती है। अपने विकास क्रम के विभिन्न चरणों में लोकतंत्र ने भिन्न-भिन्न परिस्थितियों को अन्यान्य मात्रा में सुनिश्चित करने का प्रयास किया है।

इन्हे भी पढ़े:-

  • Article 1 to 395 in Hindi ( भारतीय संविधान ) सभी अनुच्छेद व भाग, इतिहास
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